Saturday, October 25, 2014

मन की शांति

एक राजा हमेशा उदास रहता था। लाख कोशिश करने के बावजूद उसे शांति नहीं मिलती थी। एक बार उसके नगर में एक बौद्ध भिक्षु आया। बौद्ध भिक्षु के ज्ञानपूर्ण उपदेश से राजा बहुत प्रभावित हुआ। उसने बौद्ध भिक्षु से पूछा - ‘मैं राजा हूं, मेरे पास सब कुछ है, किंतु फिर भी मेरे मन में शांति नहीं है। 

मुझे क्या करना चाहिए?’ बौद्ध भिक्षु बोला - ‘आप अकेले में बैठकर चिंतन करें।’ राजा अगले दिन सुबह अपने कक्ष में आसन जमाकर बैठ गया। तभी उसके महल का एक कर्मचारी सफाई के लिए उधर आया। राजा उससे बात करने लगा। कर्मचारी से राजा ने उसकी परेशानियां पूछीं, जिन्हें सुनकर उसका दिल भर आया। इसके बाद राजा ने हर कर्मचारी के कष्ट व दुख जाने। 

सबकी व्यथा सुनने के बाद राजा ने निष्कर्ष निकाला कि वेतन कम होने से सभी आर्थिक रूप से त्रस्त थे। राजा ने तत्काल उनके वेतन में वृद्धि की, जिससे वे सभी खुश हो गए और उन्होंने राजा के प्रति आभार व्यक्त किया। अगले दिन जब राजा की बौद्ध भिक्षु से भेंट हुई, तो उसने पूछा - ‘राजन! आपको कुछ शांति प्राप्त हुई?’ राजा बोला - ‘मुझे पूर्ण रूप से तो शांति नहीं मिली, किंतु जबसे मैंने मनुष्य के दुखों के स्वरूप को जाना है, अशांति थोड़ी-थोड़ी जाती रही।’ तब भिक्षु ने समझाया - ‘राजन! आपने शांति के मार्ग को खोज लिया है। बस, उस पर आगे बढ़ते जाएं। एक राजा तभी प्रसन्न रह सकता है, जब उसकी प्रजा सुखी हो।’ सार यह है कि मन की शांति स्वयं के सुख से अधिक दूसरों के दुख हरकर उन्हें सुखी बनाने से मिलती है, इसलिए यथाशक्ति दूसरों की सहायता करें।

साभार : भीम राव ( फेस बुक स्टेट्स से )

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