Wednesday, November 5, 2014

निर्णय लेना और आरोप लगाना - “ making decisions & blaming others ”

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किसी भी समस्या के समाधान के लिये निर्णय लेने की दृढ क्षमता होनी चाहिये । लेकिन  हम लोगों मे   बिरले ही होगें जो जीवन मे स्वंय ही निर्णाय़ लेने का साहस कर पाते हैं । अधिकतर परिस्थितयों मे  हम दूसरों पर यह बोझ दे कर स्वंय मुक्त होना चाहते है । शायद इसका एक कारण यह भी है कि अगर कल को कुछ गलत हो जाय तो दूसरों पर दोषारोपण करना आसान है । मै स्वंय इन परिस्थितयों से दूर ही रहना पसंद करता हूँ जबकि  मेरे कई मित्र मुझे अपने निर्णयों मे मुझे शामिल करना चाहते हैं ।
अकसर सडक मे  चौराहे पर खडे होकर हमे यह समझ मे नही आता कि हम किस ओर जायें । कभी सोचा है कि  हम क्या करते हैं ? कुछ देर रुकते हैं और इंतजार करते है आने वाली बस का । हर बस के शीर्ष पर गंतव्य स्थान  के बारे मे लिखा रहता है कि वह अमुक जगह जायेगी । अगर यह गंतव्य स्थान हमे रुचिकर लगता है तो हम उस बस का चुनाव करते हैं , और अगर  नही तो अगली बस का इंतजार करते हैं । अकसर यह इतंजार कोई बहुत लंबा नही होता और हमें जल्द ही दूसरी बस के आने की सूचना मिल जाती है ।
जीवन कॆ परिपॆक्ष मे इसकॊ देखे ।  जब हमको कोई निर्णय लेना पडे और उसके समाधान के बारे मे शंकालू हों तो थोडा विराम लें और  प्रतीक्षा करें । अकसर हमारे अनुमान से भी जल्दी समाधान हमारे सामने दिखने लगता है । हर समाधान की एक निश्चित मंजिल होती है । अगर यह मंजिल  हमरे अनुरुप है तो हमे निर्णय लेने मे कोई देरी नही करनी चाहिये और अगर अनुरुप नही है तो दूसरे विकल्प की प्रतीक्षा करनी चाहिये ।
मेरे स्वंय के निर्णय लेने का तरीका यही है । मै किसी भी समाधान के नतीजे लेने के पहले सारी जानकरियों को एकत्रित करता हूँ । धैर्यता के साथ इंतजार करता हूँ और अकसर अच्छे परिणाम मुझे कभी  निराश नही  करते । इन तरीको को अगर आप जीवन मे उतारगे तो मुहे विशवास  है कि आप भी कभी निराश नही होगे ।
मेरा यह तरीका दूसरॊ के लिये भी उदाहरण बन सकता  है लेकिन आप स्वतंत्र है अपने तरीकों का चुनाव करने के लिये । लेकिन अगर आप के तरीके काम न आये तो मुझे दोष न दीजीयेगा ।
मुझे याद है कि एक कालेज की छात्रा एक दिन  हमारे विहार के  एक भिक्खु से मिलने आई थी । उसकी अगले दिन कोई परीक्षा थी और वह चाहती थी कि वह भिक्खु उसके लिये प्रर्थाना और संगायन करे । उस भिक्खु ने  बिना दान लिये  उसको उपकृत किया ताकि शायद इससे उसको कुछ आत्मविशवास मिल सके ।
हममे से किसी ने भी उस छात्रा को फ़िर नही देखा । लेकिन मुझे उसके दूसरे मित्रों से मालुम पडा कि वह उस परीक्षा मे असफ़ल हो गई थी और अकसर अपने साथी मित्रों से  विहार के भिक्खुओं के अनुभवहीन होने की शिकायत भी करती रहती थी ।  उसके मित्रों ने मुझे बताया कि उसको पढने लिखने मे रुचि बिल्कुल भी नही थी और उसको उम्मीद थी कि उसके जीवन का यह कम महत्वपूर्ण काम यह भिक्खु अपनी प्रार्थना से पूरा कर देगें ।
हम अपनी संन्तुष्टि के लिये दूसरॊ पर दोषारोपण कर सकते हैं लेकिन दूसरों पर दोष मढने से किसी भी समस्या का निवारण नही कर सकते । मेरे गुरु अजह्न्ह शाह  कहते थे  कि दूसरों पर दोषारोपण करना वैसा ही है जैसे किसी इन्सान के खुजली कूल्हे मे हो रही हो और वह सर को खुजलाये ।
आज बस इतना ही …
who odered this truckload of Dung[2]
अजह्न्ह ब्रह्म की पुस्तक , “ Who ordered this truckload of Dung ? “ मे  से ली गई कहानी   “ making decisions & blaming others ” का हिन्दी अनुवाद ।

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