Thursday, January 8, 2015

सारनाथ: प्राचीन धमेख स्तूप में दरार

 
dhamekh-stupa_06_03_2014
सारनाथ की पुरातात्विक धरोहरों में से एक महाकाय धमेख स्तूप की दीवार पर उभरी दरार ने स्तूप के अस्तित्व को लेकर शंकाएं पैदा कर दी हैं। इसके अलावा अशोक  स्तंभ पर जो राष्ट्रीय चिह्न विराजमान था, उस स्तंभ में पड़ी दरारें बढ़ती जा रही हैं। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारतीय पुरातत्व विभाग के आला अधिकारी राष्ट्र की धरोहरों के प्रति कितने सचेत हैं।
दिल्ली व पटना अंचल के अधिकारियों के सारनाथ दौरे तो होते हैं लेकिन इन्हें बचाने के लिए अब तक कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया। जब यह हाल है तो सारनाथ स्थित धरोहरों को विश्व धरोहर की सूची में कैसे स्थान मिलेगा। इनकी खास्ता हालत पर चिंतन मनन के लिए जिम्मेदार अफसरों के पास समय नहीं है लेकिन पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग बुधवार को एक बार फिर विश्व धरोहर दिवस मनाकर औपचारिकता पूरी कर लेगा। लोगों के अनुसार खानापूर्ति के बजाय सुधार के कारगर उपाय किए जाएं तो संभवत: सारनाथ विश्व धरोहर सूची में शामिल हो सकेगा। अशोक स्तंभ: सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ के नीचे के भाग में दरारें बढ़ती जा रही हैं। इसके बारे में बताया जाता है कि यह सम्राट अशोक द्वारा 272-233 ईसा पूर्व में बनवाया गया था। इसकी ऊंचाई 15.25 मीटर थी। इस एकाश्म स्तंभ के शिखर पर चार सिंहों वाला प्रसिद्ध शीर्ष सुशोभित था। यह मौर्यकाल को एक उत्कृष्ट नमूना है जो भारत का राष्ट्रीय चिहृन भी है। दो दशक पूर्व मामूली रूप से पड़ी दरारें अब काफी लंबी व चौड़ी हो चुकी है। प्रदूषण की मार झेल रहे इस स्तंभ को बचाने को कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।
धमेख स्तूपत्र भगवान बुद्ध के प्रथम धर्मो उपदेश की याद में बना गुप्तकाल का उत्कृष्ट नमूना है। इसका व्यास 28.5 मीटर, ऊंचाई 33.35 और भूमिगत भाग सहित कुल ऊंचाई 42.60 मीटर है। आधार से 6 मीटर की ऊंचाई पर आठ दिशाओं में आठ आले (ताखा) हैं। इसी के साथ ही चारों ओर पत्थर पर ज्यामितीय स्वास्तिक पत्र वल्लरी, पुष्प लता, मानव व पक्षी बडे़ ही सुंदर रूप से अलंकृत हैं। इसकी दुर्दशा के लिए भी पुरातत्व विभाग ही जिम्मेदार है। लगभग आठ वर्ष पूर्व रासायनिक परिरक्षण में रसायन का मिश्रण सही न होने के कारण तीन माह बाद ही कलाकृतियां काली पड़ने के साथ ही उनका क्षरण शुरू हो गया, जो अब तक बरकरार है।
मूलगंध कुटी अवशेष- भगवान बुद्ध की ध्यान साधना स्थल पर निर्मित एक विशाल मंदिर का यह भग्नावशेष है। इतिहासकार ह्वेन सांग के अनुसार इसकी ऊंचाई 61 मीटर थी। इसमें लगे अलंकृत ईटों और बनावट को देखने के बाद इतिहासकार इसे गुप्तकाल का मानते हैं। कलाकृति युक्त ईटें नोना लगने के कारण नष्ट हो रही हैं। इसी काल में बनी पंचायतन मंदिर की भी यही स्थिति है।
यही नहीं प्राचीन अवशेष की दीवारों के जीर्णोद्धार में सींमेट-बालू का प्रयोग किए जाने से इतिहासकार व इतिहास के विद्यार्थी काल का निर्धारण करने में भ्रमित हो जा रहे हैं।
साभार स्त्रोतदैनिक जागरण




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