Monday, February 8, 2010

बुद्ध के पंचशील सिद्धांत , सदाचार और नैतिक सदगुण ….

हम अपना जीवन कैसे निर्वाह करते  हैं यह हमारे जीवन के प्रति होश रखने पर निर्भर करता है । अगर हमारी इच्छायें हमारे दैनिक कार्यों के बीच मे आती है और व्याधान उत्पन्न करती हैं तो जाहिर है इसका फ़ल हमारे जीबन के ऊपर भी पडता है और हमे पूर्ण रुप से व्यवस्थित नही हो पाते हैं ।
बुद्ध द्वारा प्रदान  किये गये पंचशील सिद्दांत जीवन के प्रति सहज दृष्टिकोण का परिचय देते हैं और फ़िर इससे क्या फ़र्क पडता है कि हम किस मार्ग या धर्म के अनुयायी है । यह पंचशील सिद्दांत क्या गलत है या क्या सही है की परिभाषा तय नही करते बल्कि यह हमेसिखाते हैं कि अगर हम होश रखें और जीवन को गौर से देखें तो हमारे कुछ कर्म हमको या दूसरों को दु:ख पहुंचाते हैं और कुछ हमे प्रसन्नता का अनुभव भी कराते हैं ।
बुद्ध के पाँच उपदेश हैं :
  • प्राणीमात्र की हिंसा से विरत रहना ।
  • चोरी करने या जो दिया नही गया है उसको लेने से  विरत रहना ।
  • लैंगिक दुराचार या व्यभिचार से विरत रहना ।
  • असत्य बोलने से विरत रहना ।
  • मादक पदार्थॊं  से विरत रहना ।

बुद्ध के यह पाँच उपदेशों को हम व्यवाहार  के "प्रशिक्षण के नियम" के रुप मे समझे न कि किसी आज्ञा के रुप मे । यह ऐसा अभ्यास है जिसका विकास करके ध्यान, ज्ञान, और दया को पा सकते हैं ।
हम इन पाँच उपदेशों को कैसे समझते है यह हमारे विवेक पर निर्भर करता है । जैसे कुछ लोग चीटीं को मार नही सकते लेकिन माँस खाते हैं  या फ़िर कुछ सिर्फ़ शाकाहारी ही होते हैं । कुछ मदिरा को हाथ भी नही लगाते और कुछ दिन मे सिर्फ़ एक आध पैग लगाते हैं क्योकि इससे उनको लगता है कि इससे उनको आराम मिलता है या कुछ हमेशा नशे मे धुत  रहते हैं । यह पाँच उपदेश यह नही सिखाते कि क्या सही है बल्कि अगर हम ईमानदारी से तय करे कि हमारे लिये क्या मददगार है और क्या हानिकारक ।
इसी तरह अगर हमे दूसरों की आलोचना करने की गहरी आदत है तो हम चौथे उपदेश को अभ्यास के लिये चुन सकते हैं । और अगर हमे टी.वी. या इन्टर्नेट का नशा सा है तो हम पाँचवे नियम को भी चुन सकते हैं । बुद्ध ने जब यह पाँच उपदेश दिये थे तन उनका तात्पर्य मादक तत्वों से ही रहा होगा लेकिन वक्त के साथ मनोरंजन की गतिविधिया भी असंख्य हो गयी ।
अगर हमसे कोइ सिद्दांत टूट भी जते है तब इस बात का अवशय ख्याल रखें कि हम अपराध बोध और पछतावे मे अन्तर अवशय रखें ।
इन उपदेशॊ का प्रयोजन हमे प्रसन्न रखना है और दुख से दूर रखना है । अगर हमारी वजह से किसी को चोट पहुची हो तो हमे दुख भी होता है और स्वाभाविक रूप से पश्चाताप   भी । हम इस बात का ध्यान रखे और इससे सबक लें । पछ्तावे के यह क्षण बिना किसी अवशिष्ट भावनाओं को छोड़कर चले जाते हैं । लेकिन कभी –२ पछतावा और प्रायशिचित आत्म घृणा और दुख का कारण बनाता है । तब हम इस बात का ध्यान रखें और  आत्म घृणा और अपराध बोध की बेकार की आदत से बचें क्योंकि यह भी आदत स्व दुख पहुँचाने की आदत सी है ।