Tuesday, February 28, 2012

जेन कथा : ग्रंथ का प्रकाशन

जापान में टेटसुगेन नाम का एक जेन शिष्य था। एक दिन उसके मन में ख्‍याल आया कि धर्म सूत्र केवल चीनी भाषा में ही हैं, उन्हें अपनी भाषा में प्रकाशित करना चाहिए। सूत्र के सात हजार ग्रंथ प्रकाशित करने का अनुमान लगा।
ग्रंथ के प्रकाशन के लिए टेटसुगेन देश में घूमकर धन इकट्‍ठा करने निकला। लोगों ने उदार हृदय से टेटसुगेन की मदद की। किसी-किसी ने तो उसे 100 सोने के सिक्के तक दिए। लोगों को टेटसुगेन ने बदले में धन्यवाद दिया। वह इस काम में दस साल तक लगा रहा और तब जागर टेटसुगेन के पास ग्रंथ प्रकाशन के लिए पर्याप्त धन इकट्‍ठा हो गया।
उसी समय देश में एक नदी में बाढ़ आई। बाढ़ अपने पीछे अकाल छोड़ गई। टेटसुगेनने जो धन ग्रंथ प्रकाशन के लिए इकट्‍ठा किया था वह लोगों की सहायता में खर्च कर दिया। इसके बाद जब ‍परिस्थितियाँ सामान्य हुईं तो वह फिर से ग्रंथ के प्रकाशन के लिए धन संग्रह करने निकला।
टेटसुगेन को धन इकट्ठा करते हुए कुछ साल बीत गए। इधर फिर से देश में एक महामारी फैल गई। टेटसुगेन ने अभी तक जो भी धन इकट्‍ठा किया था वह फिर से लोगों की सेवा में खर्च कर दिया। इस तरह उसने कई लोगों को मरने से बचाया।
ग्रंथ के प्रकाशन के लिए टेटसुगेन ने तीसरी बार धन इकट्‍ठा करने का निश्चय किया। बीस साल बाद जाकर उसकी ग्रंथ प्रकाशित करने की इच्छा पूरी हो पाई। उसने ग्रंथों के संकलन का पहला संस्करण निकाला और वह क्योटो की ओबाकू विहार में आज भी देखा जा सकता है। जापान में आज भी लोग टेटसुगेन को याद करते हुए कहते हैं कि उसने तीन बार सूत्रों के ग्रंथ प्रकाशित करवाए। तीसरा ग्रंथ हमें दिखता है, जबकि पहले दो ग्रंथ जो ज्यादा महत्वपूर्ण हैं हमें दिखलाई नहीं पड़ते।

साभार : हिन्दी वेब दुनिया

Sunday, February 26, 2012

सेब का वृक्ष

apple_tree_1b

 

मैं लक्ष्य तक पहुँचने में और अधिक किस तरह प्रभावी हो सकता हूँ ?" एक ज़ेन छात्र ने अपने गुरु से पूछा.
" क्या तुमने  कभी सेब के वृक्ष को सेब के फ़ल के अतिरिक्त किसी और फ़ल का उत्पादन करते हुये देखा है ? ” जेन गुरु ने कहा ।

"नहीं," छात्र ने कहा. "लेकिन इसका मेरे प्रशन के साथ क्या संबध है ? "
” फ़िर तुम किस तरह के वृक्ष हो ? ” जेन गुरु ने एक भेदी मुस्कान के साथ पूछा !!

John Weeren की जेन कहानी “ apple tree ” का हिन्दी मे अनुवाद ।

Wednesday, February 22, 2012

धम्म जीवन कैसे जियें– डां के.श्री धम्मानन्द

dhamm jeevan kaise jiyen

डां के.श्री धम्मानन्द जी की “ धम्म जीवन कैसे जियें ” मूलत: ‘How to practice Buddhism ‘ का हिन्दी अनुवाद है । जैसा कि पुस्तक के नाम से स्पष्ट है कि यह पुस्तक बुद्ध धम्म को प्रतिदिन के व्यवहार में प्रयुक्त करने हेतु दिशानिर्देश प्रस्तुत करती है । बौद्ध आध्यात्मिक साहित्य मे बहुत कुछ लिखा गया है लेकिन दिशा निर्देशों के अभाव मे सब कुछ स्पष्ट नही है । श्री प्रेम गोपाल दुग्गल जी द्वारा अनुवादित और श्री राजेश चन्द्रा जी द्वारा संपादित डां के.श्री धम्मानन्द जी की यह पुस्तक बुद्ध धम्म के कई अनछुये पहुलऒं को छूती है जिनमें सामाजिक , बौद्धिक , और स्थानीय परम्परायें भी शामिल है ।

डाउनलोड लिंक : http://www.box.com/s/een214d0g74bamzasjgv

Dhaam Jeevan Kaise Jiyen

Monday, February 20, 2012

धम्म का वास्तविक अर्थ …

आचार्य बोधिधम्म ने नौ वर्षों तक के अपने प्रवास में चीन में मात्र पाँच शिष्य और एक शिष्या को दीक्षा दिया । भारत आते समय उन्होनें अपने सभी शिष्यों से एक ही प्रशन किया – “ तुमने धम्म का क्या अर्थ समझा? ”

प्रथम शिष्य ताओ फ़ू ने कहा , “ धम्म भाषा और शब्दों से परे है लेकिन वह भाषा और शब्द से पृथक नही है ।”

बोधिधम्म ने कहा , “ तुमने धम्म की त्वचा को स्पर्श कर लिया है । ”

शिष्या त्संग चीह ( सोजी ) ने कहा , “ अक्षोभ्य बुद्ध भूमि का दर्शन धम्म है , उनके दर्श्न की पुनरावृति नहीं होती । ”

बोधिधम्म ने कहा , “ तुमने धम्म का ह्र्दय छू लिया । ”

तीसरे शिष्य ताओ यू ने कहा , “ मौलिक रुप से पाँच तत्व शून्य है और पाँचवे का अस्तित्व नही है । धम्म इन पाँचों तत्वों से परे है ।”

बोधिधम्म ने अनुमोदन किया , “ तुम धम्म की अस्थियों तक पहुँच गये हो “

हुई को दो कदम आगे बढा , बोधिधम्म के पाँव छुये फ़िर दो कदम पीछे हो कर चुपचाप खडा हो गया , कहा कुछ नहीं ।

बोधिधम्म ने कहा , “ तुमने धम्म का मर्म पा लिया "। ”

शिष्य हुई को अपना उत्तराधिकार सौंप कर आचार्य बोधिधम्म वापस भारत आ गये और हिमालय मे कही विलीन हो गयॆ ।

यह भिन्न –२ प्रसंग बुद्ध धम्म के केन्द्रीय तत्व की ओर संकेत दे रहे हैं – चित्त का परिशोधन , अकुशल कर्मों से विरति और कुशल कर्मों का सम्पादन ।

Saturday, February 18, 2012

बचना

 

Escape-to-Meditation

एक जेन छात्र ने अपने गुरु से पूछा .“ क्या जेन ध्यान का मकसद स्वर्ग प्राप्ति की अभिलाषा है ? “

उसके गुरु ने कहा , “ नहीं “

“ तो क्या जीवन की परेशानियाँ और अंशाति से बचने का उपाय जेन ध्यान  मे है ? ”

गुरु ने कहा , “ बचना कैसा ? “ जेन वास्तविकता को उसी रुप में  स्वीकार करने की कला है । ”

John Weeren की  जेन कहानी  “ escape “ का हिन्दी अनुवाद

 

.

Wednesday, February 15, 2012

बौद्ध - विनय एवं आचरण- डां के. श्री. धम्मानन्द

Image1

डां के. श्री. धम्मानन्द जी की यह लघु पुस्तिका ’ बौद्ध विनय एवं आचरण ’ उनकी अंगेजी मे लिखी ’ Moral & Ethical conduct of a Buddhist ‘ का हिन्दी  मे अनुवाद है । डां श्रीमती इन्दु अग्रवाल ने इस पुस्तिका का सुरुचिपूर्ण भाषा मे प्रवाहमेय अनुवाद किया है और हमेशा की तरह श्री राजेश चन्द्रा जी ने इस पुस्तिका का उत्कृष्ट रुप से संपादन किया है ।

गत सप्ताह  मेरे अभिग्न मित्र श्री  राजेश जी ने मुझे दो पुस्तिकायें भेटं स्वरुप दी । पिछ्ले  काफ़ी समय से हम नेट के माध्यम से जुडे रहे लेकिन अधिक व्यवस्सता  के कारण मिलना संभव न हो पाया । गत सप्ताह यह मिलन आकस्मिक और बहुत ही सुखद पूर्ण  रहा । पिछ्ले साल श्रावस्ती भ्रमण  के दौरान जिस तरह वह मेरे साथ फ़ोन के माध्यम से लगातार सुबह से रात तक जुडे रहे उससे मुझे कही नही लगा कि हम दोनों मे पूर्व  का  परिचय नही है ।

लेकिन बात पहले ’ बौद्ध विनय एवं आचरण ’ की । डां के. श्री. धम्मानन्द जी इस पुस्तिका का केन्द्रीय विषय बौद्धों की आचरण नियमावली है । यह पुस्तिका न सिर्फ़ भिक्खुओं के लिये उपयोगी है बल्कि उपासकों के लिये भी लाभकारी है । जनमानस को भगवान बुद्ध का यही संदेश मिलता है “ सत्कर्म करो , शुद्ध विचार रखो और दुषकर्म से दूर रहो । ” बुद्ध के समय मे भी ये शब्द उतने ही सच थे जितने आज हैं और कल भी रहेगें ।

इस पुस्तिका की scanned image बहुत ही उत्कृष्ट quality की नही है लेकिन जैसे ही यह सिगांपुर से  श्री टी वाई ली की साइट पर उपलोड होगी तब उसका डाउनलोड लिंक यहाँ उपलब्ध करा दिया जायेगा ।

डाउनलोड लिंक : http://www.box.com/s/lcp84ip2t6cg676j5rs9

बौद्ध नियम एवं आचरण