आचार्य बोधिधम्म ने नौ वर्षों तक के अपने प्रवास में चीन में मात्र पाँच शिष्य और एक शिष्या को दीक्षा दिया । भारत आते समय उन्होनें अपने सभी शिष्यों से एक ही प्रशन किया – “ तुमने धम्म का क्या अर्थ समझा? ”
प्रथम शिष्य ताओ फ़ू ने कहा , “ धम्म भाषा और शब्दों से परे है लेकिन वह भाषा और शब्द से पृथक नही है ।”
बोधिधम्म ने कहा , “ तुमने धम्म की त्वचा को स्पर्श कर लिया है । ”
शिष्या त्संग चीह ( सोजी ) ने कहा , “ अक्षोभ्य बुद्ध भूमि का दर्शन धम्म है , उनके दर्श्न की पुनरावृति नहीं होती । ”
बोधिधम्म ने कहा , “ तुमने धम्म का ह्र्दय छू लिया । ”
तीसरे शिष्य ताओ यू ने कहा , “ मौलिक रुप से पाँच तत्व शून्य है और पाँचवे का अस्तित्व नही है । धम्म इन पाँचों तत्वों से परे है ।”
बोधिधम्म ने अनुमोदन किया , “ तुम धम्म की अस्थियों तक पहुँच गये हो “
हुई को दो कदम आगे बढा , बोधिधम्म के पाँव छुये फ़िर दो कदम पीछे हो कर चुपचाप खडा हो गया , कहा कुछ नहीं ।
बोधिधम्म ने कहा , “ तुमने धम्म का मर्म पा लिया "। ”
शिष्य हुई को अपना उत्तराधिकार सौंप कर आचार्य बोधिधम्म वापस भारत आ गये और हिमालय मे कही विलीन हो गयॆ ।
यह भिन्न –२ प्रसंग बुद्ध धम्म के केन्द्रीय तत्व की ओर संकेत दे रहे हैं – चित्त का परिशोधन , अकुशल कर्मों से विरति और कुशल कर्मों का सम्पादन ।
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