Tuesday, December 6, 2011

बुद्ध का भिक्षा पात्र वजन तीन सौ किलोग्राम

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साभार : विस्फ़ॊट.काम

अफगानिस्तान के काबुल संग्रहालय में रखे महात्मा बुद्ध के भिक्षा पात्र से जुडे कई अनुत्तरित सवालों के उत्तर तलाशने में भारत का विदेश मंत्रालय इन दिनों जुटा हुआ है। हरे ग्रेनाइट से बने करीब 300 किलोग्राम वजनी इस भिक्षा पात्र के बारे में माना जाता है कि वैशाली के लोगों ने बुद्ध को भेंट दिया था। इस बारे में विदेश मंत्रालय भी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया है। इस भारी भरकम भिक्षा पात्र के उद्गम स्थान को लेकर तमाम सवाल बने हुए हैं। मंत्रालय ने इस विषय में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से जानकारी मांगी है।

वैशाली से राजद सांसद रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा ‘इस विषय को मैंने संसद में उठाया है । मैंने विदेश मंत्रालय से भी इसके बारे में जानकारी मांगी लेकिन अभी तक कुछ ठोस सामने नहीं आया है।’ विदेश मंत्रालय ने सिंह को यह जानकारी दी कि काबुल स्थित भारतीय दूतावास ने इस मामले की पड़ताल की है और यह पता चला है कि जिस पात्र के महात्मा बुद्ध का भिक्षा पात्र होने का दावा किया गया है, वह अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति नजीबुल्ला के शासनकाल में कंधार में था जिसे बाद में काबुल लाया गया। लोकसभा में रघुवंश प्रसाद सिंह के प्रश्न के उत्तर में भी विदेश राज्य मंत्री परनीत कौर ने बताया ‘महात्मा बुद्ध का भिक्षा पात्र इस समय काबुल संग्रहालय में है।’ इस भिक्षा पात्र के उद्गम के बारे में भी कई प्रश्न उठाये गए हैं कि 1.75 मीटर व्यास और करीब 300 किलोग्राम वजन वाला यह भिक्षा पात्र किस प्रकार से काबुल पहुंचा और इस पर फारसी और अरबी में उद्धरण किस प्रकार से अंकित किए गए। गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व प्रो. शैलनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि इस विषय पर एलेक्जेंडर कनिंघन में काफी शोध किया है और उनकी व्याख्या ठोस बातों पर आधारित रही है। जहां तक पात्र के आकार का प्रश्न है, पूर्व में भी बड़े आकार के कई ऐतिहासिक चिन्हों को विभिन्न काल में शासक एक स्थान से दूसरे स्थान ले गए। उन्होंने कहा कि चूंकि इस भिक्षा पात्र के कई स्थानों से होकर गुजरने का उल्लेख मिलता है, इसलिए इस पर स्थानीय भाषाओं में कुछ उल्लेख मिलना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हालांकि इस पर और शोध किए जाने की जरूरत है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि इस भिक्षा पात्र पर अरबी और फारसी में कुछ पंक्तियां अंकित हैं। भारतीय दूतावास को इस पात्र के चित्र प्राप्त हुए हैं।

इस बारे में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक अधिकारी का कहना है कि इस विषय में जानकारी जुटाई जा रही है। बौद्ध धम्म मंडल सोसाइटी के श्रावस्ती धम्मिका ने बताया कि भिक्षा पात्र महात्मा बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति से जुड़ा हुआ है । इस पात्र के बारे में कहा जाता है कि कुशीनारा जाते समय वैशाली के लोगों ने महात्मा बुद्ध को भेंट स्वरूप दिया था, जिसे कुषाण शासक कनिष्क पुष्पपुर (वर्तमान पेशावर) ले गया। श्रावस्ती धम्मिका के अनुसार, कई चीनी यात्रियों ने इस भिक्षा पात्र को तीसरी से नौवीं शताब्दी के बीच पेशावर और बाद में कंधार में देखने का दावा किया। इस पात्र में गांधार कला की झलक भी मिलती है। मध्ययुग में इस भिक्षा पात्र के कंधार के बाहरी क्षेत्र में बाबा का मकबरा में देखे जाने का उल्लेख किया गया है। उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेज अधिकारी एलेक्जेंडर कनिंघम ने अपने आलेख ‘मिडिल ला, मिडिल वे’ में पृष्ठ संख्या 136 में इस भिक्षा पात्र का उल्लेख किया है । 1980 के अंत में अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति नजीबुल्ला इस पात्र को काबुल ले आए और इसे काबुल के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा।  तालिबान के शासनकाल में उसके संस्कृति मंत्री ने बौद्ध धर्म से जुड़े सभी प्रतीक चिन्हों को तोड़ने का आदेश दिया था । लेकिन महात्मा बुद्ध के इस भिक्षा पात्र पर अरबी और फारसी में कुछ पंक्तियां लिखे होने के कारण इसे नहीं तोड़ा गया।

Monday, December 5, 2011

ब्यग्घपज्ज सुत्त ( दीघजानु सुत्त ) – गृहस्थ जीवन के कल्याण के लिये उपयोगी बुद्ध देशना -Dighajanu (Vyagghapajja) Sutta: Conditions of Welfare

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बुद्ध ने मानवमात्र के बहुत से पक्षों और शाशवत सरोकारों को सम्बोधित किया है . इनमें से अधिकतर उनके द्वारा दी गई देशनाऒं से सम्बधित है जो उनके अनुयायियों , भिक्षुकों और जिज्ञासुओ को समय-२ पर दी गई हैं .  अन्य धर्मों  की हठीली प्रकृति के विपरीत बुद्ध धम्म व्यवहारिक सादगी पर प्रकाश डालता है .
व्यग्धपज्ज सुत्त मे बुद्ध समद्ध गृहस्थ को निर्देश देते हैं कि कैसे वे अपनी समृद्दि का संरक्षण और संवर्धन कर सकते हैं और कैसे धन के विनाश से बच सकते हैं . अकेला धन न तो सम्पूर्ण मानव का निर्माण करता है और न ही समरसता पूर्ण समाज का . धन का स्वामित्व मनुष्य की तूष्णा को बेलगाम बढा देता है और बदले मे छॊड जाती है असंतुष्ट इन्सान और उसका अविरुद्ध आध्यमित्क विकास . साधन विहीनों की नारजगी से और तृष्णा के असंयगत परिणामों समाज मे विसंगतियाँ जन्म देती हैं  .

व्यग्धपज्ज सुत्त मे बुद्ध समद्ध गृहस्थ को निर्देश देते हैं कि कैसे वे अपनी समृद्दि का संरक्षण और संवर्धन कर सकते हैं और कैसे धन के विनाश से बच सकते हैं .
लेकिन बुद्ध  भौतिक कल्याण के साथ चार आवशयक आध्यात्मिक कल्याणॊं के साधन संलग्न करते हैं : विशवास , शील , उदारता और प्रज्ञा जिनके पालन के साथ सामाजिक विसंगतियाँ भी कम होगीं और भौतिक और अध्यात्मिक निर्देशों का पालन से समाज में आर्दश नागरिक का निर्माण भी होगा .
                           व्यग्धपज्ज सुत
ऐसा सुना जाता है :
एक समय भगवान बुद्ध कोलिय प्रदेश के कर्करपत्र नामक कोलियाँ के एक निगम मे विहार करते थे . तब दीघजानु नामक कोलियपुत्र भगवान के किकट आया और नमन करके एक ओर बैठ गया और भगवान बुद्ध को सम्बोधित किया :
"भन्ते ! हम गृहस्थजन काम भोगों मे लिप्त रहने वाले , पुत्र पौत्रों की भीड मे अपनी जीवन यात्रा करते रहते हैं . माला , गन्ध-विच्छॆदन करना , काशी के चन्दन का लेप , और सोने चाँदी का संग्रह करना ही हमारा जीवन लक्षय बन गया है . हम जैसे लोगों के लिये भी भन्ते आप ऐसे धम्म की देशना करें जिस का आचरण करके हमारा यह जन्म और परलोक भी सुतकर और हितकर हो . ”
भगवान बुद्ध ने उत्तर दिया :
“ एक गृहस्थ के जीवन मे मंगल और सुख के लिये चार साधन व्यग्धपज्ज साहायक होते हैं . यह चार साधन हैं :
“ सतत प्रयास की उपल्ब्धि ( उत्थानपाद – सम्पदा ), उपलब्ध की रक्षा ( आरक्ष-सम्पदा ) , अच्छी मित्रता ( कल्याण मित्रता ) तथा संतुलित जीविका ( समजीविता ) .”
 व्यग्धपज्ज : “ निरतंर  प्रयास की उपल्ब्धि ( उत्थानपाद – सम्पदा ) क्या है , भन्ते ! ”
“ इसमें व्यधपज्ज जिस किसी काम से गृहस्थ आजीविका अर्जित करता है चाहे खेती से , धनुर्विधा से , पशुपालन से , राजा की नौकरी से उसमें उसको पारंगत होना चाहिये और आलस्य न करना चाहिये . उसको अपने कार्य के उचित तौर तरीके जानने चाहिये और अपने कार्य मे निपुणता और दक्षता  उत्पन्न करनी चाहिये .यह  निरतंर  प्रयास की उपल्ब्धि ( उत्थानपाद – सम्पदा ) कहलाती है .’”
व्यग्धपज्ज : “ भन्ते ! आरक्ष-सम्पदा क्या है ? ”
“इसमें ,व्यधपज्ज , जो सम्मपति एक गृहस्थ द्वारा मेहनत , ईमानदारी और सही तरीकों से कमाई गई होती है , उसे वह ऐसा देखभाल करके ऐसा संचालन करता है , ताकि राजा उसको हडप न ले , चोर उसे चुरा न सके , आग उसे जला न सके , पानी उसे बहा न दे और न ही भटके हुये उत्तराधिकारी उसे ले उडॆं . यह आरक्ष-सम्पदा है .”
व्यग्धपज्ज : “भन्ते !! कल्याण मित्रता क्या है ? ”
“इसमें ,व्यधपज्ज , जिस किसी ग्राम या शहर मे गृहस्थ रहता है , वह जुडता है , बातचीत करता है , अन्य गृहस्थों या उनके पुत्रों के साथ बहस करता है ,चाहे चाहे वह वृद्ध या युवा  तथा सुसंस्कृत हों , श्रद्धा सम्पन्न , शील कुशलता से पूर्ण हों ,त्याग और बुद्धि से सम्पन्न हों . वह श्रद्धालुओं की श्रद्धा के अनुसार कार्य करता है , शीलवानों के शील के साथ , त्यागियों के त्याग के साथ , प्रज्ञावानों की प्रज्ञा के साथ . यह कल्याण मित्रता कहलाती है .”
 व्यग्धपज्ज: “भन्ते !! समजीविता क्या है ? ”
यहाँ पर व्यग्धपज्ज , एक गृहस्थ अपनी आय तथा व्यय जानते हुये एक संतुलित जीवन यापन करता है , न फ़िजूलखर्ची न कंजूसी , यह जानते हुये कि उसका आय व्यय से बढकर रहेगी , न कि उसका व्यय आय से बढकर .
“ जैसे कि एक तुलाधर सुनार , या उसका शार्गिद तराजू पकडकर जानता है कि कितना झुक गया है , कितना उठ गया है ,उस प्रकार एक गृहस्थ अपनी आय तथा व्यय को जान कर संतुलित जीवन जीता है , न वह बेहद खर्चीला न बेहद कंजूस , इस प्रकार समझते हुये कि उसकी आय  व्यय से बढकर रहेगी न कि उसका व्यय आय से अधिक होगा .”
“ व्यग्धपज्ज , यदि एक गृहस्थ कम आय वाला खर्चीला जीवन व्यतीत करेगा , तो लोग उसे कहेगें , ’ यह च्यक्ति अपनी सम्पत्ति का ऐसे आनन्द ले रहा है जैसे कोई बेल फ़ल खाता है . ’ , यदि व्यग्धपज्ज , एक प्रचुर आय वाला गृहस्थ कंजूसी का जीवन व्यतीत करेगा तो लोग कहेगें कि ’ यह व्यक्ति भुक्खड की तरह मरेगा ’ .”
“ इस प्रकार संचित धन सम्म्पति , व्यग्धपज्ज , चार प्रकार से नाश होती है :
“ १- अधिक भोग विलास
२- मदिरापान की लत
३- जुआ
४- पापी लोगों से दोस्ती , संगति तथा सांठ- गांठ . “
“ जैसे कि एक बडे तालाब मे चार जल प्रवेश तथा चार जल निकास के रास्ते हों , यदि कोई व्यक्ति प्रवेश मार्ग बन्द कर दे तथा निकास मार्ग खोल दे तथा काफ़ी वर्षा न हो , तो तालाब में जल की कमी की उम्मीद रहेगी लेकिन वृद्दि की नही ; वैसे ही संचित सम्म्पति के विनाश के लिये चार रास्ते हैं - अधिक भोग विलास , मदिरापान की लत, जुआ और पापी लोगों से दोस्ती , संगति तथा सांठ- गांठ .
जमा पूंजी की समृद्दि के चार मार्ग हैं :
१.- काम भोगों मे संयम
२- मदिरापान मे संयम
३- जुये मे रत न होना
४- अच्छे लोगों से मित्रता , संगति तथा सांठ-गांठ .”
“ जैसे कि एक बडा तालाब हो, जिसमें चार प्रवेश तथा चार निकास हों . यदि कोई व्यक्ति प्रवेश खोल दे तथा निकास बद कर दे और बारिश भी खूब हो जाये , तो उस तालाब मे अवशय ही जल बढने की संभावना रहेगी तथा घटने की नहीं , इसी प्रकार ये चार बातें जमा पूँजी की वृद्दि के स्त्रोत हैं . ”
“ ये चार बातें व्यग्धपज्ज , एक गृहस्थ के इसी जीवन काल मे कल्याण तथा प्रसन्नता में सहायक हैं . ”
“ आध्यात्मिक विकास के साधन ”
“ इसके अतिरिक्त व्यग्धपज्ज एक गृहस्थ के कल्याण के लिये चार बातें आवाशय्क है :
१. श्रद्धा की उपल्ब्धि ( श्रद्धा सम्पदा )
२. शीलों की उपल्ब्धि ( शील सम्पदा )
३. त्याग की उपलब्धि ( त्याग सम्पदा )
४. प्रज्ञा की उपल्ब्धि ( प्रज्ञा सम्पदा )
व्यग्धपज्ज: “भन्ते !! श्रद्धा की उपल्ब्धि क्या है ?
“ इसमें एक गृहस्थ श्रद्धा सम्पन्न होता है , वह समयक सम्बुद्ध तथागत की बुद्धत्व उपल्ब्धि मे आशवस्त होता है ; यथातथ्य वे सम्युक बुद्ध है , पूर्णतया ज्ञान प्राप्त , विधा तथा आचरणॊं से सम्पन्न , सुगत , लोकों को जानने वाले , सिखाये जाने योग्य मनुष्यों के नायक , देव तथा मनुष्यों के गुरु , सर्वज्ञ तथा धन्य है . इसे कहते हैं श्रद्धा सम्पदा .”
व्यग्धपज्ज: “भन्ते !! शीलों की उपल्ब्धि क्या है ?
“ इसमे एक गृहस्थ प्राणी हत्या से , चोरी से , यौन मिथ्याचार से , झूठ बोलने से तथा नशीले पदार्थ से जो स्मऋतिनाश तथा प्रमाद उत्पन्न करते हैं – विरत रहता है . यह कहलाता है  शील सम्पदा
 व्यग्धपज्ज: “भन्ते !! त्याग की उपलब्धि क्या है ?
“इसमें एक गृहस्थ अपने को चित्तमलों तथा धन लोलोपता से मुक्त रख कर घर मे रहता है, त्याग मे संलग्न, मुक्त हस्त . उदारता मे आनन्दित, जरुरतमदॊं की सहायता करने वाला , दान दक्षिणा मे प्रसन्न . यह कहलाता है – त्याग सम्पदा .”
व्यग्धपज्ज: “भन्ते !!प्रज्ञा की उपल्ब्धि क्या है ?
“ इसमॆ एक गृहस्थ जो प्रज्ञावान है ; वह ऐसी प्रज्ञा से सम्पन्न है , पंच स्कन्धों की उत्पति तथा लय को समझता है ; वह आर्य विपस्सना से सम्पन्न है ; जो दु:ख विमुक्ति का लाभ देती है . इसे कहते हैं प्रज्ञा की उपलब्धि –प्रज्ञा सम्पदा .”
“ यह चार बातें ;व्यधपज्ज ,एक गृहस्थ के अगले जन्मों कल्याण और प्रसन्नता के लिये सहायक हैं .”
अपने कर्तव्यों को ध्यान तथा मेहनत से करने वाला,
बुद्धिमानी से धन संचय करने वाला,
वह संतुलित जीवन च्यतीत करता है ,
संचित का संरक्षण करते हुये ।
श्रद्धा तथा शील से भी सम्पन्न ,
उदार तथा धन्लोलुपताविहीन,
सदा पथ शोधन को प्रवृत,
जो परलोक मे कल्याण्कर है।
यूँ श्रद्धा से ओत-प्रोत गृहस्थ को,
उनके द्वारा , जिनका ’सम्यक सम्बुद्ध ’ समुचित नाम है,
यह आथ बाते बताई गई हैं ,
जो लोक और परलोक मे आनन्दकर है । “
अंगुतर निकाय VIII.54 ( Dighajanu (Vyagghapajja) Sutta: Conditions of Welfare , translated from the Pali by
Narada Thera का हिन्दी अनुवाद :  मंगलमय जीवन –शांति , प्रसन्नता एवं समृद्दि की कुजीं से लिया गया है । साभार : राजेश चन्द्रा जी । )