अनित्यता बौद्ध धर्म की एक महत्वपूर्ण ईकाई है . बुद्ध ने खोजा कि सब कुछ अनित्य है और प्रत्येक वस्तु कुछ और होने की प्रक्रिया मे है. नशवरता का यह बोध हमे अपनी अपने जीवन मे भी दिखता है . हम सब वय: परिवर्तन के दौर मे है . जो हम आज से बीस साल पहले थे वह आज नही है , यहाँ तक कि हमारे विचार हर पल बदलते रहते हैं . प्रकृति मे भी यह बदलाव आसानी से देखा जा सकता है , कली का फ़ूल बनना , फ़ूल का मुरझाना , और यहाँ तक तारे और आकाश गंगा भी परिवर्तन के दौर मे हैं . ज़ेन बौद्ध गुरु - - Thich Naht Hanh के अनुसार हमें अपने आप को सागर की तंरगों के समान सोचना चहिये . लहरों की मुख्य विशेषता इसकी अस्थायी प्रवृति है , इसी तरह हम भी एक दिन नशवरता मे मिल जाते हैं जैसे कभी हुये ही न हों .
एक सूफ़ी कहानी कहती हूँ- फरीदुद्दीन अत्तार की लिखी हुई . आज सुबह जब मैने इसे पढा तो लगा कि यह अनित्यता का बोध हमे जीवन मे करा सकती है.
अत्तार ने लिखा की एक दरवेश दिन रात बंदगी करता | जो कुछ उसने अपने गुरुओं से सीखा उसका अभ्यास करता रहा | फिर उसके जी में आया कि ‘अब मैं हज करूँ’ | जब हज के लिए वह निकला तो दूर मुश्किल यात्रा थी|महीनों लगने थे|चलते-चलते एक गाँव पहुँचा| थका हुआ था, भूख भी लगी हुई थी| अनजान रास्ता था| उसने एक राहगीर से कहा कि ‘मुझ दरवेश को ठहरने के लिए कहाँ जगह मिल सकती है?’ उसने जवाब दिया- ‘यहाँ शाक़िर नाम का इनसान रहता है, तू उसके घर चला जा|वह इस इलाके का सबसे अमीर आदमी है और बहुत दयावान और दिलदार आदमी है |वैसे तो इस इलाके का सबसे बड़ा सेठ हमदाद है लेकिन हमदाद की जगह तू शाक़िर के घर जा|
दरवेश शाक़िर के घर गया| शाक़िर का अर्थ होता है – जो शुक्राना करता रहता है| जब उसके पास पहुँचा तो जैसा उसके बारे में सुना था, बिल्कुल वैसा ही निकला| शाक़िर ने उसे अपने घर में पनाह दी | भोजन दिया, बिस्तर दिया| शाक़िर की बीवी, बच्चों ने उसकी बहुत ख़ातिर की |दो दिन वह ठहरा, तीसरे दिन जब वह चलने लगा तो उन्होंने उसको रास्ते के लिए खाना , पानी, खजूरें आदि सब दिया| चलते समय दरवेश ने कहा कि ‘शाक़िर! तू कितना अच्छा है| तू कितना अमीर है, तूने मुझे इतना कुछ दिया कि तुझे इस बारे में ज़रा भी सोचना नहीं पड़ा. जबकि तू मुझे जानता भी नहीं है|
शाक़िर ने अपने मकान की ओर नज़र दौड़ाई और कहा कि ‘गुज़र जाएगा|’ दरवेश पूरे रास्ते सोचता रहा क्योंकि उसके मुर्शदों ने कहा था कि जल्दबाज़ी में कोई निर्णय मत लिया करो और जब किसी से बात सुनो तो उसकी गहराई में जाया करो| वह अपने दिल की धड़कनों को सुनते हुए, ज़िक्र करते हुए, मन के किनारे बैठा और मन के विचारों को देखता रहा, देखता रहा और सोचता रहा कि शाक़िर ने अपने धन, अपनी अमीरी, अपनी दौलत की ओर इशारा करते हुए ये क्यों कहा कि ‘गुज़र जाएगा’| कहीं कोई आने वाली घटना के बारे में कह रहा था या फिर ऐसे ही बोल गया | मक्के पहुँचा, हज किया, वहीं ठहर गया| फिर एक साल बाद लौटना हुआ| उसके चित्त में यह विचार था कि एक बार मैं शाक़िर को मिलूं| पर जब वहाँ पहुँचा तो उसने देखा कि शाक़िर का मकान है ही नहीं| लोगों ने बताया कि अब वह हमदाद के घर में नौकर है|उन्होंने बताया कि बाढ़ आई थी, उसमे उसका मकान बह गया, भेड़ – बकरियाँ बह गई, बहुत ग़रीब हो गया है |इसलिए उसको नौकरी करनी पड़ी, उसे वहीं जाकर मिल लो |
दरवेश बहुत हैरान हुआ कि इतना नेक आदमी इतने दुख में! फिर वह हमदाद के घर गया और जब शाक़िर को मिला तो उसके बदन पर फटे हुए कपड़े, उसकी बीवी और बेटियाँ भी उसके साथ में थीं| दरवेश ने कहा कि ‘ बड़ा दुख हुआ तेरे जैसे नेक आदमी के साथ इतनी त्रासदी?’ शाक़िर ने गम्भीर स्वर में कहा-‘ यह भी गुज़र जाएगा|’ |
हमदाद भी नेक आदमी था, उसने भी दरवेश को पनाह दी | कुछ समय वह यहीं रहा|फिर जब दरवेश जाने लगा तो शाक़िर ने उतना तो नहीं पर फिर भी उसको कुछ रूखा-सूखा खाने को साथ में दिया | दो-चार साल गुज़र गए पर दरवेश हमेशा शाक़िर को याद करता| फिर एक दिन मक्का जाने का मन हो गया| फिर उसी रास्ते से गुज़रा, फिर हमदाद के घर गया| जब वहाँ पहुँचा तो मालूम हुआ कि हमदाद की तो मौत हो गई है और उसने अपना सब कुछ शाक़िर को दे दिया क्योंकि उसकी अपनी कोई औलाद नहीं थी|
शाक़िर फिर से अमीर हो गया|उसके बदन पर फिर रेशमी वस्त्र, उसकी बीवी फिर सुंदर कपड़ों में है|उसकी बेटियों की शादियाँ अमीरों के घर हो चुकी हैं| दरवेश अंदर गया और कहता कि ‘अरे वाह शाक़िर! इतना अच्छा........ खुदा ने खूब रहमत की तेरे ऊपर|’ शाक़िर ने फिर गंभीर स्वर में कहा- ‘यह भी गुज़र जाएगा|’
कुछ दिन दरवेश उसके घर ठहरा फिर मक्के गया|इस बार वह मक्के करीब दो साल रहा| जब वापिस लौटा तो मन में चाह उठी कि अपने उस दोस्त को मिलूं| जब पहुँचा तो मालूम हुआ कि शाक़िर तो मर चुका है| फकीर ने लोगों से पूछा- ‘उसकी कब्र कहाँ है? मैं उसकी कब्र पर जाकर नमाज़ पढ़ूंगा| दुआ करूँगा अपने उस दोस्त के लिए|' लोगों ने शाक़िर की कब्र का पता दिया| जब कब्र के पास दरवेश पहुँचा तो उस कब्र पर एक तख़्ती लगी हुई थी, जिस पर लिखा था- ‘यह भी गुज़र जाएगा|’ पढ़कर दरवेश बहुत रोया, कहता-‘ यह भी गुज़र जाएगा’, अब इसका गहरा अर्थ और क्या हो सकता है? दरवेश ने बहुत दुआएँ की|
फिर अपने डेरे को निकला तो उसके बाद कई साल गुज़र गए| फिर कई सालो बाद एक काफिला मक्के की ओर जा रहा था तो उसे लगा की जिंदगी की एक हज और कर सकता हूँ| चल तो नहीं सकता पर ऊँट की सवारी मिल गई तो उस पर बैठकर चल दिया| रास्ते में शाक़िर का गाँव आना था, उससे रहा न गया और सोचा कि एक बार तो शाक़िर की कब्र पर फूल चढ़ाऊं और दुआ करूँ| और जब वह वहाँ पहुँचा तो जिस जगह शाक़िर की कब्र थी, अब वहाँ कब्र ही नहीं है|लोगों से पूछा कि कब्र कहाँ गई तो कहते कि तूफान आया था, कहीं ज़मीन धँस गई, टूट-फूट हुई, सब तहस-नहस हो गया| और वह कब्र कहाँ गई, पता नहीं|दरवेश आया भी लम्बे समय बाद था|सब बदल चुका था, जहाँ उसकी कब्र थी, अब वहाँ आबादी हो गई थी और ढूँढने पर भी न मिली|
आज दरवेश को शाक़िर का यह वचन पूरी तरह समझ आ गया कि ‘यह भी गुज़र जाएगा’ उसकी तो कब्र भी गुज़र गई, पता ही नहीं कि कहाँ है