कई दिनों के विहार के बाद भगवान बुद्ध मगध की राजधानी राजगृह से प्रस्थान करने वाले थे। लोगों को पता चला, तो वे उनके लिए भेंट आदि लेकर उनके दर्शन के लिए आने लगे। अपने शिष्यों के साथ बैठे बुद्ध लोगों की भेंट स्वीकार कर रहे थे।
सम्राट बिंबिसार ने उन्हें भूमि, खाद्य, वस्त्र, वाहन आदि दिए। नगर सेठों ने भी उन्हें प्रचुर धन-धान्य और सुवर्ण आभूषण भेंट किए। उस दान को स्वीकार करते हुए बुद्ध अपना दायां हाथ उठाकर इशारा कर देते थे।
भीड़ में एक वृद्धा भी थी। वह बुद्ध से बोली, भगवन, मैं बहुत निर्धन हूं। मेरे पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। आज मुझे पेड़ से गिरा यह आम मिला। मैं उसे खा रही थी कि तभी आपके प्रस्थान का समाचार सुना। तब तक मैंने आधा आम खा लिया था। मेरे पास इस आधे आम के सिवा कुछ भी नहीं है। क्या आप मेरी भेंट स्वीकार करेंगे?
वहां उपस्थित अपार जनसमुदाय और सेठों ने देखा कि भगवान बुद्ध अपने आसन से उठकर नीचे आए और उन्होंने दोनों हाथ फैलाकर वृद्धा का आधा आम स्वीकार किया। सम्राट बिंबिसार ने चकित होकर बुद्ध से पूछा, भगवन, एक से बढ़कर एक अनुपम और बहुमूल्य उपहार तो आपने केवल हाथ हिलाकर ही स्वीकार कर लिए, लेकिन इस वृद्धा के जूठे आम को लेने के लिए आप आसन से नीचे उतरकर आ गए! इसमें ऐसी क्या विशेषता है?
बुद्ध मुस्कराए और बोले, इस वृद्धा के पास जो भी था, वह सब उसने दे दिया। आप लोगों ने जो कुछ भी दिया है, वह तो आपकी अकूत संपत्ति का ही अंश है। उसे देने पर दाता का अहंकार भी पाल लिया। इस वृद्धा ने तो प्रेम और श्रद्धा से सर्वस्व अर्पित कर दिया। फिर भी उसके मुख पर कितनी नम्रता और करुणा है।
Tuesday, February 16, 2016
सबसे बहुमूल्य भेंट
Friday, February 12, 2016
निर्धन कौन ?
एक गरीब आदमी ने भगवान् बुद्ध से पूछा :- "मैं इतना गरीब क्यों हूँ.?",
बुद्ध ने कहा :- "तुम गरीब हो, क्योंकि तुमने देना नहीं सीखा.!"
गरीब आदमी ने कहा :-
"परन्तु मेरे पास तो देने के लिए कुछ भी नहीं है.!"
बुद्ध ने कहा :- "तुम्हारा चेहरा, दूसरों को एक मुस्कान दे सकता है। तुम्हारा मुँह, किसी की प्रशंसा कर सकता है या दूसरों को सुकून पहुंचाने के लिए दो मीठे बोल बोल सकता है। तुम्हारे हाथ, किसी ज़रूरतमंद की सहायता कर सकते हैं......
और तुम कहते हो तुम्हारे पास देने के लिए कुछ भी नहीं.?"
"मन की गरीबी ही वास्तविक गरीबी है। पाने का हक उसी को है.......जो देना जानता है ......... !!"
Friday, February 5, 2016
बुद्ध का पड़ाव देख भावुक हुए विदेशी भिक्षु
सिवान। सिवान के प्राचीन इतिहास में दर्ज बातें बौद्ध ग्रंथ व चीनी तीर्थ यात्रियों द्वारा वर्णित लेख तथा पुरातात्विक साक्ष्य व अवशेषों के आधार पर सिवान बौद्ध स्थल का बहुत बड़ा हब रहा है। विगत वर्ष पपउर में पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन व तितर स्तूप के पास बौद्धकालीन मृदुभाण्ड व खंडित बुद्ध मूर्ति मिलना चर्चा का विषय बना हुआ है तथा अब विदेशी बौद्धों को भी आकर्षित कर रहा है। इसी क्रम में दो दिवसीय प्रवास पर आए विदेशी बौद्धों ने सोमवार की सुबह जीरादेई प्रखंड के तितरा गांव में स्थित तितर स्तूप व अन्य स्तूपों को दर्शन कर आस्था से ओतप्रोत होकर भावुक हो गए। वहां के मिट्टी भी अपने साथ ले गए। पपउर व विजयीपुर गांव में भारतीय संस्कृति के अनुसार विदेशी मेहमानों का भव्य स्वागत किया गया। तितर स्तूप व मुकुट बंधन मुईयागढ़ के पास प्रचुर मात्रा में बौद्धकालीन मृदभाण्ड व मिट्टी के बुद्ध मूर्ति को देखकर विदेशी बौद्ध काफी उत्सुक हुए तथा सिवान ही प्राचीन कुशीनारा विषय पर शोध कर रहे शोधार्थी कृष्ण कुमार सिंह से काफी चर्चा किए। शोधार्थी ने दर्जनों पुस्तकों पुरातत्ववेदाओं का लेख का रीफ्रेंस बौद्धकालीन पुरातात्विक अवशेष को दिखाकर विदेशी पर्यटकों को संतुष्ट किया। वियतनाम से आयी माता बोधी चिंता ने कहा कि वाकई यह शोध का विषय है। श्रीमती माता ने बताया कि बौद्ध ग्रंथों के अध्ययन व यहां प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों से सिवान में प्राचीन कुशीनारा होने की प्रबल संभावना है। गया महाबोधी मंदिर के मुख्य भन्ते अशोक भन्ते ने कहा कि सिवान में पपउर (पावा), ककुत्या (दाहानदी), हिरण्यवती (सोना नदी), शालवन का प्रतीक तितरा बंगरा वागवान का अपभ्रंश बंगरा व अन्य गांव क्रमश: महुआबारी, गुलरबग्गा, मालक नगर (मालक-वन), सिसहानी, सेलरापुर, पिपरहियां आदि सब गांव शालवान (वन) का ही सूचक है। तितरा गांव स्थित तितरा स्तूप, हिरणस्तूप (हिरणौली टोला), व्रजपाणी स्तूप (वाणीगढ़), मुकुट बंधन (मुईयागढ़) आदिर दर्जनों साक्ष्य यहां तीन विशाल स्तूप जो आज भी 30 से 40 फीट ऊंचा तथा इसके गर्भ में बौद्धकालीन अवशेषों का भंडार होना निश्चित ही शोध का विषय है।
साभार : दैनिक जागरण 11 जनवरी 2016