Thursday, November 24, 2016

निधिकण्ड सुत

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धन संग्रह और रुपये की आपाधापी के दौर मे बुद्ध के कुछ वचन याद आ गये जो कि लगभग एक वर्ष पूर्व इसी संस्थान मे भिक्खू उपानान्द जी ने हम सब को पढाये थे । यह आज भी उतने ही सार्गर्भित और प्रसांगिक हैं जितने आज से २५०० साल पहले भी थे ।
निधिकण्ड सुत / The Discourse on the Treasure -Store
इस सुत्त मे धन संग्रह की अपेक्षा पुण्य की मह्त्ता पर प्रकाश डाला गया है ।
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1. दृश्यमान संपत्ति आवश्यकता पड़ने पर काम आएगी , इस प्रकार कोई मनुष्य ऐसे भावना कर के जलाशय के पास गहराई में निधि (खजाने) को गाड़ देता है l
1. A man lays with the consideration that this will be of my help, a treasure store by deep in the water level pit.
2. राजा के द्वारा भौतिक संपत्ति हड़पने या चोर के द्वारा चुराए जाने के डर से या ऋण से छुटकारा पाने या महामारी के समय या किसी विपत्ति में यह निधि काम आयेगी , ऐसी मन में भावना कर के लोग संसार में खजाना इकठ्ठा करते है l
2. In this worls a treasure store laid with an aspiration, that this will aiAlthoughd me for my discharge, if iam denounced from a kings or from a brigand else,if held to ransom or of debts in famines or in accidents.
3. इस प्रकार जलाशय के पास गहराई में सुरक्षित होने पर भी वह भौतिक दृश्यमान निधि सर्वदा मनुष्य के काम नहीं आती है l
3. Although that store of treasure is so well laid by deep in a water level pit, but all of them not always aid the possessor (of it).
4. वह दृश्यमान निधि या तो उस रखे हुए स्थान से गायब हो जाती है, या उसका ध्यान भूल जाता हैं , या उसे नाग हटा ले जाते है या यक्ष उसे चुरा ले जाते है l
4. The treasure some time for some reason gets shifted from its place or the signs of the place is forgotten by the possessor or the Naga–serpents hale it off or the spirits fritter it away.
5. उस दृश्यमान निधि को विरोधी उत्तराधिकारी उठा ले जाते है या तो जिस समय पुण्य का क्षय होता है उस समय वह निधि विनिष्ट हो जाती है l
5. The heirs whom he does not like, lift up secretly while he (true owner) does not see. The whole vanish utterly when his merit exhaust.
6. दान, शील, संयम व दमन से युक्त जो अदृष्ट पुण्य निधि एकत्र की जाती है बही उस स्त्री या पुरुष की सुनिहित निधि है l
6. A treasure store is well laid by men or women (when merits are acquired) by making gifts, by leading virtuous life or with refraining or constraint.
7. इस प्रकार से चैत्य, संघ, अतिथि ,व्यक्ति, माता पिता, भाई तथा बड़ो की सेवा सत्कार कर जो अदृश्य निधि एकत्र की जाती है वही पुण्य कर्म के कर्ता स्त्री या पुरुष की भी सुनिहित निधि है l
7. This treasure store is well laid also by offering service and honour to the shrines, to the order of the bhikkhus or to a person or to a guest or to a mother and to the father or even to the elder brother.
8. यह अदृष्ट पुण्य निधि सुरक्षित है , अजेय है , साथ जाने वाली है l प्राणी काल गति को प्राप्त हो सबको छोड़ कर परलोक जाते समय इसी निधि को लेकर जाता है l
8. This invisible treasure well store thus, is unlossable and follows inseparably the possessor wherever he goes. he goes along with this when at the moment of death he has to go abandoning all.
9. यह निधि असाधारण है , चोरो द्वारा चुराई नहीं जा सकती l इसलिय धीर पुरुष को पुण्ये कर्म कर ऐसी निधि का अधिकारी बनना चाहिये जो उसके साथ जाने वाली हो l
9. No other person can have share in it. this treasure store can not be stolen by the robbers. so let the stead-fast earn such treasure (merits) which follow (them inseparably).
10. ऐसी अदृष्ट पुण्य निधि देव-मनुष्यों को सब कुछ देने वाली है l लोग जो जो चाहते है वह इस निधि से प्राप्त हो जाता है l
10. This is the invisible treasure, which satisfies all desires of gods and man. the hope and aspirations whatever they aspire, all are fullfilled by the grace of this merit.
11. इस निधि से सुंदर वर्ण , मधुर स्वर , अच्छे आकार-प्रकार का शारीर ,सुंदर रूप, अधिपत्य और परिवार यह सब इसी निधि से ही प्राप्त होता है l
11. The beauty of fair complexion, the beauty of voice, the beauty of figure, the beauty of form and lordship and retinue, all are fullfilled by the grace of this merit.
12. इस प्रकार की निधि से प्रदेश , राज्य , ईश्वरत्व , चक्रवती सुख , प्रिय वस्तु , दिव्यो में देवराज्य - यह सब इसी निधि से ही प्राप्त होता है l
12. A local kingship, empireship and even the bliss of wheel turning monarchship and divine rule in heavenly planes of existance, all are fullfilled by the grace of this merit.
13. मनुष्य संपति , देवलोक का आनन्द और निर्वाण सुख - ये सब इससे मिलते हैं ।
13. Human excellence, delight in heavenly world and even bliss of salvation, all are fulfilled by the grace of this merit.
14. कल्याणमित्र की संगति प्राप्त कर जो प्रयत्न करता है उसे विद्या , विमुक्ति , वशीभाव - यह सब इसी निधि से ही प्राप्त होता है l
14. The excellence in friends or the devotion in right reasoning, true knowledge, deliverance, victory over other, all are fulfilled by the grace of this merits.
15. प्रतिसम्भिदा , विमोक्ष, श्रावक पारमी , प्रत्येक बोधि और बुद्ध भूमि - यह सब इसी अदृष्ट पुण्य निधि से ही प्राप्त होता है l
15. The moral mental factors, liberations, perfection of disciples too and both kinds (the individual and the supreme) of enlightment, all are fulfilled by the grace of this merit.
16. इस प्रकार की पुण्य संपत्ति महान अर्थ सिद्ध करने वाली होती है l इसलिय पंडित लोग और धीर पुरुष किये गये पुण्ये (निधि) की प्रशंसा करते है l
16. So great are the excellences that the merit alone yields. for this reason the steadfast and the wise person praise the act of the storing the merit (treasure).
खुद्दक निकाय