Sunday, September 1, 2024

धम्म क्या है ?



आचार्य दीपंकर श्रीज्ञान तिब्बत में प्रवास कर रहे थे। वे सिद्ध अतीशा के नाम से अधिक सुविख्यात है। विक्रमशिला विश्वविद्यालय के वे महास्थविर थे। तिब्बत के सम्राट ल्ह लामा येशे होद द्वारा सन् 1042 में उन्हें श्रद्धापूर्वक तिब्बत आमंत्रित किया गया था।

आचार्य दीपंकर  श्रीज्ञान एक विहार में प्रवास कर रहे थे। उन्होंने देखा, एक भिक्षु प्रतिदिन आता है और स्तूप की परिक्रमा करता है। एक दिन उन्होंने उसको बुलाया और कहा-स्तूप की परिक्रमा करना ठीक है लेकिन अच्छा होता कि तुम धम्म करते।
भिक्षु ने सोचा कि शायद महास्थविर मुझे सूत्रपाठ के लिए प्रेरित कर रहे हैं। अगले दिन से भिक्षु स्तूप के सामने आसन बिछा कर बैठता और धम्म सूत्रों का पाठ करता।
सिद्ध अतीशा ने उसे एक दिन फिर बुलाया और कहा-सूत्रों का पाठ करना मंगलमय है लेकिन अच्छा होता कि तुम धम्म का अभ्यास करते।
भिक्षु ने फिर मनन किया कि शायद भारत से आए यह आचार्य प्रवर मुझे ध्यान करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। अगले दिन से स्तूप के सामने आसन बिछा कर वह ध्यान भावना करने लगा।
ध्यान कर जब वह जाने लगा तो दीपंकर श्रीज्ञान ने उसे फिर बुलाया, कहा-ध्यान करना श्रेष्ठ है लेकिन धम्म का पालन करना सर्वश्रेष्ठ है।
भिक्षु का ज्ञान जवाब दे गया। उसने सिद्ध अतीशा के सामने सिर झुका कर समर्पण कर दिया और विनयपूर्वक पूछा हे महास्थविर। आप ही बताएँ कि धम्म करना क्या है? स्तूप की परिक्रमा करना, सूत्र पाठ करना, ध्यान करना धम्म का पालन नहीं है तो धम्म का पालन क्या है?
आचार्य दीपंकर श्रीज्ञान ने कहा-मन के विकारों का परित्याग करना धम्म का अभ्यास है, आसक्तियों और तृष्णाओं से मन को मुक्त करने का यत्न करना धम्म का पालन है...।
भिक्षु को समझ में आया कि धम्म करना अर्थात मन को विकार मुक्त करने का यत्न करना है।