Tuesday, May 17, 2011

धम्म का फ़ल धम्म के मार्ग पर चलने से ही सम्भव !!



 
बहुम्पि चे संहित [सहितं (सी॰ स्या॰ कं॰ पी॰)] भासमानो, न तक्‍करो होति नरो पमत्तो।
गोपोव
गावो गणयं परेसं, न भागवा सामञ्‍ञस्स होति॥

धर्म्ग्रथॊ का कोई भी कितना पाठ करे , लेकिन प्रमाद के कारण मनुष्य यदि उन धर्म्ग्रथों के अनुसार आचरण नही करता तो दूसरों की गावों गिनने वाले ग्वालों की तरह श्रमत्व का भागी नही होता ।
धम्मपद १९

एक समय भगवान बुद्ध श्रावस्ती में मिगारमाता के पुष्वाराम मे विहार कर रहे थे । धम्म सीखने और सुनने के लिये मोग्गालन नामक ब्राहमण लेखाकार भी अकसर आता रहता था । एक दिन वह जल्दी आ गया और भगवान को अकेले पाकर बोला कि उसके मन मे अकसर यह प्रशन उठता है कि भगवान के पास जो लोग आते हैं उनमे से कुछ परम ज्ञान को  उपलब्ध होते हैं लेकिन कुछ लोग जो नजदीक होते हुये भी इस सुख की प्राप्ति नही कर पाते हैं । तो भगवन , आप जैसा अदभुद शिक्षक और पथपदर्शक होते हुये भी कुछ को निर्वाण सुख प्राप्त होता है और कुछ को नही ? तो भगवन , आप करुणा से ही आप सबको निर्वाण सुख दे कर भवसागर से मुक्ति क्यों नही प्रदान कर देते ।
बुद्ध ने मोग्गालन से पूछा , " ब्राहमण , मै तुमको इस प्रशन का उत्तर दूगाँ , लेकिन पहले तुमको जैसा लगे इस प्रशन का उत्तर दो । ब्राहमण , "यह बताओ कि क्या तुम राजगृह आने - जाने का मार्ग अच्छी तरह से जानते हो ? "
मोग्गालन मे कहा , " गौतम ! मै निशचय ही राजगृह का आने - जाने का मार्ग अच्छी तरह से जानता हू‘ं । "
" जब कोई एक आदमी आता है और  राजगृह का मार्ग पूछता है  लेकिन  उसे छोड्कर वह अलग मार्ग पकड लेता है , वह पूर्व की बजाय पशिचम मे चल देता है । तब एक दूसरा आदमी आता है और वह भी  रास्ता पूछता है और तुम उसे उसे भी ठीक ठाक वैसे ही रास्ता बताते हो जैसा पहले क  बता था और वह भी तुम्हारे बताये रास्ते पर चलता है औए सकुशल राजगृह पहुँच जाता है "
ब्राहमण बोला , " तो मै क्या करुँ , मेरा काम रास्ता बता देना है । "
भगवान बुद्ध बोले , " तो ब्राहमण , मै भी क्या करुँ , तथागत का काम भी केवल मार्ग बताना होता है । "
इसलिए बुद्ध पूर्णिमा को सिर्फ़ प्रासांगिक न बनायें बल्कि उस मार्ग पर चलने की कोशिश करें जिसको भगवान बुद्ध ने देशना दी  है , याद रखें :
 

चार आर्य सत्य
१. दु:ख है।
२. दु:ख का कारण है ।
३. दु:ख का निदान है ।
४. वह मार्ग है , जिससे दु:ख का निदान होता है ।
अष्टागिंक मार्ग
१. सम्यक दृष्टि ( अन्धविशवास तथा भ्रम से रहित )  ।
२. सम्यक संकल्प (उच्च तथा बुद्दियुक्त )  ।
३. सम्यक वचन ( नम्र , उन्मुक्त , सत्यनिष्ठ )  ।
४. सम्यक कर्मान्त ( शानितपूर्ण , निष्ठापूर्ण ,पवित्र )  ।
५. सम्यक आजीव ( किसी भी प्राणी को आघात या हानि न पहुँचाना )  ।
६. सम्यक व्यायाम ( आत्म-प्रशिक्षण एवं आत्मनिग्रह हेतु )  ।
७. सम्यक स्मृति ( सक्रिय सचेत मन )  ।
८. सम्यक समाधि ( जीवन की यथार्थता पर गहन ध्यान ) ।

बुद्ध पूर्णिमा की सप्रेम शुभकामनायें !!

3 comments:

  1. हम प्रयास तो कर ही सकते हैं.....

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.धन्यवाद इस सुंदर विचार के लिये

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  3. This is one reason I love Buddha..he did not promise anything to anyone unless they make the effort for it..one alone is responsible for one's state of mind..there are tools and lot of them that Buddha gave out, but not going to work if one does not decided to use them and expects something to be handed on platter.

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