Tuesday, October 22, 2013

डौंडिया खेडा का सच - क्या डौंडिया खेड़ा प्राचीन बौद्ध केंद्र है ?

Unnao gold treasure
लेख , वृतांत और चित्रों के लिये आभार :
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण एक साधू के सपने के आधार पर उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद की पुरवा तहसील के डौंडिया खेड़ा नामक ग्राम में जो उत्खनन कार्य करवा रहा है उस स्थान के प्रामाणिक इतिहास का निरूपण सुप्रसिद्ध बौद्ध विद्वान प्रोफ़ेसर अँगने लाल जी ने अपनी शोधपरक पुस्तक "उत्तर प्रदेश के बौद्ध केंद्र" की पृष्ठ संख्या 209-10 में पहले ही कर दिया था। इस ग्रन्थ को 'उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान', लखनऊ, ने 2006 में प्रकाशित किया था। ( नीचे देखें ) यह घोर विडम्बना ही है कि जहां एक तरफ समाचारपत्रों व टीवी न्यूज चैनलों की परिचर्चाओं में इस ऐतिहासिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक और उसमे लिखी बहुमूल्य जानकारी का जिक्र तक नहीं किया जा रहा है, वहीँ दूसरी और डौंडिया खेड़ा से सम्बद्ध अनेक कपोलकल्पित कथाओं को बढ़-चढ़कर पेश किया जा रहा है।
चीनी यात्री ह्वेनसांग जब शाक्यमुनि बुद्ध के प्रबुद्ध भारत में आया था तब उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद की पुरवा तहसील के डौंडिया खेड़ा नामक ग्राम गया था और इस डौंडिया खेड़ा नामक ग्राम का उल्लेख अपने यात्रा इतिवृत्त में ओयमुख लिखा है। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग साधू के कहने से सोना खोज रही वास्तविक डौंडिया खेड़ा प्राचीन बौद्ध केंद्र है ! और भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग इस सच्चाई को जानता है ! सम्राट अशोक ने इस डौंडिया खेड़ा नगर के पास ही दक्षिण पूर्व में गंगा के किनारे 200 फिट ऊँचा स्तुपो का निर्माण किया था। यहाँ एक अशोक स्तम्भ है जिसे लोग इसे शिवलिंग कहते है वास्तविक यह शिवलिंग न होकर यह अशोक स्तम्भ है ! अलेक्जण्डर कनिंघम ने इसकी पहचान डौंडिया खेड़ा से की है। चीनी यात्री ह्वेनसांग के विवरण के अनुसार यहाँ 5 बौद्ध संघाराम थे जिनमें 1000 भिक्षु रहते थे। ये स्थाविरवादी (थेरवादी) थे और उसकी सम्मतिय शाखा को मानते थे। यह वही स्थान था जहां तथागत गौतम बुद्ध ने 3 महीने धर्म का उपदेश दिया था। इसके अतिरिक्त यहाँ पर चार पूर्व बुद्धों के स्मारक भी यात्री ने देखे थे। इसके समीप ही एक दूसरा स्तूप भी था जिसमे भगवान बुद्ध के केश, नख धातु सन्निहित किये गए थे। इस स्तूप के पास एक बड़ा संघाराम था जिसमे यात्री ने 200 बौद्ध भिक्षु देखे थे।
डौंडिया खेड़ा जिसका उल्लेख ह्वेनसांग ओयमुख लिखा है यह संघाराम वास्तविक एक बौद्ध विश्वविद्यालय के रूप में था और इस बौद्ध विश्वविद्यालय में बुद्ध की अनमोल अप्रतिम प्रतिमाये थी! बुद्ध की प्रतिमाये ऐसे थी मानो बुद्ध हमें धम्म देशना दे रहे हो, यह डौंडिया खेड़ा का प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय विश्वजगत के लिए शिक्षा और साहित्य की दृष्टि से अनमोल खजाना था। इसी बौद्ध विश्वविद्यालय में बैठकर बौद्धाचार्य बुद्धदास ने सर्वास्तिवाद निकाय के महाविभाषा शास्त्र की रचना की थी। चीनी यात्री ह्वेनसांग के प्रामाणिक इतिहास के प्रमाणों को लेकर प्रोफ़ेसर अँगने लाल जी ने अपनी शोधपरक पुस्तक "उत्तर प्रदेश के बौद्ध केंद्र" की पृष्ठ संख्या 209-10 इसकी जानकारी दी है और इस ग्रन्थ को 'उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान', लखनऊ, ने 2006 में प्रकाशित किया है।
डौंडिया खेडा का सच. तस्वीर-1 मे MS Julian का ट्रान्सलेशन(ह्वेन्सान्ग की यात्राव्रित्त) है, तस्वीर-2/3 मे कनिन्घम द्वारा लिखित पुस्तक "The Ancient Geography Of India" का विवरण है, तस्वीर -3 मे कनिन्घम की 1862-64 की रिपोर्ट है जो 1871-2 मे प्रकाशित हुइ। (ये सारी की सारी Original स्कैन कापी है)
चित्रों के  लिये आभार : Tadiyampi Shakya
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चित्र १ MS Julian का ट्रान्सलेशन(ह्वेन्सान्ग की यात्रावृति)

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डौंडिया खेड़ा...सर कनिन्घम द्वारा लिखित पुस्तक "The Ancient Geography Of India" का विवरण और 1862-63-64 की रिपोर्ट जो 1871 मे प्रकाशित हुई
 
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श्री अँगने लाल की पुस्तक , ‘ उत्तर प्रदेश के बौद्ध केन्द्र ‘  की स्कैन चित्रों के लिये आभार : राहुल राज

इतना तो तय है कि हमारे शासक अपने इतिहास को संरक्षित रखने में जितने उदासीन रहे, उससे ठीक उलट हम पर शासन करने वाले अँग्रेजों ने हमारा इतिहास जानने में खासी दिलचस्पी ली। सारनाथ का धमेख स्तूप , श्रावस्ती  और बोधगया इसका जीता जागता उदहारण है। इतिहास हमेशा अंग्रेज इतिहासकार अलेक्जेंडर कनिंघम और चीनी यात्री ह्वेनसांग का ऋणी रहेगा लेकिन जो काम हम लोगों को करना था वह हम क्यूं नही कर पाये ।प्राचीन बौद्ध स्थलों के प्रति भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग की भूमिका संधिगत रही है, इस विभाग ने इन स्थलों को लेकर कभी भी बौद्ध संघटनो के साथ कार्य नहीं किया, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग, प्राचीन बौद्ध स्थलों को लेकर ना ही स्वय: विकास करती है और ना ही बौद्ध संघटनो को साथ में लेकर कार्य करती है, इस दृष्टी से भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग की भूमिका बौद्धों के प्राचीन बौद्ध स्थलों के अस्थित्व को मिटाने की भूमिका निभा रही है । लेकिन क्या अब कोई बदलाव देखने को मिलेगा , कहना मुश्किल है लेकिन शायद यह संभव भी हो ।




झारखंड का अनूठा बौद्ध मंदिर

bodh temple in jharkhand

झारखंड के प्राचीन स्मारक हमेशा से यहां के निवासियों के आकर्षण का केन्द्र रहे हैं । चाहे वो धार्मिक प्रकार के स्मारक हों या नागरिक भवन हों, सभी यहां के इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। रामगढ-बोकारो मार्ग पर गोला के समीप सड़क की दक्षिण दिशा में एक विशालकाय शिखरयुक्त मंदिर सदियों से खड़ा झारखंड का इतिहास कहने को आतुर-सा दिखता है। स्थानीय लोगों में खीरी मठ के नाम से प्रसिद्ध यह भव्य संरचना वस्तुत: एक बौद्ध मंदिर है। लगभग अस्सी फीट ऊंचा यह मंदिर सप्तरत योजना के अनुरूप बनाया गया है तथा इसे देखने पर एकदम से अहसास होता है कि यह बोध गया के विश्व प्रसिद्ध मंदिर की प्रतिकृति है। इस मंदिर का निर्माण सीधे सीधे समतल जमीन पर किया गया है तथा भूमि पर इसका आकार लगभग चालीस फीट वर्गाकार है । इसमें पूरब और पश्चिम दिशा में श्रद्धालुओं के मंदिर में सहज प्रवेश के लिये लगभग पांच फीट उंचाई के दो द्वार बने हुये हैं। शिखर के समीप दा खिडकियों जैसी संरचनायें भी बनाई गई हैं जिससे सूरज की रौशनी मंदिर के अंदर लगातार आती रहती है और अंधेरा नहीं होता । अंदर गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं दिखती और अब यह मंदिर अत्यंत उपेक्षित अवस्था में जीवन के संभवत: अंतिम दिन गिन रहा है। पूर्वी प्रवेश द्वार के ठीक उपर लगभग चालीस फीट की उंचाई पर पत्थर के एक पैनल में बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा में बैठी मूर्ति लगाई ग‌र्इ्र है और पास में ही दो मछलियों की आकृतियां भी उकेरी गई हैं। पश्चिम द्वार के उपर सिर्फ मछलियों की आकृतियां ही दिखती हैं। इसका निर्माण ईंट और पत्थर से मिश्रित रूप में किया गया है। शिखर के अंतिम छोर पर बौद्ध स्थापत्य के अनुरूप तीन स्तर की छत्रवली भी बनाई गई है। यह मंदिर तथा पास ही में बौद्ध धर्म की छिन्न मस्तिका परम्परा के मंदिर की उपस्थिति यह आभास देती है कि यह पूरा क्षेत्र एक समय बौद्ध धर्म के प्रभाव में अवश्य था। हजारीबाग क्षेत्र में भी गांव गांव में बौद्ध धर्म से संबंधित असंख्य प्राचीन मूर्तिया देखने को मिल जाती हैं। स्थापत्य शैली के आधार पर इसे लगभग 17वीं-18वीं शताब्दी का माना जा सकता है। आप जब भी इधर से गुजरें, रूक कर इसके दर्शन अवश्य कर लें ,क्योंकि सरकार की अनवरत उपेक्षा डोलता हुआ स्थापत्य का यह अद्भुत नमूना ज्यादा दिन चल सके, ऐसा नहीं प्रतीत होता। झारखंड के प्राचीन स्मारक हमेशा से यहां के निवासियों के आकर्षण का केन्द्र रहे हैं । चाहे वो धार्मिक प्रकार के स्मारक हों या नागरिक भवन हों, सभी यहां के इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। रामगढ-बोकारो मार्ग पर गोला के समीप सड़क की दक्षिण दिशा में एक विशालकाय शिखरयुक्त मंदिर सदियों से खड़ा झारखंड का इतिहास कहने को आतुर-सा दिखता है। स्थानीय लोगों में खीरी मठ के नाम से प्रसिद्ध यह भव्य संरचना वस्तुत: एक बौद्ध मंदिर है। लगभग अस्सी फीट ऊंचा यह मंदिर सप्तरत योजना के अनुरूप बनाया गया है तथा इसे देखने पर एकदम से अहसास होता है कि यह बोध गया के विश्व प्रसिद्ध मंदिर की प्रतिकृति है। इस मंदिर का निर्माण सीधे सीधे समतल जमीन पर किया गया है तथा भूमि पर इसका आकार लगभग चालीस फीट वर्गाकार है । इसमें पूरब और पश्चिम दिशा में श्रद्धालुओं के मंदिर में सहज प्रवेश के लिये लगभग पांच फीट उंचाई के दो द्वार बने हुये हैं। शिखर के समीप दा खिड़कियों जैसी संरचनायें भी बनाई गई हैं जिससे सूरज की रौशनी मंदिर के अंदर लगातार आती रहती है और अंधेरा नहीं होता । अंदर गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं दिखती और अब यह मंदिर अत्यंत उपेक्षित अवस्था में जीवन के संभवत: अंतिम दिन गिन रहा है। पूर्वी प्रवेश द्वार के ठीक उपर लगभग चालीस फीट की उंचाई पर पत्थर के एक पैनल में बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा में बैठी मूर्ति लगाई ग‌र्इ्र है और पास में ही दो मछलियों की आकृतियां भी उकेरी गई हैं। पश्चिम द्वार के उपर सिर्फ मछलियों की आकृतियां ही दिखती हैं। इसका निर्माण ईंट और पत्थर से मिश्रित रूप में किया गया है। शिखर के अंतिम छोर पर बौद्ध स्थापत्य के अनुरूप तीन स्तर की छत्रवली भी बनाई गई है। यह मेंिदर तथा पास ही में बौद्ध धर्म की छिन्न मस्तिका परम्परा के मंदिर की उपस्थिति यह आभास देती है कि यह पूरा क्षेत्र एक समय बौद्ध धर्म के प्रभाव में अवश्य था। हजारीबाग क्षेत्र में भी गांव गांव में बौद्ध धर्म से संबंधित असंख्य प्राचीन मूर्तिया देखने को मिल जाती हैं। स्थापत्य शैली के आधार पर इसे लगभग 17वीं-18वीं शताब्दी का माना जा सकता है। आप जब भी इधर से गुजरें, रूक कर इसके दर्शन अवश्य कर लें ,क्योंकि सरकार की अनवरत उपेक्षा डोलता हुआ स्थापत्य का यह अद्भुत नमूना ज्यादा दिन चल सके, ऐसा नहीं प्रतीत होता।

स्त्रोत : दैनिक जागरण

अनित्यता

अनित्य

सब्बे संङ्खारा अनिच्चाति, यदा पञ्ञाय पस्सति।
अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया।। (धम्मपद २७७)

सारे संस्कार अनित्य हैं यानी जो हो रहा है वह नष्ट होता ही है । इस सच्चाई को जब कोई विपशयना से देख लेता है , तब उसको दुखों से निर्वेद प्राप्त होता है अथात दु:ख भाव से भोक्ताभाव टूट जाता है । यह ही है शुद्ध विमुक्ति का मार्ग !!     धम्मपद २७७