कहते है कि चीन के सम्राट वू ने विनयपूर्वक आचार्य बोधिध्म्म से जिज्ञ्यासा कि बुद्ध धम्म क्या है ? आचार्य बोधिध्म्म ने धम्मपद की एक गाथा का संगायन किया :
सब्बपापस्स अकरणं, कुसलस्स उपसम्पदा [कुसलस्सूपसम्पदा (स्या॰)]।
सचित्तपरियोदपनं [सचित्तपरियोदापनं (?)], एतं बुद्धान सासनं॥
सब बुराइयों से दूर रहो ..अच्छाइयाँ पैदा करने की कोशिश करते रहो …मन मस्तिष्क की शुद्ध्ता रखॊ । यही बुद्ध का शासन है अर्थात बुद्ध धम्म है ।
सम्राट वू को बड़ी व्याख्या की उम्मीद थी । इतने संक्षेप में बुद्ध धम्म को सुन कर उसने हैरानी से कहा - बुद्ध धम्म इतना सरल है ? इसे तो पांच वर्ष का बच्चा भी समझ सकता हसी लेकिन अस्सी साल का वृद्ध भी यह दावा नही कर सकता की वह धम्म जीवन जी रहा है ।
बोधिध्म्म के कथन ने अस्सी वर्षीय सम्राट को धम्म के प्रति अंतर्दृष्टि दी ।
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