।।होली बनाम फाल्गुन पूर्णिमा।।
-राजेश चन्द्रा
भगवान बुद्ध के समय में भी आज की होली जैसा एक उत्सव होता था जिसमें सप्ताह भर तक लोग एक दूसरे पर धूल, कीचड़, गोबर, रंग फेकते और मलते थे तथा ऊंचे स्वर में अपशब्दों का प्रयोग करते थे।
प्रसंग खुद्दक निकाय के धम्मपद अट्टकथा के अप्पमाद वग्गो में है।
भगवान कोशल राज्य की राजधानी श्रावस्ती के जेतवन में वर्षावास कर रहे थे। इस उत्सव के कारण श्रद्धालु उपासक-उपासिकाओं ने भगवान से निवेदन किया कि आप जेतवन के बाहर न निकलिए, हम लोग आप सहित संघ के लिए भोजन जेतवन में ही पहुंचा देगें।श्रद्धालु उपासक-उपासिकाओं ने क्रम से आपस में धम्म सेवा लगा कर एक सप्ताह तक बुद्ध प्रमुख संघ को जेतवन के विहार में भोजनदान किया।एक सप्ताह के उपरांत भगवान संघ के साथ पिण्डपात के लिए जेतवन विहार के बाहर निकले तथा उपासकों-उपासिकाओं ने बुद्ध प्रमुख संघ को महादान कर पुण्यलाभ किया।
इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने अपनी व्यथा व्यक्त की:"भगवान, यह सात दिन हमारे लिए बड़े कष्ट में बीते।मूर्खों द्वारा प्रयुक्त असभ्य-अपशब्द सुन-सुन कर हमारे कान फटे जाते थे। उन्हें किसी की लज्जा या संकोच ही नहीं था।इसीलिए आप श्रीमान से हमलोगों ने नगर में न निकलने का अनुरोध किया था।"
भगवान ने श्रद्धालुओं का अनुमोदन करते हुए कहा:
"मूर्खों के कर्म ऐसे ही होते हैं। मेधावीजन अप्रमाद की रक्षा करते हैं।"
यह कह कर भगवान ने गाथा का संगायन किया:
"पमादमनुयुंजन्ति बाला दुम्मेधिनो जना।
अप्पमादं च मेधावी, धनं सेट्ठं व रक्खति।।
- मूर्ख-दुर्बुद्धि प्रमाद करते हैं।मेधावी पुरुष श्रेष्ठ धन की तरह अप्रमाद की रक्षा करते हैं।"
इस प्रकार वर्तमान में प्रचलित होली को बौद्ध पर्व सिद्ध करना अन्यथा चेष्टा ही कहा जाएगा लेकिन फाल्गुन पूर्णिमा का भगवान बुद्ध और बौद्धों से बड़ा गहरा सम्बन्ध है। लेकिन वे इस पूर्णिमा को होली के जैसा नहीं मनाते हैं।
फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भगवान कपिलवस्तु पधारे थे। इसी पूर्णिमा के दिन राहुल की दीक्षा हुई थी। इसी पूर्णिमा के दिन मान्यआनन्द, महाप्रजापति गौतमी की दीक्षा हुई थी। इसी पूर्णिमा के दिन पहली बार चीनी भाषा में धम्मपद का अनुवाद हुआ था, सन् 823 में। इस प्रकार फाल्गुन पूर्णिमा के साथ बहुत-सी बौद्ध घटनाएं जुड़ी हैं। इस दिन बौद्ध उपासक-उपासिकाऐं उपोसथ धारण करते हैं।
संक्षेप में, उपोसथ के दिन उपासक-उपासिकाएं भिक्खु-भिक्खुनियों जैसी दिनचर्या जीते हैं।
• सुबह बुद्ध पूजा, तिरतन वन्दना, ध्यान करते हैं।
• भिक्खु अथवा भिक्खुनी या संघ के दर्शन करते हैं, उन्हें यथासामर्थ्य भोजनदान व अन्य दान करते हैं
• दोपहर के पहले भोजन करते हैं
• सायंकाल भोजन नहीं करते। यदि बीमार, वृद्ध या गर्भवती है तो सायंकाल न चबाने वाला भोजन जैसे फलों का रस, गीली खिचड़ी(यवागू) ले सकते हैं।
• शाम को भी ध्यान, बुद्ध पूजा, धम्म ग्रन्थ का पाठ, परित्त पाठ करते हैं
• रात में ऊँचे आसन पर नहीं सोते
• ब्रम्हचर्य का पालन करते हैं
• ऐसे उपोसथ को भगवान ने महान फल वाला बताया है।
बौद्धगण फाल्गुन पूर्णिमा ऐसे मनाते हैं।
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