इतिहास हमेशा कडवा ही क्यूं होता है । क्यूं एक धर्म के मतावल्म्बी दूसरे धर्म से इतनी नफ़रत रखते हैं । धम्मपद की गाथा मे बुद्ध कहते हैं
न हि वेरेन वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचनं।
अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो॥
इस लोक मे कभी भी वैर से वैर शांत नहीं होता , बल्कि अवैर से शांत होता है । यही सनातन धर्म है । धम्मपद : यमकवग्गो- गाथा ५
परे च न विजानन्ति, मयमेत्थ यमामसे।
ये च तत्थ विजानन्ति, ततो सम्मन्ति मेधगा॥
अनाडी लोग नही जानते कि हम इस संसार से जाने वाले हैं । जो इसे जान लेते हैं उनके झगडॆ शांत हो जाते हैं । धम्मपद: यमकवग्गो- गाथा ६
काश इस तथ्य को सभी धर्मालम्बी समझें और परस्पर प्रेम से रहें । लेकिन क्या यह संभव है , इतिहास इतना अधिक क्रूर और भयावह है कि इसकी परिकल्पना भी नही की जा सकती । अपने देश मे अनेक मन्दिर और बौद्ध शिक्षा केन्द्र इसलामी विचारों की भेंट चढे । यह एक इतिहास की अजीब सी विडंबना है कि हिन्दू और बौद्ध विचारों को मुस्लिम सोच ने नष्ट किया और बाद में बुद्ध धर्म की फ़ैलती शाखाओं को हिन्दू धर्म से आदि शंकारकाचार्य ने नष्ट किया । यही नही यह सोच अब तक जारी है , वर्तमान मे पाकिस्तान मे स्वात में तालिबान की बौद्ध धर्मस्थलॊ को नष्ट करने की धमकी या कुछ वर्ष पूर्व अफ़गानिस्तान मे बामियान मे बुद्ध प्रतिमा को नष्ट करना भी इसी सोच का नतीजा है ।
नालन्दा विशवविधालय की वर्तमान स्थिति भी इसी कटरवादी सोच का नतीजा थी । संस्कृत में नालंदा का अर्थ होता है ज्ञान देने वाला (नालम = कमल, जो ज्ञान का प्रतीक है; दा = देना)। बुद्ध अपने जीवनकाल में कई बार नालंदा आए और लंबे समय तक ठहरे। जैन धर्म के तीर्थंकर भगवान महावीर का निर्वाण भी नालंदा में ही पावापुरी नामक स्थान पर हुआ। कहते हैं कि खिलजी जब नालंदा पहुंचा, तब उसने पूछा कि यहां पवित्र कुरान है क्या? उत्तर नहीं में मिलने पर उसने यहां आग लगवा दी, सब कुछ तहस-नहस कर दिया। इरानी विद्वान मिन्हाज के अनुसार कई विद्वान शिक्षकों को ज़िन्दा जला दिया गया और कईयों के सर काट लिये गए। इस घटना को कई विद्वानों द्वारा बौद्ध धर्म के पतन के एक कारण के रूप में देखा जाता है। कई विद्वान यह भी कहते हैं कि अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों के नष्ट हो जाने से भारत आने वाले समय में विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा और गणित जैसे क्षेत्रों मे पिछड़ गया ।
भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के अतुल्य भारत अभियान के साथ मिल कर एनडीटीवी द्वारा आयोजित एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के तहत कोणार्क सूर्य मंदिर, मीनाक्षी मंदिर, खजुराहो, लाल किला, दिल्ली, जैसलमेर दुर्ग, नालंदा विश्वविद्यालय और धौलावीर जैसे स्थलों को भारत के सात आश्चर्य के रूप में चुना गया है। वीडियो के लिये साभार : यू ट्यूब
नालंदा विश्वविद्यालय भारत के बिहार राज्य में पटना से ९० कि.मी. दूर नालंदा शहर में स्थित एक प्राचीन विश्वविद्यालय था। देश विदेश से यहाँ विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते थे। आज इसके केवल खंडहर देखे जा सकते हैं। नालन्दा विश्वविद्यालय के अवशेषों की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। माना जाता है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना ४५०-४७० ई. में गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। इस विश्वविद्यालय को इसके बाद आने वाले सभी शासक वंशों का सहयोग मिला। महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। इसे केवल यहां के स्थासनीय शासक वंशों से ही नहीं वरन विदेशी शासकों से भी दान मिला था। इस विश्वविद्यालय का अस्तित्व १२वीं शताब्दी तक बना रहा। इसके ऊपर पहला आघात हुण शासक मिहिरकुल द्वारा किया गया, व ११९९ में में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इसको जला कर पूरी तरह समाप्त कर दिया।
इस विश्वविद्यालय के बारे में माना जाता है कि यह विश्व का प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय था। इसमें करीब १०,००० छात्र एक साथ विद्या ग्रहण करते थे। यहां २००० शिक्षक छात्रों को पढ़ाते थे। यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अदभूत नमूना था। यह पूरा परिसर इस विश्वविद्यालय के बारे में माना जाता है कि यह विश्व का प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय था। इसमें करीब १०,००० छात्र एक साथ विद्या ग्रहण करते थे। यहां २००० शिक्षक छात्रों को पढ़ाते थे। यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अदभूत नमूना था। यह पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था तथा इसमें प्रवेश के लिए केवल एक ही मुख्य द्वार था। इस परिसर में आठ विशाल भवन, दस मंदिर, कई प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष थे। इसके अलावा यहां सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थी। यहां विद्यार्थियों को तीन कठीन परीक्षा स्तरों को उत्तीर्ण करना होता था। यह विश्व का प्रथम ऐसा दृष्टांत है। यहां उनके रहने के लिए ३०० कक्ष बने थे, जिनमें अकेले या एक से अधिक छात्रों के रहने की व्यवस्था थीं। यहां के नौ तल के पुस्तकालय में ३ लाख से अधिक पुस्तकों का अनुपम संग्रह था।[२] इस पुस्तकालय में सभी विषयों से संबंधित पुस्तकें थी। ये पुस्तकें खिलजी के आक्रमण के बाद छः महीनों तक जलती रहीं। इस विश्वविद्यालय में केवल भारत से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। यहां विद्यार्थी विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, तर्कशास्त्र, गणित, दर्शनशास्त्र, तथा हिन्दु और बौद्ध धर्मों का अध्ययन करते थे। यहां खगोलशास्त्र अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था। एक प्राचीन श्लोक से ज्ञात होता है, प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्यभट विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे थे। उनके लिखे जिन तीन ग्रंथों की जानकारी भी उपलब्ध है वे हैं: दशगीतिका, आर्यभट्टीय और तंत्र। ज्ञाता बताते हैं, कि उनका एक अन्य ग्रन्थ आर्यभट्ट सिद्धांत भी था, जिसके आज मात्र ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस ग्रंथ का ७वीं शताब्दी में बहुत उपयोग होता था। यहाँ के तीन बड़े बड़े पुस्तकालय के नाम थे:
* रत्नसागर पुस्तकालय
* विद्यासागर पुस्तकालय
* ग्रंथागार पुस्तकालय
इस विश्वविद्यालय के अवशेष चौदह हेक्टेयर क्षेत्र में मिले हैं। खुदाई में मिली सभी इमारतों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया था। यह परिसर दक्षिण से उत्तर की ओर बना हुआ है। मठ या विहार इस परिसर के पूर्व दिशा में व चैत्य (मंदिर) पश्चिम दिशा में बने थे। इस परिसर की सबसे मुख्य इमारत विहार-१ थी। आज में भी यहां दो मंजिला इमारत शेष है। यह इमारत परिसर के मुख्य आंगन के समीप बना हुई है। संभवत: यहां ही शिक्षक अपने छात्रों को संबोधित किया करते थे। इस विहार में एक छोटा सा प्रार्थनालय भी अभी सुरक्षित अवस्था में बचा हुआ है। इस प्रार्थनालय में भगवान बुद्ध की भग्न प्रतिमा बनी है। यहां स्थित मंदिर नं ३ इस परिसर का सबसे बड़ा मंदिर है। इस मंदिर से समूचे क्षेत्र का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यह मंदिर कई छोटे-बड़े स्तूपों से घिरा हुआ है। इन सभी स्तूपों में भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में मूर्तियां बनी हुई है।
नालन्दा पुरातात्विक संग्रहालय
विश्वविद्यालय परिसर के विपरीत दिशा में एक छोटा सा पुरातात्विक संग्रहालय बना हुआ है। इस संग्रहालय में खुदाई से प्राप्त अवशेषों को रखा गया है। इसमें भगवान बुद्ध की विभिन्न प्रकार की मूर्तियों का अच्छा संग्रह है। इनके साथ ही बुद्ध की टेराकोटा मूर्तियां और प्रथम शताब्दी के दो मर्तबान भी इस संग्रहालय में रखा हुआ है। इसके अलावा इस संग्रहालय में तांबे की प्लेट, पत्थर पर खुदे अभिलेख, सिक्के, बर्त्तन तथा १२वीं सदी के चावल के जले हुए दाने रखे हुए हैं।
नव नालन्दा महाविहार
यह एक शिक्षण संस्थान है। इसमें पाली साहित्य तथा बौद्ध धर्म की पढ़ाई तथा शोध होती है। यह एक नया स्थापित संस्थान है। इसमें दूसरे देशों के छात्र भी पढ़ाई के लिए यहां आताे हैं।
ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल
यह एक नवर्निमित भवन है। यह भवन चीन के महान तीर्थयात्री ह्वेन त्सांग की स्मृति में बनवाया गया है। इसमें ह्वेनसांग से संबंधित वस्तुएं तथा उनकी मूर्ति देखी जा सकती है।
नालन्दा विशविधालय – पुनर्जीवन का प्रयास :
नालंदा विश्वविद्यालय के नाम पर एक नए विश्वविद्यालय की स्थापना भारत सरकार द्वारा इसके पुनर्जीवन का प्रयास है । प्रसिद्ध नोबल पुरस्कार विजेता साहित्यकार अमर्त्य सेन के अनुसार वर्ष २०१० तक शैक्षणिक सत्र भी आरंभ हो जाएगा। इसके पुनर्जीवन प्रयास में सिंगापुर, चीन, जापान व दक्षिण-कोरिया ने भी सहयोग देने का वादा किया है। इसके ऊपर संसद में विधेयक पारित होने पर इसके भवन का निर्माण भी शुरु हो जाएगा। इसमें ईस्ट एशिया सम्मेलन के १६ देश आर्थिक सहयोग देंगे।
साभार : विकीपीडिया
न हि वेरेन वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचनं।
अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो॥
इस लोक मे कभी भी वैर से वैर शांत नहीं होता , बल्कि अवैर से शांत होता है । यही सनातन धर्म है । धम्मपद : यमकवग्गो- गाथा ५
परे च न विजानन्ति, मयमेत्थ यमामसे।
ये च तत्थ विजानन्ति, ततो सम्मन्ति मेधगा॥
अनाडी लोग नही जानते कि हम इस संसार से जाने वाले हैं । जो इसे जान लेते हैं उनके झगडॆ शांत हो जाते हैं । धम्मपद: यमकवग्गो- गाथा ६
काश इस तथ्य को सभी धर्मालम्बी समझें और परस्पर प्रेम से रहें । लेकिन क्या यह संभव है , इतिहास इतना अधिक क्रूर और भयावह है कि इसकी परिकल्पना भी नही की जा सकती । अपने देश मे अनेक मन्दिर और बौद्ध शिक्षा केन्द्र इसलामी विचारों की भेंट चढे । यह एक इतिहास की अजीब सी विडंबना है कि हिन्दू और बौद्ध विचारों को मुस्लिम सोच ने नष्ट किया और बाद में बुद्ध धर्म की फ़ैलती शाखाओं को हिन्दू धर्म से आदि शंकारकाचार्य ने नष्ट किया । यही नही यह सोच अब तक जारी है , वर्तमान मे पाकिस्तान मे स्वात में तालिबान की बौद्ध धर्मस्थलॊ को नष्ट करने की धमकी या कुछ वर्ष पूर्व अफ़गानिस्तान मे बामियान मे बुद्ध प्रतिमा को नष्ट करना भी इसी सोच का नतीजा है ।
नालन्दा विशवविधालय की वर्तमान स्थिति भी इसी कटरवादी सोच का नतीजा थी । संस्कृत में नालंदा का अर्थ होता है ज्ञान देने वाला (नालम = कमल, जो ज्ञान का प्रतीक है; दा = देना)। बुद्ध अपने जीवनकाल में कई बार नालंदा आए और लंबे समय तक ठहरे। जैन धर्म के तीर्थंकर भगवान महावीर का निर्वाण भी नालंदा में ही पावापुरी नामक स्थान पर हुआ। कहते हैं कि खिलजी जब नालंदा पहुंचा, तब उसने पूछा कि यहां पवित्र कुरान है क्या? उत्तर नहीं में मिलने पर उसने यहां आग लगवा दी, सब कुछ तहस-नहस कर दिया। इरानी विद्वान मिन्हाज के अनुसार कई विद्वान शिक्षकों को ज़िन्दा जला दिया गया और कईयों के सर काट लिये गए। इस घटना को कई विद्वानों द्वारा बौद्ध धर्म के पतन के एक कारण के रूप में देखा जाता है। कई विद्वान यह भी कहते हैं कि अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों के नष्ट हो जाने से भारत आने वाले समय में विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा और गणित जैसे क्षेत्रों मे पिछड़ गया ।
भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के अतुल्य भारत अभियान के साथ मिल कर एनडीटीवी द्वारा आयोजित एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के तहत कोणार्क सूर्य मंदिर, मीनाक्षी मंदिर, खजुराहो, लाल किला, दिल्ली, जैसलमेर दुर्ग, नालंदा विश्वविद्यालय और धौलावीर जैसे स्थलों को भारत के सात आश्चर्य के रूप में चुना गया है। वीडियो के लिये साभार : यू ट्यूब
नालंदा विश्वविद्यालय भारत के बिहार राज्य में पटना से ९० कि.मी. दूर नालंदा शहर में स्थित एक प्राचीन विश्वविद्यालय था। देश विदेश से यहाँ विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते थे। आज इसके केवल खंडहर देखे जा सकते हैं। नालन्दा विश्वविद्यालय के अवशेषों की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। माना जाता है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना ४५०-४७० ई. में गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। इस विश्वविद्यालय को इसके बाद आने वाले सभी शासक वंशों का सहयोग मिला। महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। इसे केवल यहां के स्थासनीय शासक वंशों से ही नहीं वरन विदेशी शासकों से भी दान मिला था। इस विश्वविद्यालय का अस्तित्व १२वीं शताब्दी तक बना रहा। इसके ऊपर पहला आघात हुण शासक मिहिरकुल द्वारा किया गया, व ११९९ में में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इसको जला कर पूरी तरह समाप्त कर दिया।
इस विश्वविद्यालय के बारे में माना जाता है कि यह विश्व का प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय था। इसमें करीब १०,००० छात्र एक साथ विद्या ग्रहण करते थे। यहां २००० शिक्षक छात्रों को पढ़ाते थे। यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अदभूत नमूना था। यह पूरा परिसर इस विश्वविद्यालय के बारे में माना जाता है कि यह विश्व का प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय था। इसमें करीब १०,००० छात्र एक साथ विद्या ग्रहण करते थे। यहां २००० शिक्षक छात्रों को पढ़ाते थे। यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अदभूत नमूना था। यह पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था तथा इसमें प्रवेश के लिए केवल एक ही मुख्य द्वार था। इस परिसर में आठ विशाल भवन, दस मंदिर, कई प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष थे। इसके अलावा यहां सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थी। यहां विद्यार्थियों को तीन कठीन परीक्षा स्तरों को उत्तीर्ण करना होता था। यह विश्व का प्रथम ऐसा दृष्टांत है। यहां उनके रहने के लिए ३०० कक्ष बने थे, जिनमें अकेले या एक से अधिक छात्रों के रहने की व्यवस्था थीं। यहां के नौ तल के पुस्तकालय में ३ लाख से अधिक पुस्तकों का अनुपम संग्रह था।[२] इस पुस्तकालय में सभी विषयों से संबंधित पुस्तकें थी। ये पुस्तकें खिलजी के आक्रमण के बाद छः महीनों तक जलती रहीं। इस विश्वविद्यालय में केवल भारत से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। यहां विद्यार्थी विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, तर्कशास्त्र, गणित, दर्शनशास्त्र, तथा हिन्दु और बौद्ध धर्मों का अध्ययन करते थे। यहां खगोलशास्त्र अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था। एक प्राचीन श्लोक से ज्ञात होता है, प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्यभट विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे थे। उनके लिखे जिन तीन ग्रंथों की जानकारी भी उपलब्ध है वे हैं: दशगीतिका, आर्यभट्टीय और तंत्र। ज्ञाता बताते हैं, कि उनका एक अन्य ग्रन्थ आर्यभट्ट सिद्धांत भी था, जिसके आज मात्र ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस ग्रंथ का ७वीं शताब्दी में बहुत उपयोग होता था। यहाँ के तीन बड़े बड़े पुस्तकालय के नाम थे:
* रत्नसागर पुस्तकालय
* विद्यासागर पुस्तकालय
* ग्रंथागार पुस्तकालय
इस विश्वविद्यालय के अवशेष चौदह हेक्टेयर क्षेत्र में मिले हैं। खुदाई में मिली सभी इमारतों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया था। यह परिसर दक्षिण से उत्तर की ओर बना हुआ है। मठ या विहार इस परिसर के पूर्व दिशा में व चैत्य (मंदिर) पश्चिम दिशा में बने थे। इस परिसर की सबसे मुख्य इमारत विहार-१ थी। आज में भी यहां दो मंजिला इमारत शेष है। यह इमारत परिसर के मुख्य आंगन के समीप बना हुई है। संभवत: यहां ही शिक्षक अपने छात्रों को संबोधित किया करते थे। इस विहार में एक छोटा सा प्रार्थनालय भी अभी सुरक्षित अवस्था में बचा हुआ है। इस प्रार्थनालय में भगवान बुद्ध की भग्न प्रतिमा बनी है। यहां स्थित मंदिर नं ३ इस परिसर का सबसे बड़ा मंदिर है। इस मंदिर से समूचे क्षेत्र का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यह मंदिर कई छोटे-बड़े स्तूपों से घिरा हुआ है। इन सभी स्तूपों में भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में मूर्तियां बनी हुई है।
नालन्दा पुरातात्विक संग्रहालय
विश्वविद्यालय परिसर के विपरीत दिशा में एक छोटा सा पुरातात्विक संग्रहालय बना हुआ है। इस संग्रहालय में खुदाई से प्राप्त अवशेषों को रखा गया है। इसमें भगवान बुद्ध की विभिन्न प्रकार की मूर्तियों का अच्छा संग्रह है। इनके साथ ही बुद्ध की टेराकोटा मूर्तियां और प्रथम शताब्दी के दो मर्तबान भी इस संग्रहालय में रखा हुआ है। इसके अलावा इस संग्रहालय में तांबे की प्लेट, पत्थर पर खुदे अभिलेख, सिक्के, बर्त्तन तथा १२वीं सदी के चावल के जले हुए दाने रखे हुए हैं।
नव नालन्दा महाविहार
यह एक शिक्षण संस्थान है। इसमें पाली साहित्य तथा बौद्ध धर्म की पढ़ाई तथा शोध होती है। यह एक नया स्थापित संस्थान है। इसमें दूसरे देशों के छात्र भी पढ़ाई के लिए यहां आताे हैं।
ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल
यह एक नवर्निमित भवन है। यह भवन चीन के महान तीर्थयात्री ह्वेन त्सांग की स्मृति में बनवाया गया है। इसमें ह्वेनसांग से संबंधित वस्तुएं तथा उनकी मूर्ति देखी जा सकती है।
नालन्दा विशविधालय – पुनर्जीवन का प्रयास :
नालंदा विश्वविद्यालय के नाम पर एक नए विश्वविद्यालय की स्थापना भारत सरकार द्वारा इसके पुनर्जीवन का प्रयास है । प्रसिद्ध नोबल पुरस्कार विजेता साहित्यकार अमर्त्य सेन के अनुसार वर्ष २०१० तक शैक्षणिक सत्र भी आरंभ हो जाएगा। इसके पुनर्जीवन प्रयास में सिंगापुर, चीन, जापान व दक्षिण-कोरिया ने भी सहयोग देने का वादा किया है। इसके ऊपर संसद में विधेयक पारित होने पर इसके भवन का निर्माण भी शुरु हो जाएगा। इसमें ईस्ट एशिया सम्मेलन के १६ देश आर्थिक सहयोग देंगे।
साभार : विकीपीडिया
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