Thursday, November 28, 2013

भारत बनाम नेपाल – ‘ लुम्बिनी ’ एक दुर्भाग्यपूर्ण विवाद

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                                             लुम्बिनी , नेपाल ( Lumbini , Nepal )
                     photo credit : Gautam Shakya ( चित्र के लिये साभार : श्री गौतम शाक्य )
बुद्ध के जन्म स्थान लुम्बिनी में खुदाई के दौरान आर्कियालॉजिस्टॊं  के हाथ लगे ताजा सबूत अब जब इस इस अनावशयक विवाद पर विराम लगा सकते हैं कि बुद्ध की जन्म स्थली निर्विवाद  रुप से लुंबिनी , नेपाल मे ही है । इससे यह भी पता चलता है कि बुद्ध का जन्म ईसा पूर्व छठी सदी में हुआ था, ना कि ईसा पूर्व चौथी सदी में जैसा कि कुछ विद्वानों का मानना रहा है।
देखे नेशनल ज्यागराफ़िक  चैनल की एक रिपोर्ट :

आर्कियालॉजिस्ट ने नेपाल के लुम्बिनी में अभी तक के सबसे पुराने बौद्ध मठ की खोज की है जिससे पता चलता है कि बुद्ध का जन्म ईसा पूर्व छठी सदी में ही हुआ था।
लुंबिनी में पवित्र माया देवी मंदिर में खोदाई के दौरान कई मंदिरों के ईंटों के नीचे ईसा पूर्व छठी सदी की इमारती लकड़ी के ढांचे के अवशेष मिले हैं। रिसर्च टीम की अगुआई करने वाले ब्रिटेन की डरहम यूनिवर्सिटी के रॉबिन कनिंगम ने कहा कि बुद्ध के जीवन से जुड़ी यह पहली आर्कियालॉजिकल चीज है और इस तरह बौद्ध धर्म के एक खास सदी में फलने-फूलने के पहले प्रमाण मिले हैं। लकड़ी का यह ढांचा बीच में खुला हुआ है, जिसका जिक्र बुद्ध से जुड़ी प्राचीन कहानी में भी है। कहानी के मुताबिक, बुद्ध की मां माया देवी लुंबिनी बाग में बुद्ध को जन्म देते समय एक पेड़ की टहनी पकड़े हुए थीं। रिसर्चर्स को लगता है कि लकड़ी के बने मंदिर की खुली जगह में कोई पेड़ रहा होगा। रिसर्च एंटिक्विटी जर्नल में छपी है और इसमें कहा गया है कि रिसर्च से इस बात की पुष्टि हुई है कि मंदिर के बीचोंबीच की खाली जगह में प्राचीन पेड़ का जड़ रहा होगा।
लेकिन क्या यह एक अकेला ही प्रमाण है । नही , ऐसे न जाने कितने प्रमाण उपलब्ध हैं जो यह सिद्ध  करते हैं कि भगवान्‌ बुद्ध का जन्म स्थान लुबंनी , नेपाल मे ही है ।
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                          लुबंनी में सम्राट अशोक द्वारा स्थापित धम्म स्तम्भ ( photo credit: wikipedia )
कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने बुद्ध धम्म स्वीकार किया था । तत्पशचात उन्होने बौद्ध स्थलों की यात्रायें भी की थी । उसी सिलसिले में वे अपने राज्यारोहण के २० वें वर्ष मे भगवान्‌ बुद्ध की जन्म स्थली लुबंनी भी पहुँचे और उन्होने वहां एक धम्म स्तम्भ लगवाया था जिस पर अंकित हुआ था कि यहाँ शाक्य मुनि का जन्म हुआ था । इसके अलावा यहाँ अनेक स्तूप , संघाराम , और विहारों के खण्डहर बिखरे पडॆ हैं ।  इन्ही  खण्डहरों की खुदाई मे गुप्तकालीन प्रतिमा भी  है जिसमें माता महामाया शाल वृक्ष की शाखा पकडे खडी है । बुद्ध जन्म का यह अनूठा दस्तावेज है । लेकिन फ़िर अनजाने यह विवाद क्यूं होता रहा है जिससे दोनों देशों मे इसी मुद्दे को लेकर विशेषकर नेपाल में जन विरोध देखने को अकसर मिल जाता है । भारत मे यह बात कम ही दिखती है लेकिन शायद नेपाल के लिये यह अस्मिता का प्रशन है जिससे वहाँ जन विरोधी भावनाओं की लहर अकसर देखी जा सकती है ।

भारत-  नेपाल ’लुम्बिनी ’ विवाद की जड :

सम्यक्‌ प्रकाशन से प्रकाशित , ' मधुकर पिपलायन की पुस्तक ‘ भगवान बुद्ध की जन्मस्थली , लुम्बिनी ’  इस विषय मे काफ़ी कुछ प्रकाश डाल सकती है ।
भगवान्‌ बुद्ध की जन्म स्थली लु्म्बनी -मधुकर पिपलायन
श्री मधुकर जी लिखते हैं :
इस अनावशयक विवाद की जड  मे उडीसा के राजकीय संग्राहलय के श्री चन्द्रभान पटेल  का एक शोध पत्र है जिसमें श्री पटेल उडीसा की राजधानी भुवनेशवर के पास भगवान बुद्ध की जन्म स्थली को मानते हैं । उनके अनुसार यहां कपिलेशवर नामक स्थान को शाक्यों की राजधानी कपिलवस्तु और उसके पास के एक स्थान लुम्बनी भगवान्‌ बुद्ध की जन्म स्थली है । विस्तार से देखने के लिये देखें यहाँ, यहाँ और यहाँसंभवत: नामों की समानता ही इस विवाद का मूल कारण है
पालि तिपिटक के व्याख्याता और अट्‌ठकथाकार आचार्य बुद्धघोष के अनुसार कोशल राज्य के निर्वाचित राजकुमारों ने हिमालय की तराई में कपिलमुनि के आश्रम के पास अपना निवास बनाया था । बाद मे यह नगर कपिलमुनि के नाम पर कपिलवस्तु कहलाया । इसके पास ही देवदह का गणराज्य भी था । कपिलवस्तु के लोग शाक्य कहलाते थे और देवदह के कोलिय । शाक्य महाराजा शुद्धोदन का विवाह कोलिय गणराज्य की कन्या महामाया के साथ हुआ था । लुम्बनी का मनोहारी शालोधान देवदह और कपिलवस्तु के म्ध्य स्थित था । कपिलवस्तु से देवदह की दूरी २६ मील थी । चीनी यात्री फ़ाहियान और हुएन-त्सांग ने कपिलवस्तु और लुम्बनी की यात्र की थी । इन्होने हिमालय की तराई के पास श्रावस्ती , कुशीनगर , पावा और वैशाली की यात्रा भी की थी । यह सभी बौद्ध नगर हिमालय की तराई के आस पास हैं । देखने वाली बात यह है कि इनमें से कोई भी नगर उडीसा मे नही है ।
कपिलवस्तु की खोज का अंतिम अध्याय सन्‌ १९७६ मे समाप्त हो चुका है । भारतिय पुरातत्व के अधीक्षक के.एम.श्रीवास्तव की देखरेख मे पिपरहवा ( सिद्धार्थ नगर , उतर प्रदेश ) कपिलवस्तु की खोज की जा चुकी है , जहां से स्तूप की खुदाई मे प्राप्त मिट्‌टी की मोहरों से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि यह शाक्यों की राजधानी प्राचीन कपिलवस्तु ही  है ।
आज लुम्बिनी नेपाल सीमा के अन्दर है । अंगेजी राज से पहले लुम्बिनी भारत की सीमा के अन्दर थी । अंगेजों और नेपाल सरकार के बीच एक संधि के अनुसार उतर प्रदेश मे स्थित हिमालय की तराई का यह मैदानी भू-भाग नेपाल को दे दिया गया था और इसके बदले मे अंगेजों ने नेपाल का पशिचमी पहाडी भू- भाग जिसमे गढवाल और कुमाऊं का क्षेत्र आता है , अपनी ग्रीष्म कालीन निवास बनाने के लिये ले लिया था ।  वर्तमान उतरांचल प्रदेश उन दिनों नेपाल राज्य का हिस्सा था । इस प्रकार लुम्बनी भी कभी मूल रुप से भारत का ही एक भाग था ।
लेकिन अब जब यह विवाद समाप्त हो चुका है और स्वयं एक लम्बे अर्से से भारत सरकार लुबंनी को नेपाल का हिस्सा मानती है , अब इस विवाद को समाप्त करना ही दोनों देशों और बुद्ध धम्म के लिये अधिक श्रेयसकर होगा ।
लगभग ८१% हिन्दू बाहुल्य होने के बाद भी जिस तरह से नेपाल ने बौद्ध विरासत को बचा कर रखा है , यह एक मिसाल भारत के लिये भी है , अपने देश मे अधिकाशं बौद्ध स्थल उपेक्षित से पडे हैं , कपिलवस्तु को ही लें , लुम्बनी के बिल्कुल नजदीक होने के बावजूद इसका विकास न के बराबर है । बुद्ध धम्म भारत की उस मिट्टी का हिस्सा है जिससे वैदिक, जैन , सिख और चार्वाक दर्शन निकले । संभालना तो हमें ही है  , बाहर से तो कोई आयेगा नही , लेकिन क्या हम कर पायेगें ?

1 comment:

  1. Siddharth Gautam borned in Lumbini and Buddha/ Buddhahood borned in Bodhgaya....although it is not a matter of conflict. Buddha cannot be confined with particular region.

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