Saturday, May 31, 2025

गते गते पारगते पारसंगते बोधि स्वाहा

 




हार्ट सूत्र, जिसे संस्कृत में "प्रज्ञापारमिताहृदयसूत्र" (Prajñāpāramitāhṛdayasūtra) कहा जाता है, बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध सूत्र है। यह महायान बौद्ध परंपरा का हिस्सा है और प्रज्ञापारमिता (परिपूर्ण बुद्धि) साहित्य का एक संक्षिप्त लेकिन गहन ग्रंथ है। यह सूत्र शून्यता (शून्यवाद) की अवधारणा को समझाने के लिए जाना जाता है, जो यह सिखाता है कि सभी धार्मिक और सांसारिक चीजें स्वाभाविक रूप से खाली हैं, यानी उनकी कोई स्वतंत्र, स्थायी प्रकृति नहीं है।

### मुख्य बिंदु:
1. **लेखक और संदर्भ**: 
   - हार्ट सूत्र को भगवान बुद्ध के उपदेशों का सार माना जाता है। इसमें बुद्ध के शिष्य शारिपुत्र और बोधिसत्व अवलोकितेश्वर के बीच संवाद है।
   - अवलोकितेश्वर शारिपुत्र को शून्यता की गहन समझ के बारे में बताते हैं।

2. **प्रसिद्ध पंक्ति**:
   - सूत्र की सबसे प्रसिद्ध पंक्ति है: **"रूपं शून्यता, शून्यतैव रूपं"** (रूप शून्यता है, और शून्यता ही रूप है)। इसका अर्थ है कि भौतिक रूप और शून्यता एक-दूसरे से अलग नहीं हैं; सभी चीजें परस्पर निर्भर हैं और स्वतंत्र रूप से अस्तित्व नहीं रखतीं।

3. **मुख्य शिक्षाएं**:
   - **शून्यता**: सभी घटनाएं (धर्म) स्वतंत्र रूप से मौजूद नहीं हैं; वे कारणों और परिस्थितियों पर निर्भर हैं।
   - पांच स्कंध (रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार, विज्ञान) भी शून्य हैं।
   - यह सूत्र दुख, अज्ञानता और भ्रम से मुक्ति का मार्ग दिखाता है, जो निर्वाण की ओर ले जाता है।

4. **संस्कृत और अनुवाद**:
   - यह सूत्र मूल रूप से संस्कृत में लिखा गया था, लेकिन इसे चीनी, तिब्बती, और अन्य भाषाओं में अनुवादित किया गया है।
   - इसका सबसे छोटा संस्करण कुछ पंक्तियों का है, जबकि विस्तृत संस्करण में थोड़ा अधिक विवरण होता है।

5. **प्रसिद्ध मंत्र**:
   - सूत्र का अंत एक शक्तिशाली मंत्र के साथ होता है: **"गते गते पारगते पारसंगते बोधि स्वाहा"**। इसका अर्थ है "गया, गया, पार गया, सब पार गया, बोधि (जागृति) हो जाए, स्वाहा!" यह मंत्र प्रज्ञा (बुद्धि) के माध्यम से मुक्ति का प्रतीक है।

6. **उपयोग**:
   - हार्ट सूत्र का पाठ, ध्यान और जाप बौद्ध अनुयायियों द्वारा किया जाता है, खासकर महायान परंपरा में, जैसे कि ज़ेन, तिब्बती बौद्ध धर्म, और अन्य सम्प्रदायों में।
   - यह आत्म-जागरूकता, करुणा और शून्यता की समझ को गहरा करने के लिए प्रयोग होता है।

### संक्षिप्त उद्धरण (संस्कृत से हिंदी अनुवाद):
> "यहाँ, शारिपुत्र, रूप शून्यता है और शून्यता ही रूप है; रूप शून्यता से अलग नहीं है, शून्यता रूप से अलग नहीं है। जो रूप है, वही शून्यता है; जो शून्यता है, वही रूप है।"

### महत्व:
हार्ट सूत्र बौद्ध धर्म के गहन दर्शन को सरल और संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करता है। यह न केवल बौद्धों के लिए, बल्कि दर्शन, ध्यान और आध्यात्मिकता में रुचि रखने वालों के लिए भी प्रेरणादायक है।

Friday, February 7, 2025

आनापानसति सुत्त भाग-२


 

आनापानसति सुत्त जारी भाग-२,

आनापानसति-विधि !


                 118. आनापानसति-सुत्त

                       - उपरि-पण्णासक-

                         (मज्झिमनिकाय)


                       -आनापानसति-विधि-

🌳

" भिक्खुओं ! 

किस प्रकार भावना=बहुलीकरण करने पर, आनापानसति महाफलप्रद=महानृशंस्य होती है?—

🔹

भिक्खुओं ! 

भिक्खु अरण्य, वृक्ष-मूल या शून्यागार में बैठता है, आसन मार, काया को सीधा रख, सति (=स्मृति) को सन्मुख, उपस्थित कर, 

वह स्मृतिपूर्वक श्वास लेता है, 

                             स्मृतिपूर्वक श्वास छोड़ता है। 

🔹

दीर्घ श्वास लेते समय—‘दीर्घ श्वास ले रहा हूँ’—जानता है। 

दीर्घ श्वास छोडते समय—‘दीर्घ श्वास छोड़ रहा हूँ’—जानता है। -१

🔹

ह्रस्व-श्वास लेते समय—‘ह्रस्व श्वास ले रहा हूँ’—जानता है। 

ह्रस्व-श्वास छोडते समय—‘ह्रस्व श्वास छोड़ रहा हूँ’—जानता है। -२

🔹

सारी काया (की स्थिति) को अनुभव करते श्वास लूँगा—सीखता है। 

सारी काया (की स्थिति) को अनुभव करते श्वास छोडूँगा—सीखता (=अभ्यास करता) है। -३

🔹

कायिक संस्कारों (=हर्कतों, क्रियाओं) को रोक कर श्वास लूँगा—अभ्यास करता है। 

कायिक संस्कारों (=हर्कतों, क्रियाओं) को रोक कर श्वास छोडूँगा—अभ्यास करता है। -४


🔹

प्रीति-अनुभव करते आश्वास (=श्वास लेना) लूँगा—अभ्यास करता है।  

प्रीति-अनुभव करते प्रश्वास (=श्वास छोडना) छोडूँगा—अभ्यास करता है। -५

🔹

सुख-अनुभव करते आश्वास (=श्वास लेना) लूँगा—अभ्यास करता है।

सुख-अनुभव करते प्रश्वास (=श्वास छोडना) छोडूँगा—अभ्यास करता है। -६

🔹

चित्त-संस्कारों (=चित्त की क्रियाओं) को अनुभव करते आश्वास लूँगा’— अभ्यास करता है। 

चित्त-संस्कारों (=चित्त की क्रियाओं) प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -७

🔹

चित्त-संस्कार को रोक कर आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

चित्त-संस्कार को रोक कर प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -८


🔹

चित्त को अनुभव करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

चित्त को अनुभव करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -९

🔹

चित्त् को प्रमुदित करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

चित्त् को प्रमुदित करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१०

🔹

चित्त को समाहित करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

चित्त को समाहित करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -११

🔹

चित्त को विमुक्त करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

चित्त को विमुक्त करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१२


🔹

(सभी वस्तुओं/धर्मों के) अनित्य (होने) का ख्याल करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

(सभी वस्तुओं/धर्मों के) अनित्य (होने) का ख्याल करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१३

🔹

(सभी वस्तुओं/धर्मों के) विराग का ख्याल करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

(सभी वस्तुओं/धर्मों के) विराग का ख्याल करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१४

🔹

(सभी वस्तुओं/धर्मों के) निरोध का ख्याल करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

(सभी वस्तुओं/धर्मों के) निरोध का ख्याल करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१५

🔹

(सभी वस्तुओं/धर्मों के) प्रतिनिस्सर्ग (=त्याग) का ख्याल करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

(सभी वस्तुओं/धर्मों के) प्रतिनिस्सर्ग (=त्याग) का ख्याल करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१६

🛞

भिक्खुओं ! 

इस प्रकार भावित=बहुलीकृत आनापानसति महाफलप्रद=महानृशंस होती है। "


                                         - सुत्त जारी 


                                         - श्रंखला जारी 


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आनापानसति-सुत्त



उपोसथ-दिवस, 

पवारणा-दिवस, 

कठिन-चीवर-दान-दिवस व 

वस्सावास-समाप्ति-दिवस पर भगवान् बुद्ध द्वारा प्रतिपादित सबसे महत्वपूर्ण सुत्त - आनापानसति-सुत्त

(बोधिसत्व सिद्धार्थ गौतम इसी आनापान-सति-भावना के द्वारा अरहत्व व बुद्धत्व को प्राप्त हुए थे)। 


                 118. आनापानसति-सुत्त

                       - उपरि-पण्णासक-

                         (मज्झिमनिकाय)

      {कौमुदी (=चाँदनी; कार्तिक-पूर्णिमा) चातुर्मासी}


🙏

ऐसा मैंने सुना —

एक समय भगवान् ,

आयुष्मान् सारिपुत्र, 

आयुष्मान् महामौद्गल्यायन, 

आयुष्मान् महाकाश्यप, 

आयुष्मान् महाकात्यायन, 

आयुष्मान् महाकोट्ठित (=कोष्ठिल), 

आयुष्मान् महाकप्पिन, 

आयुष्मान् महाचुन्द, 

आयुष्मान् अनुरूद्ध, 

आयुष्मान् रेवत, 

आयुष्मान् आनन्द, और दूसरे अभिज्ञात (=प्रसिद्ध) अभिज्ञात स्थविर श्रावको के साथ श्रावस्ती, मृगारमाता के प्रासाद, पूर्वाराम में विहार करते थे।

🌀

उस समय स्थविर (=वृद्ध) भिक्खु नये भिक्खुओं को उपदेश=अनुशासन करत थे। 

🌀

कोई कोई स्थविर भिक्खु दस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

🌀

कोई कोई स्थविर भिक्खु बीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

🌀

कोई कोई स्थविर भिक्खु तीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

🌀

कोई कोई स्थविर भिक्खु चालीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

🎯

स्थविर भिक्खुओं द्वारा उपदेशित=अनुशासित हो, वह नये भिक्खु अच्छी तरह (=उदारं) पूर्व के बाद पीछे आने वाले (विषय) को समझते थे।

🎯

उस समय, उपोसथ को पंचदशी प्रवारणा की पूर्णिमा (कार्तिक-पूर्णिमा) की रात को, 

भगवान् भिक्खु संघ से घिरे खुली जगह में बैठे थे। 

तब भगवान् ने चुपचाप (बैठे) भिक्खु संघ को देखकर, भिक्खुओं को संबोधित किया—

🌳

“भिक्खुओं ! 

मैने इस प्रतिपद् (=मार्ग) के लिये उद्योग किया है, 

इस प्रतिपद के लिये मैं उद्योग-युक्त-चित्त वाला रहा हूँ। 

इसलिये भिक्खुओं ! 

संतुष्ट (=सोमत्त) हो, 

अप्राप्त की प्राप्ति=अनधिगत के अधिगत, 

न-साक्षात्कार किये के साक्षात्कार के लिये और भी उद्योग (=वीर्यारम्भ) करो। 

🌳

भिक्खुओं ! 

यहीं श्रावस्ती में मैं कौमुदी (=चाँदनी; कार्तिक-पूर्णिमा) चातुर्मासी को बिताऊँगा।”

🌀

जनपदवासी (=देहात के) भिक्खुओं ने सुना, कि ,-

भगवान् कौमुदी चातुर्मासी (=कार्तिक-पूर्णिमा) को श्रावस्ती में बितावेंगे। 

तब जनपदवासी भिक्खु भगवान् के दर्शन के लिये श्रावस्ती में आने लगे। 

🌀

वह स्थविर भिक्खु और भी सन्तुष्ट हो नये भिक्खुओं को उपदेश=अनुशासन करते। 

कोई कोई स्थविर भिक्खु दस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

कोई कोई स्थविर भिक्खु बीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

कोई कोई स्थविर भिक्खु तीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

कोई कोई स्थविर भिक्खु चालीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

🎯

स्थविर भिक्खुओं द्वारा उपदेशित=अनुशासित हो, वह नये भिक्खु अच्छी तरह (=उदारं) पूर्व के बाद पीछे आने वाले (विषय) को समझते थे।

उस समय उपोसथ को पंचदशी पूर्णा चातुर्मासी कौमुदी पूर्णिमा की रात को भगवान् भिक्खु-संघ से घिरे खुली जगह में बैठे थे। 

तब भगवान् ने चुपचाप (बैठे) भिक्खु-संघ को देख कर, भिक्खुओं को संबोधित किया —

         

                        - भिक्खु-संघ -

                         (२४ गुणधर्म)

🌳

“भिक्खुओं ! 

यह परिषद् प्रलाप (=शोर-गुल) रहित है (=निष्प्रलाप्य है, 

भिक्खुओं ! 

यह परिषद् सार में प्रतिष्ठित है, शुद्ध है यह परिषद्; 

उस प्रकार का, भिक्खुओं ! यह भिक्खु-संघ है। 

उस प्रकार की, भिक्खुओं ! यह परिषद् है। (१)

🌀

भिक्खुओं ! 

ऐस भगवतो सावक-संघो (इस प्रकार की यह परिषद् )

🔸आहुनेय्यो, (=सत्कार के योग्य)

🔸पाहुनेय्यो,  (=अतिथित्य के योग्य)

🔸दक्खिणेय्यो, (=दान-देने के योग्य) 

🔸अण्जलि-करणियो, (=हाथ जोडने योग्य)

🔸अनुत्तरं पुण्णक्खेत्तं लोकस्सा'ति (=लोक में पुण्य के (बोने) का अनुपम क्षेत्र (खेत) है। 

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२)

🌀

भिक्खुओं ! 

जैसी परिषद् को थोडा देने पर बहुत (फल) हाता है; 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, 

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (३)

 🌀

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार की परिषद् है; 

जैसी परिषद् को बहुत (दान) देने पर बहुत (फल) होता है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (४)

🌀

भिक्खुओं ! 

जिस प्रकार (की परिषद्) का लोगो को दर्शन भी दुर्लभ है। 

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (५)

🌀

भिक्खुओं ! 

जिस प्रकार (की परिषद्) को योजनों दूर होने पर (पाथेय की) पोटली बाँधकर भी जाना योग्य है। 

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (६)


              -चत्तारि-अरिय-पूरिस-पुग्गला-संघ-

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में -

🔸आसव-खय (आ‌श्रव-क्षय) किये, 

🔸 संसार-चक्र (भव-चक्र) को तोड़ चुके (=भव-संस्करण मुक्त), 

🔸कृतकृत्य, 

🔸भारमुक्त, 

🔸सद्-अर्थ (=निर्वाण) को प्राप्त, 

🔸संयोजन (=भव-बंधन) मुक्त, 

🔸सम्यग-ज्ञान द्वारा मुक्त (=अर्हत् भिक्खु) है। 

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (७)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में ऐसे भिक्खु है, जो -

🔸पाँच अवर-भागीय-संयोजनों के क्षय से, 

🔸औपपातिक (=देव) हो वहाँ (शुद्धावास-लोक में) निर्वाण प्राप्त करने वाले, 

🔸उस लोक में यहाँ न आने वाले (=अनागामी) है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (८)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में ऐसे भिक्खु हैं, जो -

🔸तीन संयोजनो के क्षय से व राग-द्वेष-मोह के निर्बल (=तनु) हो जाने से सकृदागामी (=सकदागामी) हैं, 

🔸(वह) एक ही बार (और) इस लोक में आकर दुख का अन्त करेंगे। 

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (९)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -

🔸तीन संयोजनों के क्षय से स्रोतआपन्न (=सोत-आपन्न), 

🔸(निर्वाण-मार्ग से) न पतित होने वाले, 

🔸नियत (=निश्चित), सम्बोधिपरायण (=परमज्ञान को प्राप्त करने वाले) है। 

🔸(वह) सात ही बार (और) इस लोक में आकर दुख का अन्त करेंगे।  

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१०)


             -37 बोधि-पक्खिय-भावित-संघ-

                (4+4+4+5+5+7+8=37)

🌳

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो - 

🔸चारों स्मृति-प्रस्थान की भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (११)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो - 

🔸चार सम्यक्-प्रधानों की भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१२)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸चार ऋद्धिपादों भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१३)

 🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸पाँच इन्द्रियों भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१४)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो - 

🔸पाँच बलों भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१५)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸सात बोध्यंगों कि भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१६)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -

🔸आर्य-अष्टांगिक मार्ग भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१७)


                        -ब्रह्मविहारी-संघ-

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो - 

🔸मैत्री-भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१८)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸करूणा-भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१९)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸मुदिता-भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२०)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸उपेक्षा-भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२१)


               -असुभ-अनिच्च-भावित-संघ-

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸अशुभ-भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२२)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸अनित्य-संज्ञा में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२३)


                -आनापानसति-भावित-संघ-

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸अनापान-सति भावना  में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है।' (२४)


                 -आनापानसति-महाफलप्रद-

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“भिक्खुओं ! 

(कैसी) अनापानसति की भावना करने पर, (अनापानसति अभ्यास को) बढाने पर महाफलप्रद=महानृशंस्य होती है।

 (१)

भिक्खुओं ! 

भिक्खु, अनापानसति की भावना=बहुलीकरण करने पर -

🔸चार स्मृति-प्रस्थानों (चत्तारो-सति-पट्ठान) को परिपूर्ण करता है। 

(२)

फिर भिक्खुओं‌! 

भिक्खु, चार स्मृति-प्रस्थान (चत्तारो-सति-पट्ठान) के बहुलीकृत होने पर -

🔸सात बोध्यंगों (सत्त-बोज्झंग) को परिपूर्ण करता है।

(३)

और फिर भिक्खुओं‌! 

भिक्खु, सात बोध्यंगों (सत्त-बोज्झंग) को परिपूर्ण करने पर - 

🔸विज्जा (विद्या) और विमुक्ति (विमुक्ति) को परिपूर्ण करता है।"

                                         - सुत्त जारी 


टिप्पणी - 

1. अनापानसति से चत्तारो-सति-पट्ठान,

2. चत्तारो-सति-पट्ठान से सत्त-बोज्झंग,

3. सत्त-बोज्झंग से विज्जा-विमुत्ति।


                                         - श्रंखला जारी 


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