उपोसथ-दिवस,
पवारणा-दिवस,
कठिन-चीवर-दान-दिवस व
वस्सावास-समाप्ति-दिवस पर भगवान् बुद्ध द्वारा प्रतिपादित सबसे महत्वपूर्ण सुत्त - आनापानसति-सुत्त
(बोधिसत्व सिद्धार्थ गौतम इसी आनापान-सति-भावना के द्वारा अरहत्व व बुद्धत्व को प्राप्त हुए थे)।
118. आनापानसति-सुत्त
- उपरि-पण्णासक-
(मज्झिमनिकाय)
{कौमुदी (=चाँदनी; कार्तिक-पूर्णिमा) चातुर्मासी}
🙏
ऐसा मैंने सुना —
एक समय भगवान् ,
आयुष्मान् सारिपुत्र,
आयुष्मान् महामौद्गल्यायन,
आयुष्मान् महाकाश्यप,
आयुष्मान् महाकात्यायन,
आयुष्मान् महाकोट्ठित (=कोष्ठिल),
आयुष्मान् महाकप्पिन,
आयुष्मान् महाचुन्द,
आयुष्मान् अनुरूद्ध,
आयुष्मान् रेवत,
आयुष्मान् आनन्द, और दूसरे अभिज्ञात (=प्रसिद्ध) अभिज्ञात स्थविर श्रावको के साथ श्रावस्ती, मृगारमाता के प्रासाद, पूर्वाराम में विहार करते थे।
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उस समय स्थविर (=वृद्ध) भिक्खु नये भिक्खुओं को उपदेश=अनुशासन करत थे।
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कोई कोई स्थविर भिक्खु दस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
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कोई कोई स्थविर भिक्खु बीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
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कोई कोई स्थविर भिक्खु तीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
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कोई कोई स्थविर भिक्खु चालीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
🎯
स्थविर भिक्खुओं द्वारा उपदेशित=अनुशासित हो, वह नये भिक्खु अच्छी तरह (=उदारं) पूर्व के बाद पीछे आने वाले (विषय) को समझते थे।
🎯
उस समय, उपोसथ को पंचदशी प्रवारणा की पूर्णिमा (कार्तिक-पूर्णिमा) की रात को,
भगवान् भिक्खु संघ से घिरे खुली जगह में बैठे थे।
तब भगवान् ने चुपचाप (बैठे) भिक्खु संघ को देखकर, भिक्खुओं को संबोधित किया—
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“भिक्खुओं !
मैने इस प्रतिपद् (=मार्ग) के लिये उद्योग किया है,
इस प्रतिपद के लिये मैं उद्योग-युक्त-चित्त वाला रहा हूँ।
इसलिये भिक्खुओं !
संतुष्ट (=सोमत्त) हो,
अप्राप्त की प्राप्ति=अनधिगत के अधिगत,
न-साक्षात्कार किये के साक्षात्कार के लिये और भी उद्योग (=वीर्यारम्भ) करो।
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भिक्खुओं !
यहीं श्रावस्ती में मैं कौमुदी (=चाँदनी; कार्तिक-पूर्णिमा) चातुर्मासी को बिताऊँगा।”
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जनपदवासी (=देहात के) भिक्खुओं ने सुना, कि ,-
भगवान् कौमुदी चातुर्मासी (=कार्तिक-पूर्णिमा) को श्रावस्ती में बितावेंगे।
तब जनपदवासी भिक्खु भगवान् के दर्शन के लिये श्रावस्ती में आने लगे।
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वह स्थविर भिक्खु और भी सन्तुष्ट हो नये भिक्खुओं को उपदेश=अनुशासन करते।
कोई कोई स्थविर भिक्खु दस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
कोई कोई स्थविर भिक्खु बीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
कोई कोई स्थविर भिक्खु तीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
कोई कोई स्थविर भिक्खु चालीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
🎯
स्थविर भिक्खुओं द्वारा उपदेशित=अनुशासित हो, वह नये भिक्खु अच्छी तरह (=उदारं) पूर्व के बाद पीछे आने वाले (विषय) को समझते थे।
उस समय उपोसथ को पंचदशी पूर्णा चातुर्मासी कौमुदी पूर्णिमा की रात को भगवान् भिक्खु-संघ से घिरे खुली जगह में बैठे थे।
तब भगवान् ने चुपचाप (बैठे) भिक्खु-संघ को देख कर, भिक्खुओं को संबोधित किया —
- भिक्खु-संघ -
(२४ गुणधर्म)
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“भिक्खुओं !
यह परिषद् प्रलाप (=शोर-गुल) रहित है (=निष्प्रलाप्य है,
भिक्खुओं !
यह परिषद् सार में प्रतिष्ठित है, शुद्ध है यह परिषद्;
उस प्रकार का, भिक्खुओं ! यह भिक्खु-संघ है।
उस प्रकार की, भिक्खुओं ! यह परिषद् है। (१)
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भिक्खुओं !
ऐस भगवतो सावक-संघो (इस प्रकार की यह परिषद् )
🔸आहुनेय्यो, (=सत्कार के योग्य)
🔸पाहुनेय्यो, (=अतिथित्य के योग्य)
🔸दक्खिणेय्यो, (=दान-देने के योग्य)
🔸अण्जलि-करणियो, (=हाथ जोडने योग्य)
🔸अनुत्तरं पुण्णक्खेत्तं लोकस्सा'ति (=लोक में पुण्य के (बोने) का अनुपम क्षेत्र (खेत) है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२)
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भिक्खुओं !
जैसी परिषद् को थोडा देने पर बहुत (फल) हाता है;
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है,
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (३)
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भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार की परिषद् है;
जैसी परिषद् को बहुत (दान) देने पर बहुत (फल) होता है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (४)
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भिक्खुओं !
जिस प्रकार (की परिषद्) का लोगो को दर्शन भी दुर्लभ है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (५)
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भिक्खुओं !
जिस प्रकार (की परिषद्) को योजनों दूर होने पर (पाथेय की) पोटली बाँधकर भी जाना योग्य है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (६)
-चत्तारि-अरिय-पूरिस-पुग्गला-संघ-
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भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में -
🔸आसव-खय (आश्रव-क्षय) किये,
🔸 संसार-चक्र (भव-चक्र) को तोड़ चुके (=भव-संस्करण मुक्त),
🔸कृतकृत्य,
🔸भारमुक्त,
🔸सद्-अर्थ (=निर्वाण) को प्राप्त,
🔸संयोजन (=भव-बंधन) मुक्त,
🔸सम्यग-ज्ञान द्वारा मुक्त (=अर्हत् भिक्खु) है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (७)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में ऐसे भिक्खु है, जो -
🔸पाँच अवर-भागीय-संयोजनों के क्षय से,
🔸औपपातिक (=देव) हो वहाँ (शुद्धावास-लोक में) निर्वाण प्राप्त करने वाले,
🔸उस लोक में यहाँ न आने वाले (=अनागामी) है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (८)
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भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में ऐसे भिक्खु हैं, जो -
🔸तीन संयोजनो के क्षय से व राग-द्वेष-मोह के निर्बल (=तनु) हो जाने से सकृदागामी (=सकदागामी) हैं,
🔸(वह) एक ही बार (और) इस लोक में आकर दुख का अन्त करेंगे।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (९)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸तीन संयोजनों के क्षय से स्रोतआपन्न (=सोत-आपन्न),
🔸(निर्वाण-मार्ग से) न पतित होने वाले,
🔸नियत (=निश्चित), सम्बोधिपरायण (=परमज्ञान को प्राप्त करने वाले) है।
🔸(वह) सात ही बार (और) इस लोक में आकर दुख का अन्त करेंगे।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१०)
-37 बोधि-पक्खिय-भावित-संघ-
(4+4+4+5+5+7+8=37)
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भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸चारों स्मृति-प्रस्थान की भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (११)
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भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸चार सम्यक्-प्रधानों की भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१२)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸चार ऋद्धिपादों भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१३)
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भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸पाँच इन्द्रियों भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१४)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸पाँच बलों भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१५)
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भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸सात बोध्यंगों कि भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१६)
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भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸आर्य-अष्टांगिक मार्ग भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१७)
-ब्रह्मविहारी-संघ-
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भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸मैत्री-भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१८)
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भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸करूणा-भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१९)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸मुदिता-भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२०)
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भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸उपेक्षा-भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२१)
-असुभ-अनिच्च-भावित-संघ-
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भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸अशुभ-भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२२)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸अनित्य-संज्ञा में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२३)
-आनापानसति-भावित-संघ-
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भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸अनापान-सति भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है।' (२४)
-आनापानसति-महाफलप्रद-
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“भिक्खुओं !
(कैसी) अनापानसति की भावना करने पर, (अनापानसति अभ्यास को) बढाने पर महाफलप्रद=महानृशंस्य होती है।
(१)
भिक्खुओं !
भिक्खु, अनापानसति की भावना=बहुलीकरण करने पर -
🔸चार स्मृति-प्रस्थानों (चत्तारो-सति-पट्ठान) को परिपूर्ण करता है।
(२)
फिर भिक्खुओं!
भिक्खु, चार स्मृति-प्रस्थान (चत्तारो-सति-पट्ठान) के बहुलीकृत होने पर -
🔸सात बोध्यंगों (सत्त-बोज्झंग) को परिपूर्ण करता है।
(३)
और फिर भिक्खुओं!
भिक्खु, सात बोध्यंगों (सत्त-बोज्झंग) को परिपूर्ण करने पर -
🔸विज्जा (विद्या) और विमुक्ति (विमुक्ति) को परिपूर्ण करता है।"
- सुत्त जारी
टिप्पणी -
1. अनापानसति से चत्तारो-सति-पट्ठान,
2. चत्तारो-सति-पट्ठान से सत्त-बोज्झंग,
3. सत्त-बोज्झंग से विज्जा-विमुत्ति।
- श्रंखला जारी
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