Friday, February 7, 2025

आनापानसति-सुत्त



उपोसथ-दिवस, 

पवारणा-दिवस, 

कठिन-चीवर-दान-दिवस व 

वस्सावास-समाप्ति-दिवस पर भगवान् बुद्ध द्वारा प्रतिपादित सबसे महत्वपूर्ण सुत्त - आनापानसति-सुत्त

(बोधिसत्व सिद्धार्थ गौतम इसी आनापान-सति-भावना के द्वारा अरहत्व व बुद्धत्व को प्राप्त हुए थे)। 


                 118. आनापानसति-सुत्त

                       - उपरि-पण्णासक-

                         (मज्झिमनिकाय)

      {कौमुदी (=चाँदनी; कार्तिक-पूर्णिमा) चातुर्मासी}


🙏

ऐसा मैंने सुना —

एक समय भगवान् ,

आयुष्मान् सारिपुत्र, 

आयुष्मान् महामौद्गल्यायन, 

आयुष्मान् महाकाश्यप, 

आयुष्मान् महाकात्यायन, 

आयुष्मान् महाकोट्ठित (=कोष्ठिल), 

आयुष्मान् महाकप्पिन, 

आयुष्मान् महाचुन्द, 

आयुष्मान् अनुरूद्ध, 

आयुष्मान् रेवत, 

आयुष्मान् आनन्द, और दूसरे अभिज्ञात (=प्रसिद्ध) अभिज्ञात स्थविर श्रावको के साथ श्रावस्ती, मृगारमाता के प्रासाद, पूर्वाराम में विहार करते थे।

🌀

उस समय स्थविर (=वृद्ध) भिक्खु नये भिक्खुओं को उपदेश=अनुशासन करत थे। 

🌀

कोई कोई स्थविर भिक्खु दस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

🌀

कोई कोई स्थविर भिक्खु बीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

🌀

कोई कोई स्थविर भिक्खु तीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

🌀

कोई कोई स्थविर भिक्खु चालीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

🎯

स्थविर भिक्खुओं द्वारा उपदेशित=अनुशासित हो, वह नये भिक्खु अच्छी तरह (=उदारं) पूर्व के बाद पीछे आने वाले (विषय) को समझते थे।

🎯

उस समय, उपोसथ को पंचदशी प्रवारणा की पूर्णिमा (कार्तिक-पूर्णिमा) की रात को, 

भगवान् भिक्खु संघ से घिरे खुली जगह में बैठे थे। 

तब भगवान् ने चुपचाप (बैठे) भिक्खु संघ को देखकर, भिक्खुओं को संबोधित किया—

🌳

“भिक्खुओं ! 

मैने इस प्रतिपद् (=मार्ग) के लिये उद्योग किया है, 

इस प्रतिपद के लिये मैं उद्योग-युक्त-चित्त वाला रहा हूँ। 

इसलिये भिक्खुओं ! 

संतुष्ट (=सोमत्त) हो, 

अप्राप्त की प्राप्ति=अनधिगत के अधिगत, 

न-साक्षात्कार किये के साक्षात्कार के लिये और भी उद्योग (=वीर्यारम्भ) करो। 

🌳

भिक्खुओं ! 

यहीं श्रावस्ती में मैं कौमुदी (=चाँदनी; कार्तिक-पूर्णिमा) चातुर्मासी को बिताऊँगा।”

🌀

जनपदवासी (=देहात के) भिक्खुओं ने सुना, कि ,-

भगवान् कौमुदी चातुर्मासी (=कार्तिक-पूर्णिमा) को श्रावस्ती में बितावेंगे। 

तब जनपदवासी भिक्खु भगवान् के दर्शन के लिये श्रावस्ती में आने लगे। 

🌀

वह स्थविर भिक्खु और भी सन्तुष्ट हो नये भिक्खुओं को उपदेश=अनुशासन करते। 

कोई कोई स्थविर भिक्खु दस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

कोई कोई स्थविर भिक्खु बीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

कोई कोई स्थविर भिक्खु तीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

कोई कोई स्थविर भिक्खु चालीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे; 

🎯

स्थविर भिक्खुओं द्वारा उपदेशित=अनुशासित हो, वह नये भिक्खु अच्छी तरह (=उदारं) पूर्व के बाद पीछे आने वाले (विषय) को समझते थे।

उस समय उपोसथ को पंचदशी पूर्णा चातुर्मासी कौमुदी पूर्णिमा की रात को भगवान् भिक्खु-संघ से घिरे खुली जगह में बैठे थे। 

तब भगवान् ने चुपचाप (बैठे) भिक्खु-संघ को देख कर, भिक्खुओं को संबोधित किया —

         

                        - भिक्खु-संघ -

                         (२४ गुणधर्म)

🌳

“भिक्खुओं ! 

यह परिषद् प्रलाप (=शोर-गुल) रहित है (=निष्प्रलाप्य है, 

भिक्खुओं ! 

यह परिषद् सार में प्रतिष्ठित है, शुद्ध है यह परिषद्; 

उस प्रकार का, भिक्खुओं ! यह भिक्खु-संघ है। 

उस प्रकार की, भिक्खुओं ! यह परिषद् है। (१)

🌀

भिक्खुओं ! 

ऐस भगवतो सावक-संघो (इस प्रकार की यह परिषद् )

🔸आहुनेय्यो, (=सत्कार के योग्य)

🔸पाहुनेय्यो,  (=अतिथित्य के योग्य)

🔸दक्खिणेय्यो, (=दान-देने के योग्य) 

🔸अण्जलि-करणियो, (=हाथ जोडने योग्य)

🔸अनुत्तरं पुण्णक्खेत्तं लोकस्सा'ति (=लोक में पुण्य के (बोने) का अनुपम क्षेत्र (खेत) है। 

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२)

🌀

भिक्खुओं ! 

जैसी परिषद् को थोडा देने पर बहुत (फल) हाता है; 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, 

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (३)

 🌀

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार की परिषद् है; 

जैसी परिषद् को बहुत (दान) देने पर बहुत (फल) होता है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (४)

🌀

भिक्खुओं ! 

जिस प्रकार (की परिषद्) का लोगो को दर्शन भी दुर्लभ है। 

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (५)

🌀

भिक्खुओं ! 

जिस प्रकार (की परिषद्) को योजनों दूर होने पर (पाथेय की) पोटली बाँधकर भी जाना योग्य है। 

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (६)


              -चत्तारि-अरिय-पूरिस-पुग्गला-संघ-

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में -

🔸आसव-खय (आ‌श्रव-क्षय) किये, 

🔸 संसार-चक्र (भव-चक्र) को तोड़ चुके (=भव-संस्करण मुक्त), 

🔸कृतकृत्य, 

🔸भारमुक्त, 

🔸सद्-अर्थ (=निर्वाण) को प्राप्त, 

🔸संयोजन (=भव-बंधन) मुक्त, 

🔸सम्यग-ज्ञान द्वारा मुक्त (=अर्हत् भिक्खु) है। 

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (७)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में ऐसे भिक्खु है, जो -

🔸पाँच अवर-भागीय-संयोजनों के क्षय से, 

🔸औपपातिक (=देव) हो वहाँ (शुद्धावास-लोक में) निर्वाण प्राप्त करने वाले, 

🔸उस लोक में यहाँ न आने वाले (=अनागामी) है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (८)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में ऐसे भिक्खु हैं, जो -

🔸तीन संयोजनो के क्षय से व राग-द्वेष-मोह के निर्बल (=तनु) हो जाने से सकृदागामी (=सकदागामी) हैं, 

🔸(वह) एक ही बार (और) इस लोक में आकर दुख का अन्त करेंगे। 

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (९)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -

🔸तीन संयोजनों के क्षय से स्रोतआपन्न (=सोत-आपन्न), 

🔸(निर्वाण-मार्ग से) न पतित होने वाले, 

🔸नियत (=निश्चित), सम्बोधिपरायण (=परमज्ञान को प्राप्त करने वाले) है। 

🔸(वह) सात ही बार (और) इस लोक में आकर दुख का अन्त करेंगे।  

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१०)


             -37 बोधि-पक्खिय-भावित-संघ-

                (4+4+4+5+5+7+8=37)

🌳

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो - 

🔸चारों स्मृति-प्रस्थान की भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (११)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो - 

🔸चार सम्यक्-प्रधानों की भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१२)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸चार ऋद्धिपादों भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१३)

 🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸पाँच इन्द्रियों भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१४)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो - 

🔸पाँच बलों भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१५)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸सात बोध्यंगों कि भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१६)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -

🔸आर्य-अष्टांगिक मार्ग भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१७)


                        -ब्रह्मविहारी-संघ-

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भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो - 

🔸मैत्री-भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१८)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸करूणा-भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१९)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸मुदिता-भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२०)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸उपेक्षा-भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२१)


               -असुभ-अनिच्च-भावित-संघ-

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भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸अशुभ-भावना में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२२)

🌀

भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸अनित्य-संज्ञा में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२३)


                -आनापानसति-भावित-संघ-

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भिक्खुओं ! 

इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -  

🔸अनापान-सति भावना  में तत्पर हो विहरते है।

भिक्खुओं ! 

(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है।' (२४)


                 -आनापानसति-महाफलप्रद-

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“भिक्खुओं ! 

(कैसी) अनापानसति की भावना करने पर, (अनापानसति अभ्यास को) बढाने पर महाफलप्रद=महानृशंस्य होती है।

 (१)

भिक्खुओं ! 

भिक्खु, अनापानसति की भावना=बहुलीकरण करने पर -

🔸चार स्मृति-प्रस्थानों (चत्तारो-सति-पट्ठान) को परिपूर्ण करता है। 

(२)

फिर भिक्खुओं‌! 

भिक्खु, चार स्मृति-प्रस्थान (चत्तारो-सति-पट्ठान) के बहुलीकृत होने पर -

🔸सात बोध्यंगों (सत्त-बोज्झंग) को परिपूर्ण करता है।

(३)

और फिर भिक्खुओं‌! 

भिक्खु, सात बोध्यंगों (सत्त-बोज्झंग) को परिपूर्ण करने पर - 

🔸विज्जा (विद्या) और विमुक्ति (विमुक्ति) को परिपूर्ण करता है।"

                                         - सुत्त जारी 


टिप्पणी - 

1. अनापानसति से चत्तारो-सति-पट्ठान,

2. चत्तारो-सति-पट्ठान से सत्त-बोज्झंग,

3. सत्त-बोज्झंग से विज्जा-विमुत्ति।


                                         - श्रंखला जारी 


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