Friday, February 7, 2025

आनापानसति सुत्त भाग-२


 

आनापानसति सुत्त जारी भाग-२,

आनापानसति-विधि !


                 118. आनापानसति-सुत्त

                       - उपरि-पण्णासक-

                         (मज्झिमनिकाय)


                       -आनापानसति-विधि-

🌳

" भिक्खुओं ! 

किस प्रकार भावना=बहुलीकरण करने पर, आनापानसति महाफलप्रद=महानृशंस्य होती है?—

🔹

भिक्खुओं ! 

भिक्खु अरण्य, वृक्ष-मूल या शून्यागार में बैठता है, आसन मार, काया को सीधा रख, सति (=स्मृति) को सन्मुख, उपस्थित कर, 

वह स्मृतिपूर्वक श्वास लेता है, 

                             स्मृतिपूर्वक श्वास छोड़ता है। 

🔹

दीर्घ श्वास लेते समय—‘दीर्घ श्वास ले रहा हूँ’—जानता है। 

दीर्घ श्वास छोडते समय—‘दीर्घ श्वास छोड़ रहा हूँ’—जानता है। -१

🔹

ह्रस्व-श्वास लेते समय—‘ह्रस्व श्वास ले रहा हूँ’—जानता है। 

ह्रस्व-श्वास छोडते समय—‘ह्रस्व श्वास छोड़ रहा हूँ’—जानता है। -२

🔹

सारी काया (की स्थिति) को अनुभव करते श्वास लूँगा—सीखता है। 

सारी काया (की स्थिति) को अनुभव करते श्वास छोडूँगा—सीखता (=अभ्यास करता) है। -३

🔹

कायिक संस्कारों (=हर्कतों, क्रियाओं) को रोक कर श्वास लूँगा—अभ्यास करता है। 

कायिक संस्कारों (=हर्कतों, क्रियाओं) को रोक कर श्वास छोडूँगा—अभ्यास करता है। -४


🔹

प्रीति-अनुभव करते आश्वास (=श्वास लेना) लूँगा—अभ्यास करता है।  

प्रीति-अनुभव करते प्रश्वास (=श्वास छोडना) छोडूँगा—अभ्यास करता है। -५

🔹

सुख-अनुभव करते आश्वास (=श्वास लेना) लूँगा—अभ्यास करता है।

सुख-अनुभव करते प्रश्वास (=श्वास छोडना) छोडूँगा—अभ्यास करता है। -६

🔹

चित्त-संस्कारों (=चित्त की क्रियाओं) को अनुभव करते आश्वास लूँगा’— अभ्यास करता है। 

चित्त-संस्कारों (=चित्त की क्रियाओं) प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -७

🔹

चित्त-संस्कार को रोक कर आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

चित्त-संस्कार को रोक कर प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -८


🔹

चित्त को अनुभव करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

चित्त को अनुभव करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -९

🔹

चित्त् को प्रमुदित करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

चित्त् को प्रमुदित करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१०

🔹

चित्त को समाहित करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

चित्त को समाहित करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -११

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चित्त को विमुक्त करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

चित्त को विमुक्त करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१२


🔹

(सभी वस्तुओं/धर्मों के) अनित्य (होने) का ख्याल करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

(सभी वस्तुओं/धर्मों के) अनित्य (होने) का ख्याल करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१३

🔹

(सभी वस्तुओं/धर्मों के) विराग का ख्याल करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

(सभी वस्तुओं/धर्मों के) विराग का ख्याल करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१४

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(सभी वस्तुओं/धर्मों के) निरोध का ख्याल करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

(सभी वस्तुओं/धर्मों के) निरोध का ख्याल करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१५

🔹

(सभी वस्तुओं/धर्मों के) प्रतिनिस्सर्ग (=त्याग) का ख्याल करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है। 

(सभी वस्तुओं/धर्मों के) प्रतिनिस्सर्ग (=त्याग) का ख्याल करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१६

🛞

भिक्खुओं ! 

इस प्रकार भावित=बहुलीकृत आनापानसति महाफलप्रद=महानृशंस होती है। "


                                         - सुत्त जारी 


                                         - श्रंखला जारी 


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