"अतीत का पीछा न करो ।
भविष्य के भ्रम जाल मे न फ़ंसो।
अतीत व्यतीत हो गया ।
भविष्य अभी अनागत है ।
यहाँ अभी इस क्षण जीवन जैसा है , उसी को धारण करो
साधनाभ्यासी ,स्थिरता और मुक्त भाव मे जीता है ।
कल की प्रतीक्षा की , तो विलम्ब होगा।
मृत्यु अचानक धर दबोचती है
उससे हम क्या समझोता कर सकते हैं ?
भिक्खुजन उसी का आह्वान करते हैं
जो दिन और रात
सचेतानावस्था मे जागृत रहता है
जो जानता है कि
एकान्तवास का उत्तमतर मार्ग क्या है । ”
स्त्रोत : मॆट्टा सुत्त(M. 131); भदिद्कारता सुत्त, आंनद भद्दकारता सुत्त
“Do not pursue the past.
Do not lose yourself in the future.
The past no longer is.
The future has not yet come.
Looking deeply at life as it is
in the very here and now,
the practitioner dwells
in stability and freedom.
We must be diligent today.
To wait until tomorrow is too late.
Death comes unexpectedly.
How can we bargain with it?
The sage calls a person who knows
how to dwell in mindfulness
night and day
‘one who knows
the better way to live alone.’”
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