भगवान् बुद्ध की शिक्षाओं और उनके धम्म को आज २५०० वर्ष से ऊपर का समय हो गया है लेकिन क्या आज के दौर मे उनकी शिक्षाएं प्रासांगिक हैं ? लेकिन हम देखते हैं कि जीवन के प्रति समस्यायें पहले की अपेक्षा और भी अधिक दुरुह होती जा रही हैं । मानसिक रोगियों की संख्या पिछ्ले कुछ सालों मे बेहन्ताह बढी है । पति- पत्नी मे क्लेश , संबधों का टूटना , बच्चों मे अधीरपन की भावना रहते कई तृष्णाओं का जन्म होना , फ़िर उनकी अनगिनत फ़रमाइशें , और उन तृष्णाओं के पूरा न हो पाने की स्थिति मे कई अनैतिक कार्य …इन सब का क्या कही अन्त दिखता है ? आज से २५०० साल पहले भी स्थिति लगभग यही थी । बुद्ध ने देशनाओं मे काल्पनिक ईशवर के स्थान पर शील को अधिक महत्व दिया । बुद्ध ने ऐसे ही न जाने कितने बुनियादी सवालों को उठाया है । यही कारण है कि भगवान् बुद्ध के संदेश सीधे साधे और व्यावाहारिक हैं । उनमें पांखड और ढॊग का समावेश बिल्कुल भी नही है । भगवान् बुद्ध द्वारा स्फ़ुटित प्रवचनों को भिक्खुओं ने सुत्त के रुप में संजोय कर रखा । इनमें से मंगल सुत्त, सिगालोवाद सुत्त, व्यग्धपज्ज सुत्त और पराभव सुत्त आम इन्सान की जीवन शैली से जुडे है । जहाँ मंगल सुत्त जीवन पद्धित से संबन्धित है वही पराभव सुत्त पतन के कारणॊ की ओर संकेत देकर इसको अनूपूरित करता है । इसी तरह सिंगालोवाद सुत्त सरोकार रखता है मूलभूत शील , धनोपार्जन तथा उसके संरक्षण से, सामाजिक सम्बन्धों के परस्पर उत्तरदायितवों तथा सफ़ल व्यक्ति के गुणॊं से ।
सिगालोवाद सुत्त : छ: दिशाये और छ: प्रकार के रिशतों को बचाना ( ऊपर चित्र से )
भगवान् बुद्ध नें सिगाल को उपदेश देते हुये कहा कि उनके धम्म में पूरब का मतलब माता- पिता , दक्षिण का अर्थ गुरु और शिक्षक , पशिचम का अर्थ पत्नी और बच्चे , उत्तर का मतलब मित्र और रिशतेदार , धरती का अर्थ कर्मचारी , नौकर-चाकर और आसामान का अर्थ साधु संत, महापुरुष तथा आर्दश व्यक्ति होता है । बुद्ध ने कहा कि छ: दिशाओं की पूजा इस तरह से करनी चाहिये ।
पूर्व की सुरक्षा – बच्चे तथा माता – पिता
बच्चों को माता पिता के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये :
भगवान् बुद्ध ने सिगाल को माता पिता की सेवा करने का महत्व बताया । उन्होनें किसी काल्पनिक ईशवर को ब्रह्म नही बल्कि माता पिता को ही ब्रह्म कहा । ‘ ब्रह्मा ति मातापितरो ’ बुद्धिमान व्यक्ति को माता पिता का उचित सत्कार करना चाहिये , बुढापे में उनकी देखभाल करनी चाहिये । बुद्ध ने कहा कि अपने परिवार के मान सम्मान को अक्षुण्ण रखना चाहिये और बच्चों को अपने माता पिता द्वारा कमाई हुई संपति की रक्षा करनी चाहिये । उन्होनें कहा कि कोई भी व्यक्ति दिन रात अपने माता पिता की सेवा करे तो भी वह उनके ऋण से मुक्त नही हो सकता । उनके ऋण से मुक्त होने का तरीका है कि अगर माता पिता शीलवान नही हैं तो उन्हें शीलवान करने मे मदद करें । अगर शीलवान हैं और समाधि में प्रतिष्ठित हैं लेकिन प्रज्ञा में प्रतिष्ठित नही हैं तो उन्हें प्रज्ञा मे प्रतिष्ठित करें । उन्होने यह भी कहा कि बच्चे माता पिता के व्यवसाय मे सहायता देकर , काम से और किसी तौर तरीकों से परिवार को संगठित रखें , उत्तरदायित्व के योग्य बनें और दिंवगत माँ बाप या संम्बन्धियों की यादगार मे दान देकर उन्हें हमेशा याद रखें ।
माँ – बाप को बच्चॊं के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये :
बुद्ध ने सिगाल से आगे कहा कि माता पिता का भी बच्चॊ के प्रति उत्तरदायित्व होता है , उनकी जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को बुरी आदतों और अकुशल कामों से बचाकर रखें उन्हें अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलायें , अच्छॆ कामॊ के लिये उनका उत्साह बढायें , उन्हें अच्छॆ और आय वाले काम धंधें में लगायें , विवाह योग्य हो जाने पर उनका अच्छा रिशता करें और उचित समय आने पर परिवारिक संपति उनको सुपर्द कर दें ।
दक्षिण की सुरक्षा – विधार्थी तथा अध्यापक
बुद्ध ने सिगाल से कहा कि शिष्य को अपने गुरु का सम्मान करना चाहिये । उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिये व उनकी आवशयकताओं को पूरा करना चाहिये । शिक्षक को भी अपने शिष्य को सही और समुचित शिक्षा देनी चाहिये , उसे उचित रुप से पढाना चाहिये , अच्छी संगत के लिये उसे प्रेरित करना चाहिये और शिक्षा समाप्त होने पर रोजगार प्राप्त करने के लिये सहायक होना चाहिये ।
पशिचम की सुरुक्षा – पति तथा पत्नी
पति को अपनी पत्नी के साथ कैसा व्यवाहार करना चाहिये :
पति तथा पत्नी के प्यार को बुद्ध ने पवित्र प्यार की संज्ञा दी । उसे सादर ब्राह्मचर्य ( पवित्र गृहस्थ जीवन ) कहा । उन्होने कहा कि पति और पत्नी एक दूसरे के विशवास्पात्र रहें , एक दूसरे का सम्मान करें , एक दूसरे के प्रति समर्पित रहें , एक दूसरे के प्रति उतरदायित्वों का पालन करें । उन्होनें कहा कि पति पत्नी एक दूसरे के पूरक होते हैं । पति का कर्तव्य है वह अपने पत्नी की मान सम्मान की रक्षा करे , कभी न अपमान होने दे , अनैतिक मिथ्याचार से दूर रहे , अपनी आय के हिसाब से पत्नी को संतुष्ट रखे और समय –२पर पत्नी को उपहार देता रहे ।
पत्नी का पति के प्रति कर्तव्य :
पत्नी का भी यह कर्तव्य है कि घर के कामकाज को ठीक से संचालित करे , घर के कामकाज मे आलस्य करे , परिवार के समस्त च्यक्तियों का आदर करे , अनैतिक मिथ्याचार से दूर रहे , पति की आय की सुरुक्षा करे और सतर्क और दक्ष रहे ।
उत्तर की सुरुक्षा – मित्र और सहयोगी साथी :
भगवान बुद्ध ने कहा कि मित्रों , पडोसियों और रिशतेदारॊ का उचित सादर सत्कार करना चाहिये , उनसे प्रिय वाणी मे बात करनी चाहिये , उनके भलाई की कामना करनी चाहिये औए संकट के समय उनका साथ न छोडना चाहिये ।
पाताल दिशा की सुरुक्षा – स्वामी तथा कर्मचारी :
स्वामियों को कैसे कर्माचारी से व्यवहार करना चाहिये :
मालिक का अपने कर्मचारियों के प्रति भी उतरदायित्व हैं । उनकी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे उनकी योग्यता और क्षमता के अनुसार ही काम दें , काम के बदले उचित वेतन और परिश्रामिक दें । उनकी चिकित्सा का ख्याल रखें और समय –२ पर उनको पुरस्कृत करते रहें ।
कर्मचारियों का अपने स्वामियों के प्रति व्यवहार :
कर्मचारियों की भी अपने मालिकों के प्रति भी जिम्मेदारी है कि वे ईमानदार रहें , आलस्य को त्यागकर मेहनत लगन से काम करें , आज्ञाकारी रहें और अपने मालिकों को कभी धोखा न दें ।
आकाशा दिशा की सुरुक्षा – आधयात्मिक गुरु तथा उपासक :
उपासक और भिक्खु के सम्बन्धों के बारे में बुद्ध ने कहा कि उपासक को अपने धर्मगुरु की आवशयकताओं को प्यार और सम्मान से पूरा करना चाहिये । इसी तरह धर्मगुरु को करुण ह्रदय से उपासक उपासिकाओं को धम्म सिखाना चाहिये जिससे कि वह धम्ममार्ग पर चलकर नैतिक और आधयात्मिक जीवन जी सकें ।
इतना ही नही उन्होनें सिगाल से कहा कि लालच , क्रोध, वासना , भय तथा ईर्ष्या के वशीभूत होकर कोई काम नही करना चाहिये । जो एक सद्गुणी व्यक्ति को चार कर्मक्लेशों से विरत रखते हैं । यह चार कर्मक्लेश हैं :
पाणातिपाता – प्राणिमात्र को कष्ट देने अथवा हत्या करने से विरत रहना
अदिन्नदाना – जो दिया नही गया उसे लेने से विरत रहना ।
कामेसुमिच्छाचारा – लैंगिक दुराचार से विरत रहना ।
मूसावादा – झूठ बोलने से विरत रहना ।
इतना ही नही उन्होने सिगाल को समझाया कि एक सद्गुणी व्यक्ति को सम्पति का संवर्धन और प्रबन्धन कैसे करना चाहिये । बुद्ध् ने सिगाल से कहा कि हमेशा धन के चार भाग करना चाहिये । एक भाग व्यय करना चाहिये तथा मेहनत के फ़लों का उपभोग करना चाहिये , दूसरा अंश जरुरतमंद लोगों और अल्पभागियों के लिये खर्च करना चाहिये , तीसरा भाग अपना व्यपार चलाने और बढाने के लिये और चौथा भाग बचाना चाहिये दुर्दिनों के लिये ।
सदगुणी लोगों से संबध बढाओ और घटिया लोगों की संगत और घटिया मार्ग त्याग दो , आत्म साधना और सच्चरित्रता बढाने वाले वातावरण मे रहो , सदधर्म एवं शील अपनाने और अपना कर्य गहनता से कर सकने के अवसरों को बढाते रहो , अपने माता पिता , पति या पत्नी और बच्चॊ की अच्छी तरह से देखभाल करॊ , उनके लिये समय निकालो । अपने समय , साधनों और प्रसन्नता में औरों को भी भागीदार बनाओ । सद्गुण अपनाने के लिये अवसर जुटाओं और मधपान और जुऎ से दूर बचो । विनम्रता , कृतज्ञता और सादा जीवनयापन की कला को सीखो । चार आर्य सत्यों के आधार पर जीवनयापन करॊ । ध्यान साधना सीखो जिससे दु:खों और चिंताओं का नाश हो सके ।
संदर्भित ग्रंथ , पुस्तकें और वेब लिंक :
१. आनन्द श्री कृष्ण : गौतम बुद्ध और उनके उपदेश , प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
२. मंगलमय जीवन – शांति , प्रसन्नता एवं समृद्धि की कुंजी – सम्पादक राजेश चन्द्रा
३. An approach to Buddhist Social philosophy – Ven P Gnanarama
४. Sigalovada sutta – Ven P. Pemeratana
५. The Sigalovada in Pictures - BuddhaNet
सिगालोवाद सुत्त : छ: दिशाये और छ: प्रकार के रिशतों को बचाना ( ऊपर चित्र से )
छ: दिशाये:दीघ निकाय के सिगाल सुत्त से पता चलता है कि सिगाल नामक युवक हठीला , भौतिकवादी और जिद्दी स्वभाव का युवक था । राजगृह के वेलुवन में विहार करते हुये भिक्षाटन के लिये निकले बुद्ध की मुलाकात श्रेष्ठिपुत्र सिगाल से होती है जो छह दिशाओं को झुककर नमस्कार कर रहा था । बुद्ध के पूछने पर उसने बताया कि उसके पिता की अन्तिम इच्छा अनुसार वह यह अनुष्ठान नियमित रुप से करता है लेकिन न तो उसको इस पर विशवास है और न ही वह इसका अर्थ जानता है ।
१. जीवन का आरम्भ –हमारा बचपन । पूर्व दिशा बच्चॊ को तथा माता पिता को दर्शाती है ।
२. युवा होने पर अगला धरातल हमारा विधालय – दक्षिण दिशा विधार्थी तथा अध्यापकों को दर्शाती है ।
३. युवा –वयस्क होने पर परिवार का आरम्भ । पशिचम दिशा पति-पत्नी का प्रतीक है ।
४. आगे बढकर , हमारा सामाजिक जीवन । उत्तर दिशा मित्र तथा सहयोगी को दर्शाती है ।
५. कमाऊ होने पर हमारा व्यपार तथा अन्य कार्य होते हैं । नीचे की दिशा मालिकों , नियोक्ता तथा कर्मचारियों का प्रतीक है ।
६. जब हम जीवन मे परिपक्व होते हैं तब हम उच्च आर्द्श ढूँढते हैं । उत्तर की दिशा साधारण लोगों को तथा आध्यात्मिक गुरुऒं को दर्शाती है ।
भगवान् बुद्ध नें सिगाल को उपदेश देते हुये कहा कि उनके धम्म में पूरब का मतलब माता- पिता , दक्षिण का अर्थ गुरु और शिक्षक , पशिचम का अर्थ पत्नी और बच्चे , उत्तर का मतलब मित्र और रिशतेदार , धरती का अर्थ कर्मचारी , नौकर-चाकर और आसामान का अर्थ साधु संत, महापुरुष तथा आर्दश व्यक्ति होता है । बुद्ध ने कहा कि छ: दिशाओं की पूजा इस तरह से करनी चाहिये ।
पूर्व की सुरक्षा – बच्चे तथा माता – पिता
बच्चों को माता पिता के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये :
भगवान् बुद्ध ने सिगाल को माता पिता की सेवा करने का महत्व बताया । उन्होनें किसी काल्पनिक ईशवर को ब्रह्म नही बल्कि माता पिता को ही ब्रह्म कहा । ‘ ब्रह्मा ति मातापितरो ’ बुद्धिमान व्यक्ति को माता पिता का उचित सत्कार करना चाहिये , बुढापे में उनकी देखभाल करनी चाहिये । बुद्ध ने कहा कि अपने परिवार के मान सम्मान को अक्षुण्ण रखना चाहिये और बच्चों को अपने माता पिता द्वारा कमाई हुई संपति की रक्षा करनी चाहिये । उन्होनें कहा कि कोई भी व्यक्ति दिन रात अपने माता पिता की सेवा करे तो भी वह उनके ऋण से मुक्त नही हो सकता । उनके ऋण से मुक्त होने का तरीका है कि अगर माता पिता शीलवान नही हैं तो उन्हें शीलवान करने मे मदद करें । अगर शीलवान हैं और समाधि में प्रतिष्ठित हैं लेकिन प्रज्ञा में प्रतिष्ठित नही हैं तो उन्हें प्रज्ञा मे प्रतिष्ठित करें । उन्होने यह भी कहा कि बच्चे माता पिता के व्यवसाय मे सहायता देकर , काम से और किसी तौर तरीकों से परिवार को संगठित रखें , उत्तरदायित्व के योग्य बनें और दिंवगत माँ बाप या संम्बन्धियों की यादगार मे दान देकर उन्हें हमेशा याद रखें ।
माँ – बाप को बच्चॊं के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये :
बुद्ध ने सिगाल से आगे कहा कि माता पिता का भी बच्चॊ के प्रति उत्तरदायित्व होता है , उनकी जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को बुरी आदतों और अकुशल कामों से बचाकर रखें उन्हें अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलायें , अच्छॆ कामॊ के लिये उनका उत्साह बढायें , उन्हें अच्छॆ और आय वाले काम धंधें में लगायें , विवाह योग्य हो जाने पर उनका अच्छा रिशता करें और उचित समय आने पर परिवारिक संपति उनको सुपर्द कर दें ।
दक्षिण की सुरक्षा – विधार्थी तथा अध्यापक
बुद्ध ने सिगाल से कहा कि शिष्य को अपने गुरु का सम्मान करना चाहिये । उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिये व उनकी आवशयकताओं को पूरा करना चाहिये । शिक्षक को भी अपने शिष्य को सही और समुचित शिक्षा देनी चाहिये , उसे उचित रुप से पढाना चाहिये , अच्छी संगत के लिये उसे प्रेरित करना चाहिये और शिक्षा समाप्त होने पर रोजगार प्राप्त करने के लिये सहायक होना चाहिये ।
पशिचम की सुरुक्षा – पति तथा पत्नी
पति को अपनी पत्नी के साथ कैसा व्यवाहार करना चाहिये :
पति तथा पत्नी के प्यार को बुद्ध ने पवित्र प्यार की संज्ञा दी । उसे सादर ब्राह्मचर्य ( पवित्र गृहस्थ जीवन ) कहा । उन्होने कहा कि पति और पत्नी एक दूसरे के विशवास्पात्र रहें , एक दूसरे का सम्मान करें , एक दूसरे के प्रति समर्पित रहें , एक दूसरे के प्रति उतरदायित्वों का पालन करें । उन्होनें कहा कि पति पत्नी एक दूसरे के पूरक होते हैं । पति का कर्तव्य है वह अपने पत्नी की मान सम्मान की रक्षा करे , कभी न अपमान होने दे , अनैतिक मिथ्याचार से दूर रहे , अपनी आय के हिसाब से पत्नी को संतुष्ट रखे और समय –२पर पत्नी को उपहार देता रहे ।
पत्नी का पति के प्रति कर्तव्य :
पत्नी का भी यह कर्तव्य है कि घर के कामकाज को ठीक से संचालित करे , घर के कामकाज मे आलस्य करे , परिवार के समस्त च्यक्तियों का आदर करे , अनैतिक मिथ्याचार से दूर रहे , पति की आय की सुरुक्षा करे और सतर्क और दक्ष रहे ।
उत्तर की सुरुक्षा – मित्र और सहयोगी साथी :
भगवान बुद्ध ने कहा कि मित्रों , पडोसियों और रिशतेदारॊ का उचित सादर सत्कार करना चाहिये , उनसे प्रिय वाणी मे बात करनी चाहिये , उनके भलाई की कामना करनी चाहिये औए संकट के समय उनका साथ न छोडना चाहिये ।
पाताल दिशा की सुरुक्षा – स्वामी तथा कर्मचारी :
स्वामियों को कैसे कर्माचारी से व्यवहार करना चाहिये :
मालिक का अपने कर्मचारियों के प्रति भी उतरदायित्व हैं । उनकी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे उनकी योग्यता और क्षमता के अनुसार ही काम दें , काम के बदले उचित वेतन और परिश्रामिक दें । उनकी चिकित्सा का ख्याल रखें और समय –२ पर उनको पुरस्कृत करते रहें ।
कर्मचारियों का अपने स्वामियों के प्रति व्यवहार :
कर्मचारियों की भी अपने मालिकों के प्रति भी जिम्मेदारी है कि वे ईमानदार रहें , आलस्य को त्यागकर मेहनत लगन से काम करें , आज्ञाकारी रहें और अपने मालिकों को कभी धोखा न दें ।
आकाशा दिशा की सुरुक्षा – आधयात्मिक गुरु तथा उपासक :
उपासक और भिक्खु के सम्बन्धों के बारे में बुद्ध ने कहा कि उपासक को अपने धर्मगुरु की आवशयकताओं को प्यार और सम्मान से पूरा करना चाहिये । इसी तरह धर्मगुरु को करुण ह्रदय से उपासक उपासिकाओं को धम्म सिखाना चाहिये जिससे कि वह धम्ममार्ग पर चलकर नैतिक और आधयात्मिक जीवन जी सकें ।
इतना ही नही उन्होनें सिगाल से कहा कि लालच , क्रोध, वासना , भय तथा ईर्ष्या के वशीभूत होकर कोई काम नही करना चाहिये । जो एक सद्गुणी व्यक्ति को चार कर्मक्लेशों से विरत रखते हैं । यह चार कर्मक्लेश हैं :
पाणातिपाता – प्राणिमात्र को कष्ट देने अथवा हत्या करने से विरत रहना
अदिन्नदाना – जो दिया नही गया उसे लेने से विरत रहना ।
कामेसुमिच्छाचारा – लैंगिक दुराचार से विरत रहना ।
मूसावादा – झूठ बोलने से विरत रहना ।
इतना ही नही उन्होने सिगाल को समझाया कि एक सद्गुणी व्यक्ति को सम्पति का संवर्धन और प्रबन्धन कैसे करना चाहिये । बुद्ध् ने सिगाल से कहा कि हमेशा धन के चार भाग करना चाहिये । एक भाग व्यय करना चाहिये तथा मेहनत के फ़लों का उपभोग करना चाहिये , दूसरा अंश जरुरतमंद लोगों और अल्पभागियों के लिये खर्च करना चाहिये , तीसरा भाग अपना व्यपार चलाने और बढाने के लिये और चौथा भाग बचाना चाहिये दुर्दिनों के लिये ।
सम्पति विनाश के छ: कारणॊं से विरत रहनाउन्होने सिगाल को कहा कि लालच ,गुस्सा , वासना , भय और ईर्ष्या के वशीभूत होकर कोई काम नही करना चाहिये । सिगाल को समझाते हुये बुद्ध कहने लगे कि नशा मत करो, सडकों पर देर रात तक न घूमों , जुआखाने मे मत जाओ , वेशयावृति और नाच तमाशे से दूर रहो , चरित्र्हीन लोगों की संगत मत करो और आलसी मत बनो क्योकि यह आदतें विनाश की ओर ले जाती हैं ।
१. शराब तथा नशीले पदार्थों का व्यवसन जो स्व संयम का नाश करता है ।
२. आवारागर्दी तथा देर रात तक बाहर रहना
३. अक्सर की मौज मस्ती और मंनोरंजन की लत
४. जुए की लत
५. बुरों की मित्रता
६. प्रमाद तथा निठल्लापन
झूठे मित्र और सच्चे मित्र का चुनाव :सिगाल को अच्छे मित्र का चुनाव करने की राय देते हुये बुद्ध ने कहा कि अच्छा दोस्त वही है जो अमीरी –गरीबी , सुख दुख , सफ़लता असफ़लता सभी परिस्थितयों में एक सा च्यवहार करे , जिसकी भावना आपके प्रति डगमगाती न रहे , आपकी बात सुने , मुसीबत के दिनों मे साथ दे , अपने सुख-दुख मे शामिल करे और अपना आपके सुख-दुख को अपना समझे ।
झूठे मित्र:
१. मित्र जो लेने वाले है ।
२. मित्र जो चापलूसी करते हैं ।
३. मित्र जो बातों से लुभाते हैं ।
४. मित्र जो बर्बादी लाते हैं ।
बुद्धिमान जानेगें कि यह चारों मित्रे नही है , शत्रु हैं तथा इन से बचना चाहिये जैसे कोई खतरनाक रास्ते से बचता है ।
सच्चे मित्र :
१. जो सहायता करते हैं ।
२. मित्र जो अच्छे बुरे समय मे रहते हैं ।
३. मित्र जो अच्छी सलाह देते हैं ।
४. मित्र जो करुणावान है ।
बुद्धिमान जानेगें कि यह चारों सच्चे मित्र हैं तथा उनको खजाने की तरह संजोते हैं , जैसे माँ अपने बच्चे को ।
सदगुणी लोगों से संबध बढाओ और घटिया लोगों की संगत और घटिया मार्ग त्याग दो , आत्म साधना और सच्चरित्रता बढाने वाले वातावरण मे रहो , सदधर्म एवं शील अपनाने और अपना कर्य गहनता से कर सकने के अवसरों को बढाते रहो , अपने माता पिता , पति या पत्नी और बच्चॊ की अच्छी तरह से देखभाल करॊ , उनके लिये समय निकालो । अपने समय , साधनों और प्रसन्नता में औरों को भी भागीदार बनाओ । सद्गुण अपनाने के लिये अवसर जुटाओं और मधपान और जुऎ से दूर बचो । विनम्रता , कृतज्ञता और सादा जीवनयापन की कला को सीखो । चार आर्य सत्यों के आधार पर जीवनयापन करॊ । ध्यान साधना सीखो जिससे दु:खों और चिंताओं का नाश हो सके ।
संदर्भित ग्रंथ , पुस्तकें और वेब लिंक :
१. आनन्द श्री कृष्ण : गौतम बुद्ध और उनके उपदेश , प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
२. मंगलमय जीवन – शांति , प्रसन्नता एवं समृद्धि की कुंजी – सम्पादक राजेश चन्द्रा
३. An approach to Buddhist Social philosophy – Ven P Gnanarama
४. Sigalovada sutta – Ven P. Pemeratana
५. The Sigalovada in Pictures - BuddhaNet
बहुत ही बुद्ध की देशनाओं से जानकारी भरा पोस्ट ... धन्यवाद सर
ReplyDeleteसब्ब दानम धम्म दानम जिन्नती ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा