जीवन एक रुप से कभी समान नही चलता और न ही वह हमारी मर्जी के हिसाब से भी चलता है । कल का हमे पता नही , वर्तमान मे हम जीते नही औए भूत को पकडे बैठे रहते हैं । लेकिन कल कुछ भी घट सकता है । ऐसी अप्रिय घट्नायें भी जो पल भर में जीवन को उदासी में बदल सकती है । यह सभी के साथ हो सकता है । फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि एक व्यक्ति उस हालात मे भी खुश रहता है और दूसरा दुखी । क्या करें इन क्षण का , कैसे इन आपदाओं का जबाब दें ?
एक बौद्ध भिक्षु के रुप में अजह्न ब्रह्म की शिक्षाओं का तरीका अन्यों से बिल्कुल अलग है । गंभीर से गंभीर विषयों को वह सरालता और सहजता के साथ समझाते हैं । अपने भाषणॊं में वह मुख्य विषय पर केन्द्रित रहते हुये वह हास्य व्यंग्य को भी सम्मिलित करते हैं ।
‘ जीवन की त्रासदियाँ क्या उर्वरक का कार्य कर सकती हैं ’ ? ’ "Who Ordered This Truckload of Dung ?’ का हिन्दी अनुवाद है । अजन्ह ब्रहम् की कहानियों का मेरा यह दूसरा अनुवाद है , इसके पहले ‘ दो खराब ईटॊं की दीवार – अजन्ह ब्रहम्ह के जीवन से एक वृतांत – Two Bad Bricks , a story by Ajahn Brahmn ’ कुछ दिन पहले इसी ब्लाग पर प्रकाशित कर चुका हूँ ।
चलिये कलपना करें कि आप की दोपहर आपके दोस्त के साथ समुद्र तट पर बहुत ही अद्भुत बीती । जब आप घर लौट कर आये तो आपने देखा कि आपके घर के गेट के सामने किसी ने एक ट्र्क भर कर गोबर डाल दिया है । स्वभाविक है आप का पारा बहुत ही गर्म हो गया । अब आपके सामने तीन बातें रह गयी :
१. यह तो तय है कि गोबर फ़ेंकने की जिम्मेदारॊ से आप परे थे और न ही आप की कोई गलती थी ।
२. यह भी तय है कि आपने किसी को गोबर फ़ेंकते नही देखा तो जाहिर है कि आप किसी पर इलजाम भी नही लगा सकते ।
३. हाँ , यह अवशय है कि उसकी दुर्गधं असहनीय थी और पूरे घर को उसने प्रदूषित कर दिया था ।
जीवन के संदर्भ मे इस घट्ना को देखें । गोबर के रुप में जीवन में आने वाली त्रासदियाँ अनुभव के लिये खडी हैं । इन त्रासदियों के बारे मॆ पता करने के लिये तीन चीजे हैं :
१. हमने इन त्र्सादियों को बुलाने का न्योता नही दिया । फ़िर हम ही क्यूं इस त्र्सादी मे आ फ़ँसे ?
२. हम लाख चाहें लेकिन हमारे अच्छे दोस्त या हमारे परिवार के लोग भी इसको दूर नही कर सकते , हालाकि वह कोशिश अवशय कर सकते हैं ।
३. यह त्रासदी हमारी जीवन की सारी खुशियों को ले गई । इसका दर्द इतना तीर्व है कि इसको सहन करना लगभग असंभव है ।
घर के सामने पडॆ गोबर को उठाने के दो रास्ते हैं . पहला इस गोबर को अपनी शर्ट , पैन्ट , अपनी जेबों और बैग मे अच्छी तरह से भर लें । लेकिन हम यह पाते है कि कि इस गोबर को जेबों मे भरते समय इसकी दुर्गंध से हम अपने अच्छॆ से अच्छे दोस्तॊ को खो बौठते हैं । ‘ गोबर का भार उठाना ’ अवसाद , नकारात्मता या क्रोध में डूबने का एक रुपक मात्र है । यह विपरीत परिस्थितियों के लिए एक प्राकृतिक और समझने वाली प्रतिक्रिया है. लेकिन यह भी प्राकृतिक है कि हमारे दोस्त इन परिस्थितियों मे लगभग छूट जाते है क्योंकि कोई भी इन अवसाद्ग्रस्त क्षण का साथ नही होना चाहता । लेकिन इन सब को करने के बावजूद गोबर का ढेर कम के बजाय बढता ही जाता है और उसकी दुर्गंध पुरे घर को दूषित करती रहती है ।
सौभाग्य से एक दूसरा रास्ता भी है । इस गोबर को हटाने के लिये हम कुदाल , ठेला और कांटा लाते है औए लम्बी सांस भरते हुये इसको हटाने के लिये जुट जाते हैं । कांटा और कुदाल से ठेले में भरते हैं और फ़िर घर के पीछे छोटी सी बगिया मे एक गढ्ढा खोद कर उसमे डालते जाते है । हांलाकि यह एक उबाऊ और थकाने वाला काम है लेकिन हमारे पास इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नही है ।
हम इस समस्या के हल की तलाश मे हैं न कि अवसाद मे डूबने के । दिन बीतते गये यहाँ तक की कि साल भी बीत गये और गोबर का ढेर छोटा होता गया और फ़िर एक दिन वह सुबह आयी जब गोबर पूरी तरह से हट चुका था । इसके अलावा एक चमत्कार घर के दूसरे हिस्से मे भी हुआ , वह जगह जहाँ हमने गोबर जो गढ्ढॆ मे डाला था , उस से बनी खाद ने उर्वरक का काम किया , बगीचे मे इस बार फ़ूल और फ़ल अधिक मात्रा मे आये , फ़ूलों की महक से पूरे घर का वातावरण तो शुद्ध हुआ ही , इसके साथ इसकी खूशूबू ने आस पास भी अपना प्रभाव छोड दिया । फ़लों की मिठास का तो कहना ही क्या , इस बार सब कुछ इतनी अधिक मात्रा मे था कि उसे आस पास और पडोसियों मे भी बाँटना पडा।
"गोबर में खुदाई" जीवन के लिए उर्वरक के रूप में त्रासदियों के स्वागत के लिए एक रूपक है. यह हमें अकेले ही करना है और यहाँ हमारी मदद करने वाला भी कोई नही है । लेकिन अगर हम दिल के बाग मे यह खुदाई जारी रखेगें तो हम पायेगे कि एक दिन जीवन मे दु:ख प्रतिक्षण कम होते जायेगें और उनकी जगह लेगी प्रेम की मिठास , उसकी खुशूबू और मेत्ता भावना ।
जिस दिन हम इस दुख दर्द को जानेगें , अपने दिल मे उस प्रेम रुपी बगीचे को विकिसित करेगें , उस दिन आने वाली त्रासदियों के गले मे बाँह डालकर कह सकते हैं , “ हाँ , अब मै अब तुझे समझ सकता हूँ ”
शायद इस कहानी का नैतिक अर्थ है कि अगर आप करुणा के मार्ग का अनुसरण करना चाहते हैं और दुनिया की सेवा के लिए तैयार हैं तो अगली बार अगर कोई त्रासदी गलती से भी आपके जीवन में घटित हो , तो आप बेझिझक अपने आप से कह सकते हैं कि मेरे बगीचे के लिये और अधिक उर्वरक का प्रबंध हुआ है , और ऐसा उर्वरक जो मेरे दर्द को प्रतिक्षण कम करता रहता है !!
अजन्ह ब्रह्म की कहानी "Who Ordered This Truckload of Dung ? : Inspiring Wisdom for Welcoming Life's Difficulties" का हिन्दी अनुवाद ।
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