अंग्रेज़ों ने 19वीं सदी में अफ़ग़ानिस्तान की सीमा के पास गंधार संस्कृति के एक पुराने बौद्ध विहार को ढूँढ निकाला था. तख़्त-ए-बाही नाम के इस विहार का बचा-खुचा भाग पेशावर के पास स्थित है.
नई तकनीक से पुराने अवशेषों का उद्धार
गंधार पाकिस्तान के उत्तर पूर्वी इलाके में पड़ता है. गंधार सभ्यता का जन्म सिकंदर के आक्रमण के साथ, यानी 326 ईसापूर्व में हुआ था. ईसा पश्चात की पहली से छठीं सदी के बीच वह अपने उत्कर्ष पर थी. इसी वजह से गंधार में प्राचीन ग्रीक और बौद्ध संस्कृति का मेल दिखाई देता है. बर्लिन में हो रही गंधार कला प्रदर्शनी भी यही रेखांकित करती है. प्रदर्शनी के संचालक क्रिस्टियान लूत्सानिट्स के मुताबिक "इस प्रदर्शनी का उद्देश्य पूरब के गंधार में सिकंदर के प्रभाव से लेकर बामियान तक की मूर्तियों के बीच संबंध दिखाना था. प्रदर्शनी में ग्रीक शैली के सिक्के और मूर्तियां हैं. एक अद्भुत तीरंदाज़ भी है. साथ ही बहुत सारे पुराने स्तम्भ हैं, जिनका इस्तेमाल कब्रों को सजाने में किया जाता था. प्रदर्शनी में वैज्ञानिकों ने थ्री डी, यानी त्रिआयामी तकनीक के उपयोग से बामियान के बुद्ध की उस विरट मूर्तियों को बनाने की भी कोशिश की है, जिसे 2001 में तालिबान ने तोपें दाग कर नष्ट कर दिया था.
लेज़र प्रकाश वाली त्रिआयामी स्कैंनिंग तकनीक के ज़रिए आखन के वैज्ञानिक ने कई मूर्तियों की नकल बनायी है. एक ख़ास तरह के चश्मे से आप उन्हें उनके असली रूप में देख सकते हैं. लूत्सानिट्स बताते हैं कि "अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस कोशिश में है कि बामियान के बुद्ध का किसी तरह पुनर्निर्माण हो. हमने इसका इलेक्ट्रोनिक रूपांतर बनाया है. (लेकिन सोचने वाली बात यह है, कि सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के लिए शांति की ज़रूरत होती है. जहां लड़ाई होती है, वहां की संस्कृति को भी खतरा होता है.)"
स्वात घाटी में लड़ाई से सांस्कृतिक धरोहर का भी विनाश हो रहा है
तख्त-ए- बाही वाले पुराने विहार का निरीक्षण वैज्ञानिक एक लेज़र स्कौनर से करेंगे. इससे विहार की बनावट के बारे में उन्हें और जानकारी मिलेगी. पुरतत्वशास्त्री प्रो. मिशाएल यान्सन का कहना है कि "हम इस विहार को नए तरीके से नापेंगे. पारंपरिक तौर पर हम हाथ से नापते हैं. लेकिन हम चाहते हैं कि हमारी सूक्ष्मता सेंटिमीटर से भी ज़्यादा हो."
प्रश्न उठता है कि विश्व संसकृतिक धरोहर के ख़िताब वाली इस निधि की इससे पहले इतनी बारीक़ी से जांच-परख क्यों नहीं हुइ. प्रो. यान्सन के शब्दों में "विश्व धरोहर के साथ यही समस्या है. पैरिस में हमारा प्रलेखन केन्द्र है और वहां जाकर ही पता लगता है कि तकनीकी प्रगति की तुलना में इन पुरानी चीज़ों को कितनी कठिनाई से नापा जा सकता है. अगले कुछ दिनों में आख़न के कुछ वैज्ञानिक तख़्त-ए-बाही पहुंचेंगे और बौद्ध विहार की इमारत को स्कैन करेंगे".
तीन पैरों पर खड़ा होने वाला स्कैनर बहुत कुछ कैमरे जैसा दिखता है. कार्स्टेन ले स्केनर के बारे में बताते हैं कि "स्कैनर अपने आप काम करता है. वह इन पैरों पर घूमता है और पूरी इमारत में लेज़र किरणें भेजता है. इन किरणों के प्रतिबिम्ब से फिर ईमारत के ढांचे का पता लगता है. एक सेकंड में क़रीब 8000 ऐसे मापन बिंदुओं का पता चलता है."
अभी तो यह तकनीक बहुत नई है, लेकिन अगर यह वैज्ञानिक सफल हुए तो इस तरह की तकनीक से और पुरानी धरोहरें हमें एक तरह से वापस मिल सकती हैं.
अप्रैल महीने महीने के अंत में जर्मनी के आख़न विश्वविद्यालय के कुछ वैज्ञानिक गंधार संस्कृति के अवशेषों का उद्धार करने के लिए उनका निरीक्षण करेंगे.
रिपोर्ट- इंगो वागनर / मानसी गोपालकृष्णन
साभार : http://dw.de/p/HZKe
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