Sunday, August 5, 2018

।।दर्पण।। - श्री राजेश चन्द्रा-

।।दर्पण।।
-राजेश चन्द्रा-
बौद्ध विनय के मुताबिक सौन्दर्य प्रसाधन के सामान साथ में रखना भिक्खुओं के लिए निषिद्ध है लेकिन एक युवा भिक्खु अपने झोले में हमेशा एक दर्पण रखता था। उसके साथी गुरुभाई ने गुरूजी से शिकायत कर दी कि अमुक भिक्खु अपने झोले में दर्पण रखता है। गुरूजी ने युवक को बुलाया, पूछा- सुना है तुम अपने पास दर्पण रखते हो?
युवक ने पूरे आत्मविश्वास से झट से दर्पण झोले से निकाल कर दिखाते हुए कहा- जी गुरूजी, रखता हूँ।
गुरूजी ने कहा- क्या तुम्हें नहीं मालूम कि सौन्दर्य प्रसाधन के सामान भिक्खुओं के लिए निषिद्ध हैं?
भिक्खु ने कहा- जी, मालूम है।
गुरूजी ने पूछा- फिर क्यों रखते हो?
युवक ने बड़ी मासूमियत से कहा- गुरूजी, इसका प्रयोग मैं मुसीबत के समय करता हूँ।
गुरूजी ने हैरानी से पूछा- मुसीबत के समय? वह कैसे?
युवक ने उत्तर दिया- जब मैं किसी मुसीबत, परेशानी में होता हूँ, तब इस इस दर्पण में देखता हूँ। इसमें मुझे अपनी मुसीबत-परेशानी का कारण दिखायी दे जाता है।
गुरूजी आशीष की मुद्रा में मुस्करा रहे थे कि युवक ने अपनी बात पूरी की- और गुरूजी, अपनी मुसीबत-परेशानी के निवारण का उपाय भी दिख जाता है...

श्री राजेश चन्द्रा - एक परिचय

शैक्षिक और व्यवसायिक पृष्ठ्भूमि से मूलत: कम्प्यूटर इंजीनियर , मास कम्युनिकेशन और जर्नलिज्म मे डिप्लोमा धारक और उतर प्रदेश मे प्रथम श्रेणी अधिकारी पद पर कार्यरत राजेश चन्द्रा हिन्दी साहित्य के युवा हस्ताक्षर हैं । उनकी अब तक प्रकाशित कृतियां है , ’ पूजा का दिया ’ , साक्षी चेतना - अमृता प्रीतम , बुद्ध का चक्र्वर्ती साम्राज्य ’आदि ।
आप एक सक्रिय समाज सेवी , धम्म प्रचारक व ध्यान प्रशिक्षक भी हैं ।

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