।।दर्पण।।
-राजेश चन्द्रा-
युवक ने पूरे आत्मविश्वास से झट से दर्पण झोले से निकाल कर दिखाते हुए कहा- जी गुरूजी, रखता हूँ।
गुरूजी ने कहा- क्या तुम्हें नहीं मालूम कि सौन्दर्य प्रसाधन के सामान भिक्खुओं के लिए निषिद्ध हैं?
भिक्खु ने कहा- जी, मालूम है।
गुरूजी ने पूछा- फिर क्यों रखते हो?
युवक ने बड़ी मासूमियत से कहा- गुरूजी, इसका प्रयोग मैं मुसीबत के समय करता हूँ।
गुरूजी ने हैरानी से पूछा- मुसीबत के समय? वह कैसे?
युवक ने उत्तर दिया- जब मैं किसी मुसीबत, परेशानी में होता हूँ, तब इस इस दर्पण में देखता हूँ। इसमें मुझे अपनी मुसीबत-परेशानी का कारण दिखायी दे जाता है।
गुरूजी आशीष की मुद्रा में मुस्करा रहे थे कि युवक ने अपनी बात पूरी की- और गुरूजी, अपनी मुसीबत-परेशानी के निवारण का उपाय भी दिख जाता है...
श्री राजेश चन्द्रा - एक परिचय
आप एक सक्रिय समाज सेवी , धम्म प्रचारक व ध्यान प्रशिक्षक भी हैं ।
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