Tuesday, February 27, 2024

How to get lasting happiness? (स्थायी सुख को कैसे प्राप्त करें?)



How to get lasting happiness?
Knowledge of "Dhamma" eradicates suffering and gives happiness. It is not the Buddha but the "Dhamma, -the knowledge of anicca (impermanence) within the body", which gives this happiness. That is why one must meditate and achieve the state of continuous awareness of anicca, moment to moment. –Sayagyi U Ba Khin

Translation in Hindi:
धम्म ही दुखों को दूर करता है और सुख देता है। तथागत बुद्ध किसी को भी दुख: से मुक्त नहीं करा सकते बल्कि धम्म - जो शरीर के अंदर-बाहर हर पल घटती अनिच्चता (नश्वरता) का ज्ञान यह खुशी देता है। इसीलिए सभी को ध्यान करना चाहिए और क्षण-प्रति-क्षण घटती अनिच्चता (नश्वरता) के प्रति लगातार जागरूकता की स्थिति को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। –सयाजी ऊ बा खिन
साभार : Dr Nirmal Gupta 

Saturday, February 24, 2024

माघ पूर्णिमा की अनंत मंगलकामनाएं

Photo credit: Bhikku Sakya Muni

Photo credit: Prof Nirmal Kumar 

🪷🙏🏻माघ पूर्णिमा का महत्व 🪷🙏🏻
(  माघ पूर्णिमा का महत्व )

1.. आज से २६१२ साल पहले माघ पूर्णिमा के दिन गौतम बुद्ध शासन में प्रथम संघ अधिवेशन [महा संघ सन्निपात ] १२५० अर्हन्तो के साथ राजगिर वेळुवनाराम में हुआ।
 भंते सारिपुत्त एवं भंते मोग्गल्लान सहित २५० भिक्षु संघ, भंते उरुवेल काश्यप, भंते नदी कश्यप, भंते गया कश्यप और १००० भिक्षु लोग इस अधिवेशन में एकत्रित हुए थे।

2.. आज से २६१२ साल पहले माघ पूर्णिमा के दिन ही हमारे शास्ता भगवान बुद्ध जी ने सारिपुत्त मुनि जी और मोग्गल्लान मुनि जी को इस गौतम बुद्ध शासन में अग्रश्रावक का पद प्रधान किए थे। ये भी राजगीर वेळुवनाराम आश्रम में ही हुआ।

ऐते देव सहायका आगच्छन्ति, कोलितो उपतिस्सो च, 
एतं मे सावक युगं, भविस्सति भद्द अग्गयुगंति ।

"भिक्षुओ ! यह दो मित्र कोलित (मोग्गल्लान) और उपतिष्य (सारिपुत्र) आ रहे हैं। 

यह मेरे प्रधान शिष्य युगल होंगे, भद्र-युगल होंगे।"....

[महाखंदक, विनय पिटक]

उन अग्रश्रावक अर्हन्त सारिपुत्त मुनि एवं मोग्गल्लान मुनि जी को कोटि कोटि नमन !

3.. आज से २६१२ साल पहले माघ पूर्णिमा के दिन सभी सम्बुद्ध लोगों का उपदेश जो "ओवाद प्रातिमोक्ष " नाम का उपदेश हमारे शास्ता गौतम बुद्ध जी ने पहली बार वेळुवन आश्रम में एकत्रित भिक्षु लोगों को दिया था। इस में तथागत बुद्ध जी ने ये गाथाएँ बताई ।

सब्बपापस्स अकरणं - कुसलस्स उपसम्पदा सचित्तपरियोदपनं - एतं बुद्धान सासनं ।

... सभी पाप कर्मों को न करना, पुण्यकर्मों की संपदा संचित करना, अपने चित्त को परिशुद्ध करना यही बुद्धों की शिक्षा है ।..

खन्ती परमं तपो तितिक्खा निब्बानं परमं वदन्ति बुद्धा न हि पब्बजितो परूपघाती न समणो होति परं विहेठ्यन्तो।

... सहनशीलता और क्षमाशीलता परम तप है। बुद्ध जन निर्वाण को उत्तम बतलाते हैं। दूसरे का घात करने वाला प्रव्रजित नहीं होता और दूसरे को सताने वाला श्रमण नहीं हो सकता ।

अनूपवादो अनूपघातो - पातिमोक्खे च संवरो

मत्तनुता च भत्तस्मिं - पन्तञ्च सयनासने

अधिचित्ते च आयोगो - एतं बुद्धान सासनं ।

... निंदा न करना, घात न करना, भिक्षु नियमों द्वारा अपने को सुरक्षित रखना, आहार की मात्रा की जानकारी होना, एकांत में सोना बैठना और चित्त को एकाग्र करने के लिये प्रयत्न में जुटना, यह सभी बुद्धों की शिक्षा हैं।...

4.. आज से २५६७ साल पहले माघ पूर्णिमा के दिन यानि महा परिनिर्वाण के ६ महीने के पहले माघ पूर्णिमा के दिन वैशाली में चापाल चैत्य स्थान में पापी मार के अयाचना से भगवान् ने अपने "आयु संस्कार" छोड़ दिए। इसके बाद तथागत ने तिन महिने बाद महापरीनिर्वाण को प्राप्त करने कि घोषणा कि।

"ऐसा कहनेपर भगवान ने पापी मार से यह कहा - "पापी ! बेफिक्र हो, न-चिर ही तथागत का परिनिर्वाण होगा। आज से तीन मास बाद तथागत परिनिर्वाण को प्राप्त होंगे।" तब भगवान्ने चापाल चैत्य में स्मृति-संप्रजन्यके साथ आयुसंस्कार (प्राण-शक्ति) को छोड दिया। जिस समय भगवान ने आयु-संस्कार छोडा उस समय 'भीषण रोमांचकारी महा भूचाल हुआ, देवदुन्दुभियाँ बजी। इस बात को जानकर भगवान ने उसी समय यह उदान कहा- "मुनि ने अतुल-तुल उत्पन्न भव-संस्कार (जीवन शक्ति) को छोड दिया। अपने भीतर रत और एकाग्र चित्त हो उन्होंने अपने साथ उत्पन्न कवच को तोड दिया। " [महा परिनिव्वान सुत्त]

ऐसे महत्वपूर्ण माघ पूर्णिमा के दिन आप सभी लोग उपोसथ धारण करके अप्रमाण पुण्य अर्जित करिए ! 
सबका मंगल हो

Thursday, February 22, 2024

दर्पण से सीखो

 "दर्पण से सीखो" बुद्ध और राहुल की कहानी एक ऐसी कहानी है, जिसमें बताया गया है कि कैसे बुद्ध ने अपने पुत्र राहुल को सत्य और शुद्धता का महत्व समझाया। इस कहानी में बुद्ध ने राहुल को एक दर्पण दिया और कहा कि वह उसमें अपना चेहरा देखे और अपने मन की अवस्था को जाने। बुद्ध ने राहुल को यह बताया कि जैसे दर्पण में दिखने वाला चेहरा अस्थिर और बदलने वाला होता है, वैसे ही हमारा मन भी अनित्य और परिवर्तनशील होता है। इसलिए हमें अपने मन को शांत और स्वच्छ रखना चाहिए, और झूठ बोलने से बचना चाहिए।