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🪷🙏🏻माघ पूर्णिमा का महत्व 🪷🙏🏻
( माघ पूर्णिमा का महत्व )
1.. आज से २६१२ साल पहले माघ पूर्णिमा के दिन गौतम बुद्ध शासन में प्रथम संघ अधिवेशन [महा संघ सन्निपात ] १२५० अर्हन्तो के साथ राजगिर वेळुवनाराम में हुआ।
भंते सारिपुत्त एवं भंते मोग्गल्लान सहित २५० भिक्षु संघ, भंते उरुवेल काश्यप, भंते नदी कश्यप, भंते गया कश्यप और १००० भिक्षु लोग इस अधिवेशन में एकत्रित हुए थे।
2.. आज से २६१२ साल पहले माघ पूर्णिमा के दिन ही हमारे शास्ता भगवान बुद्ध जी ने सारिपुत्त मुनि जी और मोग्गल्लान मुनि जी को इस गौतम बुद्ध शासन में अग्रश्रावक का पद प्रधान किए थे। ये भी राजगीर वेळुवनाराम आश्रम में ही हुआ।
ऐते देव सहायका आगच्छन्ति, कोलितो उपतिस्सो च,
एतं मे सावक युगं, भविस्सति भद्द अग्गयुगंति ।
"भिक्षुओ ! यह दो मित्र कोलित (मोग्गल्लान) और उपतिष्य (सारिपुत्र) आ रहे हैं।
यह मेरे प्रधान शिष्य युगल होंगे, भद्र-युगल होंगे।"....
[महाखंदक, विनय पिटक]
उन अग्रश्रावक अर्हन्त सारिपुत्त मुनि एवं मोग्गल्लान मुनि जी को कोटि कोटि नमन !
3.. आज से २६१२ साल पहले माघ पूर्णिमा के दिन सभी सम्बुद्ध लोगों का उपदेश जो "ओवाद प्रातिमोक्ष " नाम का उपदेश हमारे शास्ता गौतम बुद्ध जी ने पहली बार वेळुवन आश्रम में एकत्रित भिक्षु लोगों को दिया था। इस में तथागत बुद्ध जी ने ये गाथाएँ बताई ।
सब्बपापस्स अकरणं - कुसलस्स उपसम्पदा सचित्तपरियोदपनं - एतं बुद्धान सासनं ।
... सभी पाप कर्मों को न करना, पुण्यकर्मों की संपदा संचित करना, अपने चित्त को परिशुद्ध करना यही बुद्धों की शिक्षा है ।..
खन्ती परमं तपो तितिक्खा निब्बानं परमं वदन्ति बुद्धा न हि पब्बजितो परूपघाती न समणो होति परं विहेठ्यन्तो।
... सहनशीलता और क्षमाशीलता परम तप है। बुद्ध जन निर्वाण को उत्तम बतलाते हैं। दूसरे का घात करने वाला प्रव्रजित नहीं होता और दूसरे को सताने वाला श्रमण नहीं हो सकता ।
अनूपवादो अनूपघातो - पातिमोक्खे च संवरो
मत्तनुता च भत्तस्मिं - पन्तञ्च सयनासने
अधिचित्ते च आयोगो - एतं बुद्धान सासनं ।
... निंदा न करना, घात न करना, भिक्षु नियमों द्वारा अपने को सुरक्षित रखना, आहार की मात्रा की जानकारी होना, एकांत में सोना बैठना और चित्त को एकाग्र करने के लिये प्रयत्न में जुटना, यह सभी बुद्धों की शिक्षा हैं।...
4.. आज से २५६७ साल पहले माघ पूर्णिमा के दिन यानि महा परिनिर्वाण के ६ महीने के पहले माघ पूर्णिमा के दिन वैशाली में चापाल चैत्य स्थान में पापी मार के अयाचना से भगवान् ने अपने "आयु संस्कार" छोड़ दिए। इसके बाद तथागत ने तिन महिने बाद महापरीनिर्वाण को प्राप्त करने कि घोषणा कि।
"ऐसा कहनेपर भगवान ने पापी मार से यह कहा - "पापी ! बेफिक्र हो, न-चिर ही तथागत का परिनिर्वाण होगा। आज से तीन मास बाद तथागत परिनिर्वाण को प्राप्त होंगे।" तब भगवान्ने चापाल चैत्य में स्मृति-संप्रजन्यके साथ आयुसंस्कार (प्राण-शक्ति) को छोड दिया। जिस समय भगवान ने आयु-संस्कार छोडा उस समय 'भीषण रोमांचकारी महा भूचाल हुआ, देवदुन्दुभियाँ बजी। इस बात को जानकर भगवान ने उसी समय यह उदान कहा- "मुनि ने अतुल-तुल उत्पन्न भव-संस्कार (जीवन शक्ति) को छोड दिया। अपने भीतर रत और एकाग्र चित्त हो उन्होंने अपने साथ उत्पन्न कवच को तोड दिया। " [महा परिनिव्वान सुत्त]
ऐसे महत्वपूर्ण माघ पूर्णिमा के दिन आप सभी लोग उपोसथ धारण करके अप्रमाण पुण्य अर्जित करिए !
सबका मंगल हो
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