Wednesday, January 2, 2013

श्रावस्ती संस्मरण - भाग २

पिछ्ले अंक से आगे …….
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जेतवन और प्राचीन श्रावस्ती खण्डरों के मध्य कोई अधिक दूरी नही है । लगभग दो बजे तक जेतवन से हम निकल कर प्राचीन श्रावस्ती के खण्डरों  की तरफ़ चल पडे । यहाँ  सडक किनारे कई मोनेस्ट्री और जैन मन्दिर दिखाई पडे  । इसलिये पहले यही निर्णय  लिया गया लि इन मन्दिरों से ही शुरुआत की जाये ।
प्रतिहार टीला ( ओडाझार )
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मुख्य सडक के ठीक किनारे पर यह स्थान है । कहते हैं कि इस स्थान  भगवान्‌ बुद्ध ने विशाल जन समुदाय के मध्य श्रद्धी चमत्कार लिया था । हाँलाकि बुद्ध चमत्कारों  के बिल्कुल भी पक्ष मे नही थे लेकिन एक वर्ग द्वारा उन्हें चुनोती देने के कारण बुद्ध ने यह निर्णय लिया । यह भी कहा जाता है कि बुद्ध ने यहाँ महामाया को अभिधम्म की देशना देकर अहर्त लाभ करवाया था एवं वर्षावास यहीं पूरा किया था ।
श्रीलंका आरामय बुद्ध मन्दिर 
श्रीलंका की श्रद्धालु जनता के द्वारा निर्मित इस भव्य मन्दिर में भगवान बुद्ध की जीवन चर्या को भित्त चित्रों में बडे ही सजीव व कलात्मक शैली में अंकित किया गया है ।
कम्बोज बुद्ध मन्दिर
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इस मन्दिर में  बौद्ध शिल्प संस्कृति की अनूठी प्रस्तुति देखने को मिलती है । यह सहेठ महेठ तिराहे पर मुख्य सडक के दक्षिण मे स्थित है ।
जैन मन्दिर 
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जैन मत के अनुसार श्रावस्ती तीर्थकर भगवान्‌ सम्भवनाथ की जन्मस्थली है । घण्टा पार्क के पूर्व मध्य सडक के दक्षिण में शवेताम्बर व दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों के जैन मन्दिर बने हैं । शवेताम्बर मन्दिर सफ़ेद संगमरमर पत्थर का बना हुआ है । दोनों मन्दिर दर्शनीय हैं ।
जापानी घण्टा पार्क
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मुख्य सडक पर एक उधान में विशाल घण्टा लगा है ।
कोरिया बुद्ध मन्दिर
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कोरियन शिल्प का यह महायानी बुद्ध मन्दिर मुख्य सडक पर है ।
मायानामर मोनेस्ट्री
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इसके अतिरिक्त इसी सडक के दोनों ओर कई और भी मन्दिर हैं जैसे भारत के नव बौद्धों द्वारा निर्मित भारतीय बुद्ध मन्दिर , समय माता मन्दिर , महामंकोल बुद्ध मन्दिर आदि । ओडिझार पर हमें स्थानीय लोगों ने बताया कि यहाँ एक ‘शिव बाबा ’ का मन्दिर है जो वास्तव मे सम्राट अशोक द्वारा स्थापित पत्थर की शिला है जिसे स्थानीय जनता शिव लिंग मानकर पूजा अर्चना करती है । यहाँ तक पहुँचने के लिये ओडीझार के ठीक सामने की रोड से ‘ काब्धारी गाँव ’  के बगल से होकर इस स्थान तक वाहन या पैदल  पहुँचाजा सकता है । यहाँ पहुँचने पर हमारी मुलाकात भिक्षु श्री विमल तिस्स से हुयी ।  भिक्षु श्री विमल तिस्स धर्म प्रसाद पूर्वाराम महाविहार को काफ़ी समय से देख रहे हैं ।
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भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में प्राचीन श्रावस्ती खण्डर का क्षेत्रफ़ल लभग २५० एकड है । इस विस्तूत खण्डरी जंगल के चारों तरफ़ ऊँचे टीले यह सिद्ध करते हैं कि सम्पूर्ण नगर ऊँचे प्राकारों से घिरा था । इन खणडरों के गर्भ में अभी बहुत कुछ अज्ञात पडा है । बुद्ध वाडगमय त्रिपिटक में सम्पूर्ण श्रावस्ती की तत्कालीन कला संस्कृति व सुख समृद्धि की भव्यता का विराट वर्णन है । भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा की जा रही खुदाई व संरक्षण मे कुछ स्थल प्रमाणित किये गये हैं ।
सम्भवनाथ मन्दिर
sambhav nath temple
सम्भवनाथ मन्दिर : साभार : shunya.net
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प्राचीन श्रावस्ती के खण्डर परिसर में प्रवेश करते ही यह देखा जा सकता है । इस स्थल पर जैनियों के तीसरे तीर्थांकर सम्भवनाथ का जन्म हुआ था। लाखोरी ईटॊं से बना हुआ यह गुम्बद युक्त मन्दिर ध्वंस मध्यकालीन युग का प्रतीत होता है ।
सुदत्त महल ( कच्ची कुटी )
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सुद्त्त यानी अनाथपिण्डक का यह निवास स्थल है । आज यह विध्वंस अतीत के विभिन्न काल खण्डों के मिश्रित वास्तु शिल्प का प्रतीक है । ये प्रतीक कुषाण काल से लेकर बारहवीं सदी तक के हैं । ऊपर पार्शव में  चित्र मे सुदत महल के आस पास विदेशी सैलानियों के अपार समूह को  देख सकते हैं । यह चित्र अगुंलिमाल गुफ़ा की छ्त से लिया गया है । कहते हैं कि काल प्रवाह में कोई संत जी कच्ची मिट्टी की कुटी बनाकर रहते थे इसी हेतु जनश्रुति में इस विध्वंस का नाम कच्ची कुटी पड गया ।
आंगुलिमाल गुफ़ा ( पक्की कुटी )
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आंगुलिमाल गुफ़ा नाम जनधारणा में अनजाने में ही कहा गया है । चीनी यात्री ह्वेनसांग व फ़ाह्यान के यात्रा दृष्टातों में इस विध्वंस का आंगुलिमाल के स्तूप के रुप मे वर्णन है , परन्तु पुरातत्वविद होई के अनुसार यह धर्म मंडप का विध्वंस चिन्ह है । इसकी वास्तु रचना से यह विध्वंस स्तूप ही सिद्ध होता है । चित्र को देखें तो नीचे एक सुरंग नजर आ रही है । होई ने विध्वंस की सुरक्षा के लिये वर्षा के जल की निकासी हेतु यह सुरंग खुदवाई  थी । एक मत के अनुसार यह  स्तूप उस दुखी महिला का है जो प्रसव पीडा से आक्रान्त थी और जिसे भिक्षु आंगुलिमाल ने अपने तपोपुण्य से पीडा मुक्त कर माता एंव शिशु दोनों को जीवन प्रदान किया था । कालांतर मे कोई संत जी पक्की कुटी बना के रहने लगे तभी से इसका नाम पक्की कुटी पड गया ।
राजा प्रसेनजित का महल
पुरातव की खुदाई मे भी यह स्थल चिन्हित नही किया जा सका है , परन्तु  यह सर्वविदित है कि श्रावस्ती बुद्ध काल में कोशल देश की एक मात्र राजधानी थी । चीनी यात्री ह्वेनसांग ने उस महल के विध्वंस को देखा था ।
शाम के ४.३० बज रहे थे । श्रावस्ती में  और भी बहुत कुछ देखने को था लेकिन समय अब नही था । कुछ कडवी यादें भी रही , स्थानीय श्रावस्ती के कुछ युवकों  को  थाई मन्दिर मे उत्पात मचाते देखा , थाई युवतियों और विदेशी सैलानियों को वे बिलावजह निशाना बना रहे थे , यह सब करतूतें अपने देश की गरिमा को कम करती है  । इस तथ्य को भी  याद रखना होगा कि श्रावस्ती भी किसी धर्म विशेष की आराध्य भूमि है , जैसा सम्मान  आप अपने धर्म को देते हैं उतना ही दूसरे धर्मों  को भी देना सीखें । दूसरा श्रावस्ती के अधिकतर खंडहर बहुत ही जीर्ण- शीर्ण  अवस्था मे है , अधिकतर लाखोरी ईटॆं जगह –२ से गायब मिली या रास्ते मे जगह –२ बिखरी मिली । पुरातत्व विभाग को इस विरासत को सँभालने का प्रयास करना होगा ।
शायद अब यह समय है देश मे फ़ैली तमाम बौद्ध विरासत को  बौद्ध मतावलम्बियों के हवाले कर दिया जाये , संभव है इससे  इन विरासतॊ की सम्मानपूर्वक रक्षा की जा सके  ।

1 comment:

  1. आपने इस शब्द चित्र से हमें भी जेतवन की यात्रा करा दिए सर ...
    अनोखी पोस्टिंग के लिए कोटि-कोटी धन्यवाद

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