जिस मठ मे अजह्न ब्रह्म की शिक्षा आरम्भ हुयी वहीं एक भिक्षु के रूप में पहली बार उनको ईंटॊं की दीवार बनाने का कार्य सौंपा गया । जब निर्माण कार्य समाप्त हो गया तब उन्होंने देखा है कि दो ईंटॊं को छोडकर अन्य सभी ईंटें अच्छी तरह से व्यवस्थित रुप से लाइन में थीं " वह दो ईंटॆ एक कोण पर झुकी थी और बेतुकी लग रही थी " अजह्न ने अपने आप से कहा ।
अजह्न मठ की इस दीवार को गिरा कर दोबारा बनाना चाहते थे लेकिन मठ के मठाधीश ने इसके लिये मना कर दिया ।
नव निर्मित मठ मे आने वाले आगुतंको को अजह्न मठ के चारों ओर दिखाते सिवाय उस ईंट की दीवार के जिसका उन्होने निर्माण किया था । लेकिन एक दिन एक आंगुतक की नजर इस दीवार पर पड गयी और उसने टिप्पणी मे दीवार की प्रंशसा कर दी ।
अजह्न आशचर्य मे पड गये और उस आंगुतक से बोले , " महोदय ,लगता है कि आप अपना चशमा गाडी मे भूल आये हैं या शायद आप नेत्रहीन हैं ? क्या आप उन दो ईटॊं को नहीं देख पा रहे हैं जिनकी वजह से पूरी की पूरी दीवार खराब और बेतुकी दिख रही है । आगंतुक के जवाब ने अजह्न ने दीवार के परिपेक्ष खुद स्वयं और अपने जीवन के कई अन्य पहलुओं के बारे मे सोचने की प्रक्रिया को बदल दिया । उसने कहा, " हाँ, मैं उन दो खराब ईंटों को भी देख रहा हूँ और साथ ही में उन ९९८ अच्छी और व्यवस्थित ढंग से लगी ईटॊ को भी देख रहा हूँ जो बहुत सुरुचिपूर्ण लग रही है । ”
अजह्न आगुतंक की बात सुनकर दंग रह गये । पहली बार के लिए उन्होने दो खराब ईटॊं के अलावा अन्य ईटॊं को गौर से देखा । इन दो ईटॊ के ऊपर, नीचे, बायें और दायें ओर अच्छी और व्यवस्थित ढंग से लगी ईंटॆं थी । और सबसे मुख्य बात कि सुरुचिपूर्ण ईटॊं की संख्या खराब ईटॊं से कही अधिक थी । अब अजह्न को यह दीवार बुरी नही दिख रही थी ।
अजह्न ने अपने आप से कहा , “ न जाने कितने लोग बिलावजह रिशतों को समाप्त कर देते हैं या पति पत्नी संबध विच्छेद के मोड पर खडॆ हो जाते हैं क्योंकि वह अपने साथी में उन ‘ दो खराब ईटॊ ’ को देखने की चेष्टा करते हैं ? हम में से कितने अभागे ऐसे भी हैं जो छॊटी-२ बातों पर शोकागुल हो जाते हैं या कुछ ऐसे भी जो जीवन से तंग आ कर मृत्यु को गले लगा लेते हैं । ” सच तो यह है कि हम सब में वह खराब और बुरी ईंटॆं हैं लेकिन यह भी सच है कि उन खराब ईटॊं की संख्या तमाम अच्छाईयो की तुलना में बहुत कम हैं ।
चुनाव आपके हाथों में है कि किस तरह की दीवार का चुनाव आप इस जीवन में करेगें दो खराब दिखने वाली ईटॊं का या उन ९९८ अच्छी तरह से व्यवस्थित ईटॊं का ?
अजह्न्ह ब्रह्म की पुस्तक , “ Who ordered this trucload of Dung ? “ मे से ली गई कहानी “ Two bad bricks” का हिन्दी अनुवाद ।
Wonderful
ReplyDeletebahut sunder...jabki ye kahani meri pahle ki padhi hui hai...lekin jeevan me ise utarna hi kathin hota hai...dhanyawad...
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