Chapter One -- The Pairs-verses 13-14
१. यमकवग्गो- श्लोक १३-१४
Courtesy : Illustrated Dhammapda,Tipitika.org , VRI & Lankalibrary.com
१३.
यथा अगारं दुच्छन्नं, वुट्ठी समतिविज्झति।
एवं अभावितं चित्तं, रागो समतिविज्झति॥
जैसे बिना छ्त्त के घर मे पानी प्रवेश कर जाता है वैसे ही संस्कार विहीन चित्त मे राग प्रवेश कर जाता है ।
Just as the rain breaks through an ill-thatched house, even so passion penetrates an undeveloped mind.
१४.
यथा अगारं सुछन्नं, वुट्ठी न समतिविज्झति।
एवं सुभावितं चित्तं, रागो न समतिविज्झति॥
जैसे अच्छी तरह से ढके हुये घर मे पानी प्रवेश नही कर सकता वैसे ही संस्कारित चित्त मे राग प्रवेश नही कर पाता है ।
Just as rain does not break through a well-thatched house, even so passion never
penetrates a well-developed mind.
Very nice.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर शिक्षा भरी रचना, आप ने बहुत सही कहा, काश हम सब इस पर अमल करते .
ReplyDeleteधन्यवाद
Profound words.
ReplyDeleteAnd thank you for checking out the blog.
Peace
-having without possessing-
ReplyDeletetoday you are my teacher _/|\_
BHamma pada ka ek ek pad manushya jivan ko perna deta h.
ReplyDeletebodh diksh manav ko sahi rah pradan karta h.
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