इहि पस्सिको |
बुद्ध कहते थे ’ इहि पस्सिको’ - आओ और देख लो । मानने की आवशकता नही है । देखो और फ़िर मान लेना । बुद्ध इसके लिये किसी धारणा का आग्रह नही करते । और बुद्ध के देखने की जो प्रक्रिया थी उसका नाम है विपस्सना ।
विपसन्ना बहुत सीधा साधा प्रयोग है । अपनी आती जाती शंवास के प्रति साक्षीभाव । शवास सेतु है , इस पार देह , उस पार चैतन्य और मध्य मे शवास है । शवास को ठीक से देखने का मतलब है कि अनिवार्य रुपेण से हम शरीर को अपने से भिन्न पायेगें । फ़िर शवास अनेक अर्थों मे महत्वपूर्ण है , क्रोध मे एक ढंग से चलती है दौडने मे अलग , आहिस्ता चलने मे अलग , अगर चित्त शांत है तो अलग और अगर तनाव मे है तो अलग । विपस्सना का अर्थ है शांत बैठकर , शवास को बिना बदले देखना । जैसे राह के किनारे बैठकर कोई राह चलते यात्रियों को देखे , कि नदी तट पर बैठ कर नदी की बहती धार को देखे । आई एक तरगं तो देखोगे और नही आई तो भि देखोगे । राह पर निकलती कारें , बसें तो देखोगे नही तो नही देखोगे । जो भी है जैसा भी है उसको वैसे ही देखते रहो । जरा भी उसे बदलने की कोशिश न करें । बस शांत बैठकर शवास को देखो । और देखते ही देखते शवास और भी अधिक शांत हो जाती है क्योंकि देख्ने मे ही शांति है ।
कहते हैं कि एक बार बुद्ध अपने कुछ अनुयायियों के साथ यात्रा कर रहे थे . जब वे एक झील के पास से गुजर रहे थे तब बुद्ध को प्यास की अनूभूति हुई , तब बुद्ध ने अपने एक अनुयायी से कहा , " भिक्षुक मुझे प्यास लगी है और इस झील से पानी लेकर आओ’। ” जैसे ही शिष्य झील के समीप पहुँचा उसी समय एक बैलगाड़ी झील से होती हुई गुजरी । परिणाम स्वरुप झील का पानी बहुत गन्दा और मटमैला हो गया । तब शिष्य ने सोचा, "मैं बुद्ध को यह गंदा पानी पीने के लिये कैसे दे सकता हूँ ?" वह वापस आ गया और बुद्ध से कहा, " शास्ता पानी तो वहाँ बहुत गंदा है और मुझे नहीं लगता कि यह पीने के लिए उपयुक्त है." लगभग आधे घंटे के बाद, बुद्ध ने दोबारा शिष्य से पानी लने के लिये कहा । वह वापस झील के नजदीक गया और उसने पाया कि पानी अभी भी मैला था. वह लौट आया और बुद्धको सूचित किया. कुछ समय बाद फिर से बुद्ध ने शिष्य को वापस जाने के लिए कहा . इस बार शिष्य ने पाया कि पानी अपेक्षाकृत काफ़ी साफ़ है , मिट्टी नीचे बैठ चुकी है । वह एक बर्तन में थोड़ा सा पानी एकत्र कर के बुद्ध के लिये ले गया । बुद्ध ने पानी में देखा, और अनुयायी को देखते हुये कहा , " आयुस तुम जानते हो कि तुमने पानी को साफ़ करने के लिये क्या किया , तुमने पानी को कुछ देर के लिये छॊड दिया और मिट्टी नीचे बैठ गयी । इसी तरह यह मन भी है , अगर वह परेशान है , व्याकुल है तो उसे थोडा समय दो , वह अपने आप शांत हो जायेगा । तुमको उसे शांत करने के लिये कोई विशेष प्रयास नही करना है , मन की शांति एक सरल प्रक्रिया है , इसके लिये विशेष प्रयास नही करना पडता है ।”
( बुद्ध से संबधित इस गाथा के लिये साभार : रोहित पवार )