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Wednesday, July 28, 2010
Monday, July 19, 2010
Sunday, July 18, 2010
विपश्यना साधना – पहला दिन ( Vipassana meditation Discourse No. 1 )
आचार्य श्री सत्य नारायण गोयन्काजी के इन अमूल्य वचनों की तलाश मुझे कई दिनों से थी । दस दिनों तक चलने वाले शिविरों मे अपना समय निकालना एक समस्या लगती है । कल जब इन वीडियो को मेगाअपलोड पर देखा तो इनको सब के साथ बाँट देने का लोभ छॊड न पाया ।
Discourse No 1 : http://www.megaupload.com/pt/?d=MO6WJEP8
Friday, July 9, 2010
हमें प्रेम करें हमे मारे नही !! सब के जीवन अनमोल हैं !!
न जाने क्य़ूं मानव अपने आप को हमेशा सर्वेश्रेष्ठ समझने की भूल मे रहता है । विशव मे अनेक धर्म और सभ्यातायें पशुओं का इसतेमाल अपने लाभ के लिये करते रहे । ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जहाँ पशुओं ने इन्सानों की जान अपने को दाँव पर लगा के बचायी । बहुत से लोग सोचते हैं कि पशुओं मे दया और प्यार की भावना का अभाव रहता है लेकिन इन पशुओं के कार्य बताते है कि इनमे भी उसी प्रेम और दया मौजूद रहती है , भले ही उसको वह महसूस नही कर पाते हों । देखॆ यह वीडियो “ Love us, not kill us ‘
धम्मपद की गाथा “दण्ड्वग्गो’ मे बुद्ध कहते है :
१२९.
सब्बे तसन्ति दण्डस्स, सब्बे भायन्ति मच्चुनो।
अत्तानं उपमं कत्वा, न हनेय्य न घातये॥
सभी दंड से डरते हैं । सभी को मृत्यु से डर लगता है । अत: सभी को अपने जैसा समझ कर न किसी की हत्या करे , न हत्या करने के लिये प्रेरित करे ।
१३०.
सब्बे तसन्ति दण्डस्स, सब्बेसं जीवितं पियं।
अत्तानं उपमं कत्वा, न हनेय्य न घातये॥
सभी दंड से डरते हैं । सभी को मृत्यु से डर लगता है । अत: सभी को अपने जैसा समझ कर न तो किसी की हत्या करे या हत्या करने के लिये प्रेरित करे ।
१३१.
सुखकामानि भूतानि, यो दण्डेन विहिंसति।
अत्तनो सुखमेसानो, पेच्च सो न लभते सुखं॥
जो सुख चाहने वाले प्राणियों को अपने सुख की चाह से , दंड से विहिंसित करता है ( कष्ट पहुँचाता है ) वह मर कर सुख नही पाता है ।
१३२.
सुखकामानि भूतानि, यो दण्डेन न हिंसति।
अत्तनो सुखमेसानो, पेच्च सो लभते सुखं॥
जो सुख चाहने वाले प्राणियों को अपने सुख की चाह से , दंड से विहिंसित नही करता है ( कष्ट नही पहुँचाता है ) वह मर कर सुख पाता है ।
साभार : मटरगशती
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