Tuesday, April 30, 2013

जीवन की त्रासदियाँ क्या उर्वरक का कार्य कर सकती हैं ? - “ Who Ordered This Truckload of Dung ”

ajahn-brahm-hi-res 
एक बौद्ध भिक्षु के रुप में अजह्न ब्रह्म की शिक्षाओं का तरीका अन्यों से बिल्कुल अलग है । गंभीर से गंभीर विषयों को वह सरालता और सहजता के साथ समझाते हैं । अपने भाषणॊं में वह मुख्य विषय पर  केन्द्रित रहते हुये वह हास्य व्यंग्य को भी सम्मिलित  करते हैं ।
जीवन की त्रासदियाँ क्या उर्वरक का कार्य कर सकती हैं ’ ?  ’ "Who Ordered This Truckload of Dung ?’ का हिन्दी अनुवाद है । अजन्ह ब्रहम् की कहानियों का मेरा यह दूसरा अनुवाद है , इसके पहले ‘ दो खराब  ईटॊं की दीवार – अजन्ह ब्रहम्ह के जीवन से एक  वृतांत – Two Bad Bricks , a story by Ajahn Brahmn ’ कुछ दिन पहले इसी ब्लाग पर प्रकाशित कर चुका हूँ ।
जीवन एक रुप से कभी समान नही चलता और न ही वह हमारी मर्जी के हिसाब से भी चलता है । कल का हमे पता नही , वर्तमान मे हम जीते नही औए भूत को पकडे बैठे रहते हैं । लेकिन कल कुछ भी घट सकता है । ऐसी अप्रिय घट्नायें भी जो पल भर में जीवन को उदासी में  बदल सकती है । यह सभी के साथ हो सकता है । फ़र्क सिर्फ़ इतना  है कि एक व्यक्ति उस हालात मे भी खुश रहता है और दूसरा दुखी । क्या करें इन क्षण  का , कैसे इन आपदाओं का जबाब दें ?
चलिये कलपना करें कि आप की दोपहर आपके दोस्त के साथ  समुद्र तट पर   बहुत ही अद्भुत बीती । जब आप घर लौट कर आये तो आपने देखा कि आपके घर के गेट  के सामने किसी ने एक ट्र्क भर कर गोबर डाल दिया है । स्वभाविक है आप का पारा बहुत ही गर्म हो गया ।  अब आपके सामने तीन बातें रह गयी :
१. यह तो तय है कि गोबर फ़ेंकने की जिम्मेदारॊ से आप परे थे और न ही आप की कोई गलती थी ।
२.  यह भी  तय है कि आपने किसी को गोबर फ़ेंकते नही देखा  तो जाहिर है कि आप किसी पर इलजाम भी नही लगा सकते ।
३. हाँ , यह अवशय है कि उसकी दुर्गधं असहनीय थी और पूरे घर को उसने प्रदूषित कर दिया था ।
जीवन के संदर्भ  मे इस घट्ना को देखें । गोबर के रुप में जीवन में  आने वाली त्रासदियाँ अनुभव के लिये खडी हैं ।  इन त्रासदियों   के बारे मॆ   पता करने के लिये तीन चीजे हैं :
१. हमने इन त्र्सादियों को बुलाने का न्योता नही दिया । फ़िर हम ही क्यूं इस त्र्सादी मे आ फ़ँसे ?
२. हम लाख चाहें लेकिन हमारे अच्छे दोस्त या हमारे परिवार के लोग भी इसको दूर नही कर सकते , हालाकि वह कोशिश अवशय कर सकते हैं ।
३. यह त्रासदी हमारी जीवन की सारी खुशियों को ले गई । इसका दर्द इतना तीर्व  है कि इसको सहन करना  लगभग असंभव है ।
घर के सामने पडॆ गोबर को उठाने के दो रास्ते  हैं . पहला इस गोबर को अपनी शर्ट , पैन्ट , अपनी  जेबों और  बैग मे अच्छी तरह  से भर लें । लेकिन हम यह पाते है कि  कि इस गोबर को जेबों मे भरते समय इसकी  दुर्गंध से  हम अपने अच्छॆ से अच्छे दोस्तॊ को खो बौठते हैं  । ‘ गोबर का भार उठाना ’  अवसाद , नकारात्मता या क्रोध में डूबने का एक रुपक मात्र है । यह विपरीत परिस्थितियों के लिए एक प्राकृतिक और समझने वाली प्रतिक्रिया है.  लेकिन यह भी प्राकृतिक है कि हमारे दोस्त इन परिस्थितियों  मे लगभग छूट जाते है क्योंकि कोई भी इन अवसाद्ग्रस्त क्षण का साथ नही होना चाहता । लेकिन इन सब  को करने के बावजूद गोबर का ढेर कम के बजाय बढता ही जाता है और उसकी दुर्गंध पुरे घर को दूषित करती रहती है ।
सौभाग्य से एक दूसरा रास्ता भी है । इस गोबर को हटाने के लिये हम कुदाल , ठेला और कांटा लाते है औए लम्बी सांस भरते हुये इसको हटाने के लिये जुट जाते हैं । कांटा और कुदाल से ठेले में भरते हैं और फ़िर घर के पीछे छोटी सी बगिया  मे एक गढ्ढा खोद कर उसमे डालते जाते है । हांलाकि यह एक उबाऊ और थकाने वाला काम है लेकिन हमारे पास  इसके अलावा  कोई दूसरा विकल्प नही है ।
हम इस समस्या के हल की तलाश मे हैं न कि अवसाद मे डूबने  के । दिन बीतते गये यहाँ तक की कि साल भी बीत गये और  गोबर का ढेर छोटा होता गया  और फ़िर एक दिन वह सुबह आयी जब गोबर पूरी तरह से हट चुका था । इसके अलावा एक  चमत्कार  घर के दूसरे हिस्से  मे भी हुआ , वह जगह जहाँ हमने गोबर जो गढ्ढॆ मे डाला था , उस से बनी खाद   ने उर्वरक का काम किया , बगीचे मे इस बार फ़ूल और फ़ल अधिक मात्रा मे आये , फ़ूलों की महक से पूरे घर का वातावरण तो शुद्ध हुआ ही , इसके साथ इसकी खूशूबू ने आस पास भी अपना प्रभाव छोड दिया । फ़लों की मिठास का तो कहना ही क्या , इस बार सब कुछ इतनी अधिक मात्रा मे था कि उसे आस पास और पडोसियों मे भी बाँटना पडा।
"गोबर में खुदाईजीवन के लिए उर्वरक के रूप में त्रासदियों के स्वागत के लिए एक रूपक है. यह हमें अकेले ही करना है और यहाँ हमारी मदद करने वाला भी कोई नही है । लेकिन  अगर हम दिल के बाग  मे यह खुदाई जारी रखेगें तो हम पायेगे कि एक दिन जीवन मे दु:ख प्रतिक्षण कम होते जायेगें और उनकी जगह लेगी प्रेम की मिठास , उसकी खुशूबू और मेत्ता भावना ।
जिस दिन हम इस दुख दर्द को जानेगें , अपने दिल मे उस प्रेम रुपी बगीचे को विकिसित करेगें , उस दिन आने वाली त्रासदियों के गले मे बाँह डालकर कह सकते हैं , “ हाँ , अब मै अब तुझे समझ सकता   हूँ
शायद इस कहानी का नैतिक अर्थ है कि अगर   आप करुणा के मार्ग का अनुसरण करना चाहते हैं और  दुनिया की सेवा के लिए तैयार हैं  तो अगली बार अगर कोई    त्रासदी गलती से भी आपके जीवन में घटित हो , तो आप बेझिझक अपने आप से कह सकते हैं कि मेरे बगीचे के लिये और अधिक उर्वरक का प्रबंध हुआ है , और ऐसा उर्वरक जो मेरे दर्द को प्रतिक्षण कम करता रहता है !!
who odered this truckload of Dung[2]
अजन्ह ब्रह्म की कहानी  "Who Ordered This Truckload of Dung ? : Inspiring Wisdom for Welcoming Life's Difficulties"  का हिन्दी अनुवाद ।

Tuesday, April 16, 2013

जय मंगल गाथा


भारत की महाबोधि सोसाइटी द्धारा गाई गई मूल पालि मे ‘ जय मंगल गाथा ’ एक दुर्लभ रिकॉर्डिंग है जिसे मैने कुछ दिन पहले  यू ट्यूब पर देखी । पालि  एवं अग्रेजी में इसका अनुवाद कई साइट पर मिल सकता है लेकिन हिन्दी में इसका अनुवाद कही नही मिला । थोडा प्रयास करने के बाद इसका हिन्दी अनुवाद श्री राजेश चन्द्रा जी के पास मिला और  उनका  आभारी रहूगाँ जिन्होनें कल इस गाथा के स्कैन किये हुये पेज मुझे मेल पर भेजे ।
दो वजहों से इस गाथा मे मेरी रुचि बढी । अगर ऊपरी सतही रुप मे देखें तो यह गाथा जैसे आम धर्मों  जैसी ही अपने-२ देवदूतों का  गुणगान करती प्रतीत होती  है लेकिन इन सभी आठ गाथाओं को गौर से पढें तो यह सिर्फ़ शाब्दिक गुणगान कम बल्कि इन्सान की मूल कमजोरियों और नकारात्मक भावों पर  सत्य की जीत को प्रतिनिधित्व  करता है । उदाहरण के लिये मार , नागराज, चिन्चा , बक   इन्सान के नकारात्मक मन को दर्शाते हैं ।
त्रिपटक में इस मंत्र का अपना विशेष स्थान है और यह मंत्र मन मे उठने वाले नकारात्मक विचारों पर बुद्ध्त्व की जीत का सांकेतिक रुप है । यह आठ विजय हैं :
१, भगवान्‌ बुद्ध की मार पर विजय
२.आलवक नामक यक्ष पर विजय
३. नालगिरि  गजराज  पर विजय
४. अंगुलिमाल पर विजय
५. भगवान्‌ बुद्ध को अपशब्द और बदनाम करनी वाली चिन्चा के नापाक इरादों  पर विजय
६. अभिमानी और अंहकारी ब्राहम्ण सच्चक पर विजय
७. नन्दोपण्द नामक भुजगं पर विजय
८.  ब्रह्मा बक के मिथ्याग्रस्त विचारों  पर विजय
मूल पालि में महामंगल गाथा :
बाहुं सहस्समभिनिम्मितसायुधन्त,गिरिमेखलं उदितघोरससेनमारं।
दानादि धम्मविधिना जितवा मुनिन्दो, त तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।१।
मारातिरेकमभियुज्झित-सब्बरत्तिं,घोरं पनालवकमक्खमथद्धयक्ख।
खान्ति सुदन्तविधिना जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।२।

नालागिरि गजवरं अतिमत्तभूतं,दावग्गिचक्कमसनीव सुदारूणन्तं।
मेत्तम्बुसेकविधिना जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवुत ते जयमंगलानि।३।
उक्खित्तखग्ग-मतिहत्थ सुदारूणन्त,धावं तियोजनपथं-गुलिमालवन्त।
इद्धिभिसंखतमनो जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।४

कत्वान कटठमुदरं इव गब्भिनीया, चिञ्चाय दुट्ठवंचन जनकायमज्झे।
सन्तेन सोमविधिना जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।५।

सच्चं विहाय मतिसच्चकवादकेतुं, वादाभिरोपितमनं अतिअन्धभूतं।।
पञ्ञापदीपजलिलो जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।६।

नन्दोवनन्दभुजगं विवुधं महिद्धि, पुत्तेन थेरभुजगेन दमापयन्तो।
इद्धुपधेसविधिना जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवुत ते जयमंगलानि ।७।

दुग्गाहदिठ्टिभुजगेन सुदठ्टहत्थं, ब्रम्ह विसुद्धि जुतिमिद्धि बकाभिधानं।
ञाणागदेन विधिना जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।८।

एतापि बुद्ध जयमंगल अठ्ट गाथा, यो वाचको दिनदे सरते मतन्दी
हित्वान नेकाविविधानि चुपद्दवानि, मोक्खं सुंखं अधिगमेय्य नरो सपञ्ञो।९।

महामंगल गाथा का हिन्दी अनुवाद :
गिरीमेखला नामक गजराज पर सवार शस्त्र-सज्जित सह्स्त्र –भुजाधारी मार को उसकी भीषण सेना सहित जिन मुनीन्द्र ( भगवान्‌ बुद्ध ) ने अपनी दान पारिमाताओं के बल पर जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो ! ।१।
मार से भी बढ चढ कर सारी रात युद्ध करने वाले , अत्यन्त दुर्घर्ष और कठोर ह्र्दय आलवक नामक यक्ष को जिन मुनीन्द्र ने अपनी शांति और संयम के बल से जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो ! ।२।
दावाग्नि – चक्र अथवा विधुत की भांति अत्यन्तं दारुण और विपुल मदमत्त नालागिरि गजराज को जिन मुनीन्द्र ( भगवान्‌ बुद्ध ) ने अपने मैत्री रुपी जल की वर्षॊं से जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो ! ।३।
हाथ मे तलवार उठा कर योजन तक दौडने वाले अत्यन्तं भयावह अगुंलिमाल को जिन मुनीन्द्र ( भगवान्‌ बुद्ध ) ने अपने ऋद्धि बल से जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो ! ।४।
पेट पर काठ बाँधकर गर्भिणी का स्वांग करने वाली चिंचा के द्वारा जनता के मध्य कहे गये अपशब्दों को जिन मुनीन्द्र ( भगवान्‌ बुद्ध ) ने अपने शांत और सौम्य बल से जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो ! ।५।
सत्य विमुख , असत्यवाद के पोषक, अभिमानी , वादविवाद परायण औए अंहकार से अत्यन्तं अंधे हुये सच्चक नामक परिव्राजक को जिन मुनीन्द्र ( भगवान्‌ बुद्ध ) ने प्रज्ञा प्रदीप जलाकर जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो !! ।६।
विविध प्रकार की महान ऋद्धियों से संपन्न नन्दोपनंद नामक भुजंग को अपने पुत्र ( शिष्य) महामौद्रल्लायन स्थविर द्वारा अपनी ऋद्धि-शक्ति और उपदेश के बल से जिन मुनीन्द्र ( भगवान्‌ बुद्ध ) ने जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो !! ।७।
मिथ्यादृष्टि रुपी भयानक सर्प द्वारा डसे गये , शुद्ध ज्योतिर्मय ऋद्धि-संपन्न बक ब्रह्मा को जिन मुनीन्द्र ( भगवान्‌ बुद्ध ) ने ज्ञान की वाणी से जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो !! ।८।
९. जो बुद्दिमान प्राणी  भगवान्‌ बुद्ध की इन आठ विजय चक्रों को प्रतिदिन कंठस्थ और याद करते हैं , वह जीवन मे आने वाली विपत्तियों से दूर भी रहते हैं और निर्वाण को प्राप्त करते हैं । ।९।



English translation:
1. Creating thousand hands, with weapons armed was Mara seated on the trumpeting, ferocious elephant Girimekhala.
Him, together with his army, did the Lord of Sages subdue by means of generosity and other virtues. By its grace may joyous victory be thine.
2. More violent than Mara were the indocile, obstinate demon Alavaka, who battled with the Buddha throughout the whole night. Him, did the Lord of Sages subdue by means of His patience and self-control. By its grace may joyous victory be thine.
3. Nalagiri, the mighty elephant, highly intoxicated was raging like a forest-fire and was terrible as thunder-bolt.
Sprinkling the waters of loving-kindness, this ferocious Beast, did the Lord of Sages subdue. By its grace may joyous victory be thine.
4. With uplifted sword, for a distance of three leagues, did wicked Angulimala run. The Lord of Sages subdued him by
His psychic powers. By its grace may joyous victory be thine.
5. Her belly bound with faggots, to simulate the bigness of pregnancy, Cinca, with harsh words made foul accusation in the midst of an assemblage. Her, did the Lord ofSages subdue by His serene and peaceful bearing. By its grace may Joyous victory be thine.
6.Haughty Saccaka, who ignored truth, was like a banner in controversy, and his vision was blinded by his own disputation. Lighting the lamp of wisdom, Him did the Lord of Sages subdue. By its grace may Joyous victory be thine.
7.The wise and powerful serpent Nandopananda, the Noble Sage caused to be subdued by the psychic power of his disciple son (Thero Moggallana). By its grace may joyous victory be thine.
8. The pure, radiant, majestic Brahma, named Baka, whose hand was grievously bitten by the snake of tenacious false-views, the Lord of Sages cure with His medicine of wisdom.
By its grace may joyous victory be thine.
9.The wise one, who daily recites and earnestly remembers these eight verses of joyous victory of the Budhha, will get
rid of various misfortunes and gain the bliss of Nirvana.

Tuesday, April 9, 2013

सिंगालोवाद सुत्त

भगवान्‌ बुद्ध की शिक्षाओं और उनके धम्म  को आज २५०० वर्ष से ऊपर का समय हो गया है लेकिन क्या आज के दौर मे उनकी शिक्षाएं प्रासांगिक हैं ? लेकिन हम देखते हैं कि जीवन के प्रति समस्यायें पहले की अपेक्षा और भी अधिक दुरुह होती जा रही हैं । मानसिक रोगियों की संख्या पिछ्ले कुछ सालों मे बेहन्ताह बढी है । पति- पत्नी मे क्लेश , संबधों का टूटना , बच्चों मे अधीरपन की भावना रहते  कई तृष्णाओं का जन्म होना , फ़िर उनकी अनगिनत फ़रमाइशें , और उन तृष्णाओं के पूरा न हो पाने की स्थिति मे कई अनैतिक कार्य …इन सब का क्या कही अन्त दिखता है ?  आज से २५०० साल पहले भी स्थिति लगभग यही थी । बुद्ध ने  देशनाओं मे काल्पनिक ईशवर के स्थान पर शील को अधिक महत्व दिया  ।   बुद्ध ने ऐसे ही न जाने कितने बुनियादी सवालों को उठाया है । यही कारण है कि भगवान्‌ बुद्ध के संदेश सीधे साधे और व्यावाहारिक हैं । उनमें पांखड और ढॊग का समावेश बिल्कुल भी  नही है ।  भगवान्‌ बुद्ध द्वारा स्फ़ुटित    प्रवचनों को भिक्खुओं ने सुत्त के रुप में संजोय कर रखा । इनमें से मंगल सुत्त, सिगालोवाद सुत्त,  व्यग्धपज्ज सुत्त और पराभव सुत्त आम इन्सान की जीवन शैली से जुडे है । जहाँ मंगल सुत्त जीवन पद्धित से संबन्धित है वही पराभव सुत्त पतन के कारणॊ की ओर संकेत देकर  इसको अनूपूरित करता है । इसी तरह सिंगालोवाद सुत्त सरोकार रखता है मूलभूत शील , धनोपार्जन तथा उसके  संरक्षण से, सामाजिक सम्बन्धों के परस्पर उत्तरदायितवों तथा सफ़ल व्यक्ति के गुणॊं से
सिगालोवाद सुत्त
सिगालोवाद सुत्त : छ: दिशाये और छ: प्रकार के रिशतों को बचाना ( ऊपर चित्र से )
छ: दिशाये:
१. जीवन का आरम्भ –हमारा बचपन । पूर्व दिशा बच्चॊ को तथा माता पिता को दर्शाती है ।
२. युवा होने पर अगला धरातल हमारा विधालय – दक्षिण दिशा विधार्थी तथा अध्यापकों को दर्शाती है ।
३. युवा –वयस्क होने पर परिवार का आरम्भ । पशिचम दिशा पति-पत्नी का प्रतीक है ।
४. आगे बढकर , हमारा सामाजिक जीवन । उत्तर दिशा मित्र तथा सहयोगी को दर्शाती है ।
५. कमाऊ होने पर हमारा व्यपार तथा अन्य कार्य होते हैं । नीचे की दिशा मालिकों , नियोक्ता तथा कर्मचारियों का प्रतीक है ।
६. जब हम जीवन मे परिपक्व होते हैं तब हम उच्च आर्द्श ढूँढते हैं । उत्तर की दिशा साधारण लोगों को तथा आध्यात्मिक गुरुऒं को दर्शाती है ।
दीघ निकाय के सिगाल सुत्त से पता चलता है कि सिगाल नामक युवक हठीला , भौतिकवादी और जिद्दी स्वभाव का युवक था । राजगृह के वेलुवन में विहार करते हुये भिक्षाटन के लिये निकले बुद्ध की मुलाकात श्रेष्ठिपुत्र सिगाल से होती है जो छह  दिशाओं को झुककर नमस्कार कर रहा था । बुद्ध के पूछने पर उसने बताया कि उसके पिता की अन्तिम इच्छा अनुसार वह यह अनुष्ठान नियमित रुप से करता है  लेकिन न तो उसको इस पर विशवास है और न ही वह इसका अर्थ जानता है ।
भगवान्‌ बुद्ध नें सिगाल को उपदेश देते हुये कहा कि उनके धम्म में पूरब का मतलब माता- पिता , दक्षिण का अर्थ गुरु  और शिक्षक , पशिचम का अर्थ पत्नी और बच्चे , उत्तर का मतलब मित्र और रिशतेदार , धरती का अर्थ कर्मचारी , नौकर-चाकर और आसामान का अर्थ साधु संत, महापुरुष तथा आर्दश व्यक्ति होता है । बुद्ध ने कहा कि छ: दिशाओं की पूजा इस तरह से करनी चाहिये ।
पूर्व की सुरक्षा – बच्चे तथा माता – पिता
बच्चों को माता पिता के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये :
भगवान्‌ बुद्ध ने सिगाल को माता पिता की सेवा करने का महत्व बताया । उन्होनें किसी काल्पनिक ईशवर को ब्रह्म नही बल्कि माता पिता को ही ब्रह्म कहा । ‘ ब्रह्मा ति मातापितरो ’ बुद्धिमान व्यक्ति को माता पिता का उचित सत्कार करना चाहिये , बुढापे में उनकी देखभाल करनी चाहिये । बुद्ध ने कहा कि अपने परिवार के मान सम्मान को अक्षुण्ण रखना चाहिये और बच्चों को अपने माता पिता द्वारा कमाई हुई संपति की रक्षा करनी चाहिये । उन्होनें कहा कि कोई भी व्यक्ति दिन रात अपने माता पिता की सेवा करे तो भी वह उनके ऋण से मुक्त नही हो सकता । उनके ऋण से मुक्त होने का तरीका है कि अगर माता पिता शीलवान नही हैं तो उन्हें शीलवान करने मे मदद करें । अगर शीलवान हैं और समाधि में प्रतिष्ठित हैं लेकिन प्रज्ञा में प्रतिष्ठित नही हैं तो उन्हें प्रज्ञा मे प्रतिष्ठित करें । उन्होने यह भी कहा कि बच्चे माता पिता के व्यवसाय मे सहायता देकर , काम से और किसी तौर तरीकों से परिवार को संगठित रखें , उत्तरदायित्व के योग्य बनें और दिंवगत माँ बाप या संम्बन्धियों की यादगार मे दान देकर उन्हें हमेशा याद रखें ।
माँ – बाप को बच्चॊं के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये :
बुद्ध ने सिगाल से आगे कहा कि माता पिता का भी बच्चॊ के प्रति उत्तरदायित्व होता है , उनकी जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को बुरी आदतों और अकुशल कामों से बचाकर रखें उन्हें अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलायें , अच्छॆ कामॊ के लिये उनका उत्साह बढायें ,  उन्हें अच्छॆ और आय वाले काम धंधें में लगायें , विवाह योग्य हो जाने पर उनका अच्छा रिशता करें और उचित समय आने पर परिवारिक संपति उनको सुपर्द कर दें ।
दक्षिण की सुरक्षा – विधार्थी तथा अध्यापक
बुद्ध ने सिगाल से  कहा कि शिष्य को अपने गुरु का सम्मान करना चाहिये । उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिये व उनकी आवशयकताओं को पूरा करना चाहिये । शिक्षक को भी अपने शिष्य को सही और समुचित शिक्षा देनी चाहिये , उसे उचित रुप से पढाना चाहिये , अच्छी संगत के लिये उसे प्रेरित करना चाहिये और शिक्षा समाप्त होने पर रोजगार प्राप्त करने के लिये सहायक होना चाहिये ।
पशिचम की सुरुक्षा – पति तथा पत्नी
पति को अपनी पत्नी के साथ कैसा व्यवाहार करना चाहिये :
पति तथा पत्नी के प्यार को बुद्ध ने पवित्र प्यार की संज्ञा दी । उसे सादर ब्राह्मचर्य ( पवित्र गृहस्थ जीवन ) कहा । उन्होने कहा कि पति और पत्नी एक दूसरे के विशवास्पात्र रहें , एक दूसरे का सम्मान  करें , एक दूसरे के प्रति समर्पित रहें , एक दूसरे के प्रति उतरदायित्वों  का पालन करें । उन्होनें कहा कि पति पत्नी एक दूसरे के पूरक होते हैं । पति का कर्तव्य है वह अपने पत्नी की मान सम्मान की रक्षा करे , कभी न  अपमान होने दे , अनैतिक मिथ्याचार से दूर रहे , अपनी आय के हिसाब से पत्नी को संतुष्ट रखे और समय –२पर पत्नी को उपहार देता रहे ।
पत्नी का पति के प्रति कर्तव्य :
पत्नी का भी यह कर्तव्य है कि घर के कामकाज को ठीक से संचालित करे , घर के कामकाज मे आलस्य करे , परिवार के समस्त च्यक्तियों का आदर करे , अनैतिक मिथ्याचार से दूर रहे , पति की आय की सुरुक्षा करे और सतर्क और दक्ष रहे ।
उत्तर की सुरुक्षा – मित्र और सहयोगी साथी :
भगवान बुद्ध ने कहा कि मित्रों , पडोसियों और  रिशतेदारॊ का उचित सादर सत्कार करना चाहिये , उनसे प्रिय वाणी मे बात करनी चाहिये , उनके भलाई की कामना करनी चाहिये औए संकट के समय उनका साथ न छोडना चाहिये ।
पाताल दिशा की सुरुक्षा – स्वामी तथा कर्मचारी :
स्वामियों को कैसे कर्माचारी से व्यवहार करना चाहिये :
मालिक का अपने कर्मचारियों के प्रति भी उतरदायित्व हैं । उनकी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे उनकी योग्यता और क्षमता के अनुसार ही काम दें , काम के बदले उचित वेतन और परिश्रामिक दें । उनकी चिकित्सा का ख्याल रखें और समय –२ पर उनको पुरस्कृत करते रहें ।
कर्मचारियों  का अपने स्वामियों के प्रति व्यवहार :
कर्मचारियों की भी अपने  मालिकों के प्रति भी जिम्मेदारी है कि वे ईमानदार रहें , आलस्य को त्यागकर मेहनत लगन से काम करें , आज्ञाकारी रहें और अपने मालिकों को कभी धोखा न दें ।
आकाशा दिशा की सुरुक्षा – आधयात्मिक गुरु तथा उपासक :
उपासक और भिक्खु के सम्बन्धों के बारे में बुद्ध ने कहा कि उपासक को अपने धर्मगुरु की आवशयकताओं को प्यार और सम्मान से पूरा करना चाहिये । इसी तरह धर्मगुरु को करुण ह्रदय से उपासक उपासिकाओं को धम्म सिखाना चाहिये जिससे कि वह धम्ममार्ग पर चलकर नैतिक और आधयात्मिक जीवन जी सकें ।
इतना ही नही उन्होनें सिगाल  से कहा कि लालच , क्रोध, वासना , भय तथा ईर्ष्या के वशीभूत होकर कोई काम नही करना चाहिये । जो एक सद्‌गुणी व्यक्ति को चार कर्मक्लेशों से विरत रखते हैं । यह चार कर्मक्लेश हैं :
पाणातिपाता – प्राणिमात्र को कष्ट देने अथवा हत्या करने से विरत रहना
अदिन्नदाना – जो दिया नही गया उसे लेने से विरत रहना ।
कामेसुमिच्छाचारा – लैंगिक दुराचार से विरत रहना ।
मूसावादा – झूठ बोलने से विरत रहना ।
इतना ही नही उन्होने सिगाल को समझाया कि एक सद्‌गुणी व्यक्ति को सम्पति का संवर्धन और प्रबन्धन कैसे करना चाहिये । बुद्ध् ने  सिगाल से कहा कि हमेशा धन के चार  भाग करना चाहिये । एक भाग व्यय करना चाहिये तथा मेहनत के फ़लों का उपभोग करना चाहिये , दूसरा अंश जरुरतमंद लोगों और अल्पभागियों के लिये खर्च करना चाहिये , तीसरा भाग अपना व्यपार चलाने और बढाने के लिये और चौथा भाग बचाना चाहिये दुर्दिनों के लिये ।
सम्पति विनाश के छ: कारणॊं से विरत रहना
१. शराब तथा नशीले पदार्थों का व्यवसन जो स्व संयम का नाश करता है ।
२. आवारागर्दी तथा देर रात तक बाहर रहना
३. अक्सर की मौज मस्ती और मंनोरंजन की लत
४. जुए की लत
५. बुरों की मित्रता
६. प्रमाद तथा निठल्लापन
उन्होने सिगाल को कहा कि लालच ,गुस्सा , वासना , भय और ईर्ष्या के वशीभूत होकर कोई काम नही करना चाहिये  । सिगाल को समझाते हुये बुद्ध कहने लगे कि नशा मत करो, सडकों पर देर रात तक न घूमों , जुआखाने मे मत जाओ , वेशयावृति और नाच तमाशे से दूर रहो , चरित्र्हीन लोगों की संगत मत करो और आलसी मत बनो क्योकि यह आदतें विनाश की ओर ले जाती हैं ।
झूठे मित्र और सच्चे मित्र का चुनाव :
झूठे मित्र:
१. मित्र जो लेने वाले है ।
२. मित्र जो चापलूसी करते हैं ।
३. मित्र जो बातों से लुभाते हैं ।
४. मित्र जो बर्बादी लाते हैं ।
बुद्धिमान जानेगें कि यह चारों मित्रे नही है , शत्रु हैं तथा इन से बचना चाहिये जैसे कोई खतरनाक रास्ते से बचता है ।
सच्चे मित्र :
१. जो सहायता करते हैं ।
२. मित्र जो अच्छे बुरे समय मे रहते हैं ।
३. मित्र जो अच्छी सलाह देते हैं ।
४. मित्र जो करुणावान है ।
बुद्धिमान जानेगें कि यह चारों सच्चे मित्र हैं तथा उनको खजाने की तरह संजोते हैं , जैसे माँ अपने बच्चे को ।
सिगाल को अच्छे मित्र का चुनाव करने की राय देते हुये बुद्ध ने कहा कि अच्छा दोस्त वही है जो अमीरी –गरीबी , सुख दुख , सफ़लता असफ़लता सभी परिस्थितयों में एक सा च्यवहार करे , जिसकी भावना आपके प्रति डगमगाती न रहे , आपकी बात सुने , मुसीबत के दिनों मे साथ दे , अपने सुख-दुख मे शामिल करे और अपना आपके सुख-दुख को अपना समझे ।
सदगुणी लोगों से संबध बढाओ और घटिया लोगों की संगत और घटिया मार्ग त्याग दो , आत्म साधना और सच्चरित्रता बढाने वाले वातावरण मे रहो , सद‌धर्म एवं शील अपनाने और अपना कर्य गहनता से कर सकने के अवसरों को बढाते रहो , अपने माता पिता , पति या पत्नी और बच्चॊ की अच्छी तरह से देखभाल करॊ , उनके लिये समय निकालो । अपने समय , साधनों और प्रसन्नता में औरों को भी भागीदार बनाओ । सद्‌गुण अपनाने के लिये अवसर जुटाओं और मधपान और जुऎ से दूर बचो । विनम्रता , कृतज्ञता और सादा जीवनयापन की कला को सीखो । चार आर्य सत्यों के आधार पर जीवनयापन करॊ । ध्यान साधना सीखो जिससे दु:खों और चिंताओं का नाश हो सके ।
संदर्भित ग्रंथ , पुस्तकें और वेब लिंक :
१.  आनन्द श्री कृष्ण : गौतम बुद्ध और उनके उपदेश , प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
२. मंगलमय जीवन – शांति , प्रसन्नता एवं समृद्धि की कुंजी – सम्पादक राजेश चन्द्रा
३. An approach to Buddhist Social philosophy – Ven P Gnanarama
४. Sigalovada sutta – Ven P. Pemeratana
५. The Sigalovada in Pictures - BuddhaNet