जेतवन में रहते समय एक दिन छ: वर्गीय भिक्षुओं ने सत्रह वर्गीह भिक्षुओं को मारा । भगवान् बुद्ध ने छ: वर्गीय भिक्षुओं को बुलाकर नाना प्रकार से समझाया – “ भिक्षुऒ ! भिक्षु को अपने समान ही सबको समझना चाहिये कि जैसे मैं दणड और मृत्यु से डरता हूँ , वैसे ही सब डरते हैं । ऐसा जान कर किसी को मारना या वध करना नही चाहिये । धमम्पद ~ गाथा १२९ ~
एक दिन भगवान् बुद्ध जेतवन विहार से श्रावस्ती मे भिक्षाटन के लिये जा रहे थे । उन्होने मार्ग में बहुत से लडकों को एक साँप को लाठी से मारते हुये देखा । यह देखकर भगवान् ने उनसे पूछा – “ साँप को क्यों मार रहे हो ? “
“ डँसने के डर से। ”
“ तुम ओग इसे मारकर जो अपना सुख चाहते हो , तो मरकर उत्पन्न होने के स्थान में सुख नही भोग पाओगे , अपने को सुख चाहने वालों को दूसरे का वध नही करना चाहिये । ” ब्न्हगवान ने ऐसा कहकर यह उपदेश देते हुये इस गाथा को कहा ।
No comments:
Post a Comment