Monday, September 30, 2013

विपस्सना आचार्य दिंवगत सत्यनारायण गोयनकाजी को शत्‌-शत्‌ नमन

गोयन्का

                           आचार्य सत्य नारायण गोयन्का
                          जन्म : ३० जनवरी , १९२४
                          निर्वाण  : २९ सितम्बर, २०१३     

बाबा साहब के बाद अगर भारत मे बुद्ध धम्म की ज्योति को जलाये रखने मे किसी व्यक्ति का बहुत योगदान था तो वह थे आचार्य गोयन्का जी । उनका निधन बुद्ध धम्म के लिये एक बहुत बडी क्षति है । लेकिन जाना तो एक न एक दिन सब को है , हमारे चाहे या अनचाहे प्रकृति के इस नियम को कोई नही बदल सकता ।
चाहता हूँ , पुष्प यह
गुलदान का मेरे
न मुर्झाये कभी ,
देता रहे
सौरभ सदा
अक्षुण्ण इसका
रुप हो!
पर यह कहाँ संभव ,
कि जो है आज,
वह कल को कहाँ ?
उत्पत्ति यदि,
अवसान निशिचत!
आदि है
तो अंत भी है !
यह विवशता !
जो हमारा हो ,
उसे हम रख न पायें !
सामने अवसान हो
प्रिय वस्तु का,
हम विवश दर्शक
रहे आयें!
नियम शाशवत
आदि के,
अवसान के ,
अपवाद निशचय ही
असंभव-
शूल सा यह ज्ञान
चुभता मर्म में,
मन विकल होता!
प्राप्तियां, उपलबिधयां क्या
दीन मानव की,
कि जो
अवसान क्रम से,
आदि -क्रम से
हार जाता
काल के
रथ को
न पल भर
रोक पाता !
क्या अहं मेरा
कि जिसकी तृष्टि
मैं ही न कर पाता !

विपस्सना आचार्य सत्यनारायण गोयनकाजी ने बुद्धत्तर भारत के लुप्त हुई बुद्ध की अनमोल 'ध्यान' विधि और बुद्ध वाणी को अपनी एक-एक बूंद से प्रबल-प्रवाह से प्रवाहित किया। गहन अध्ययन और पद पद पर ठोकरे खाते हुए और उद्देश्य विचलित न होते हुए विपस्सना आचार्य सत्यनारायण गोयनकाजी ने सदा बुद्ध के सबल बाहु का अवलम्बन किया। जिनके गहन मैत्री का पूण्य प्रकाश है की भगवान बुद्ध के पुण्यसलिला भागीरथी ने देश और विदेश के करोड़ो लोगो को बुद्ध के सांस्कृतिक प्रवाह में बहाने के लिए साहस बंधाया। जिसे पाकर प्राचीन बुद्ध की ध्यान विधि और बौध्‍द इतिहास के निधि ने स्वयं अपूर्व वैभवशाली गौरव अपने खोये हुए भारत के धरती पर फिर से हासिल करके लोककल्याण किया और लोककल्याण की धारा प्रवाहीत हो रही है। विपस्सना आचार्य सत्यनारायण गोयनकाजी ने पदपद पर कष्ट भरे महासागर के तूफानी लहरों को चीरकर अपने ओजस्वी भाषा शैली में बुद्ध के धम्म को प्रस्तुत किया। आदरणीय विपस्सना आचार्य सत्यनारायण गोयनकाजी के निधन से विश्वजगत को क्षति  होने का आभास हुवा है। लेकिन आदरणीय विपस्सना आचार्य सत्यनारायण गोयनकाजी के स्नेहमयी ममतामयी गोद को विश्वजगत भूल नहीं सकता क्योंकि उनके सहस्त्र्भुजा प्रबल प्रवाह की पियुषपायिनी और बुद्ध के धम्म की जगकल्याणी तरंगे सदा साथ है!

भवतु सब मंगलं !
सबका मंगल हो !

साभार : सत्यजीत मौर्या 

यह भी देखे :

श्री स. ना. गोयन्का द्वारा दस दिवसीय विपश्थना ध्यान विधि के आडियो एवं पी.डी.एफ़. लिंक











































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