मानसिक अवसाद से ग्रस्त लोगों को समझाना एक दुरुह कार्य है । अकसर साधारण दिखने वाली सीखे भी इन रोगियों को समझाने मे उलटी ही पड जाती हैं । लेकिन एक बार जब वह उन अवसाद से निकलते हैं तब ही इस कहानी का मर्म समझ सकते हैं ।
मैने सुना है कि कि एक जेल मे एक कैदी अपनी सजा को काट रहा था । घोर निराशा और अवसाद के बीच वह उस बद कोठरी के एक एक क्षण को गिनता । जैसे –२ उसकी सजा का समय आगे खिसक रहा था वैसे वैसे उसके दिल की धड्कन मध्यम होती जा रही थी । लेकिन एक दिन उसकी नजर उस जेल के कोठरी की छ्त पर जा पडी जहाँ शायद किसी और कैदी ने लिख छोडा था , “ यह भी बीत जायेगा “ यह वाक्य उस कैदी के लिये सहारा बने । जिस दिन उसको जेल से रिहा किया गया उस दिन उसको इस की महत्ता मालूम पडी ।
जेल से रिहा होने के बाद उसने अपनी सामन्य जिदंगी मे भी इस वाक्य को अपने साथ संजो कर रखा । यहाँ तक कि जब उसका समय खराब आया तब भी वह कभी अवसाद मे नही गया । उसको याद रहा कि यह समय भी अधिक दिन नही टिकेगा । उसके जीवन मे खुशियों के भी क्षण आये लेकिन उसमे भी वह सामान्य रहा ।
जीवन के अंतिम दिनो मे वह कैसंर से पीडित रहा । लेकिन सिर्फ़ एक वाक्य , “ यह भी बीत जायेगा “ ने उसको उम्मीद और हौसला दिया ।
मृत्यु शैया पर उसने अपने चाहने वालों को बुलाया और धीरे से फ़ुसफ़ुसा के कहा ,“ यह भी बीत जायेगा “ और मृत्यु को समा गया । उसके शब्द उसके परिवार वालों और उसके मित्रों के लिये भेट से कम नही थे । उन्होने उससे सीखा कि दु:ख और परेशानी के क्षण भी चले जाते है ।
मानसिक अवसाद के क्षण ऐसे कैदखाने का रुप हैं जिससे हम मे से कोई भी भी बचा नही है । कभी न कभी , चाहे या न चाहे हम को उन क्षणॊ से गुजरना ही पडता है । लेकिन अगर हम सिर्फ़ एक वाक्य , यह भी बीत जायेगा को याद रखे तो विशवास रखिये हमारा जीवन तनाव और अवसाद से मुक्त रह सकता है ।
अजह्न ब्रहम की कहानी “ This too will pass “ का हिन्दी अनुवाद
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