Sunday, September 1, 2019

गोदत्त सुत्त - एक अर्थ वाले विभिन्न शब्द



                     🌹संयुत्त निकाय🌹
                      🌴सातवाँ परिच्छेद🌴
                      🌳३९. चित्त-संयुत्त🌳

                🔸७. गोदत्त सुत्त (३९. ७)🔸



एक अर्थ वाले विभिन्न शब्द :
🔸
एक समय, आयुष्मान् गोदत्त मच्छिकाखण्ड में अम्बाटकवन में विहार करते थे।
🔸
एक ओर बैठे गहपति चित्त से आवुस गोदत्त बोले-
🔸
" गहपति ! 
जो अप्रमाण चेतोविमुक्ति है, 
जो आकिञ्चन्य चेतोविमुक्ति है, 
जो शून्यता चेतोविमुक्ति है, और 
जो अनिमित्त चेतोविमुक्ति है, 
क्या इन धर्मों के भिन्न-भिन्न अर्थ और 
भिन्न-भिन्न अक्षर हैं या 
एक ही अर्थ बताने वाले इतने शब्द हैं ?"
🙏
" भन्ते ! 
एक दृष्टिकोण से ये धम्म भिन्न-भिन्न अर्थ और भिन्न-भिन्न अक्षर वाले हैं, 
किन्तु दूसरे दृष्टिकोण से ये भिन्न-भिन्न शब्द एक ही अर्थ को बताते हैं।"
🔸
"गहपति ! 
किस दृष्टिकोण से ये धम्म भिन्न-भिन्न अर्थ और भिन्न-भिन्न अक्षर वाले हैं ?

                          (1)
🙏
" भन्ते ! 
भिक्खु मैत्री-सहगत चित्त से एक दिशा को पूर्ण कर विहार करता है। 
वैसे ही दूसरी दिशा को, 
तीसरी दिशा को, 
चौथी दिशा को, 
ऊपर, नीचे, टेढ़े-मेढ़े,
सभी प्रकार से सारे लोक को अप्रमाण 
मैत्री-सहगत चित्त से पूर्ण कर विहार करता है। 
🙏
करुणा-सहगत चित्त से एक दिशा को पूर्ण कर विहार करता है। 
वैसे ही दूसरी दिशा को, 
तीसरी दिशा को, 
चौथी दिशा को, 
ऊपर, नीचे, टेढ़े-मेढ़े,
सभी प्रकार से सारे लोक को अप्रमाण 
करूणा-सहगत चित्त से पूर्ण कर विहार करता है।
🙏
मुदिता-सहगत चित्त से एक दिशा को पूर्ण कर विहार करता है। 
वैसे ही दूसरी दिशा को, 
तीसरी दिशा को, 
चौथी दिशा को, 
ऊपर, नीचे, टेढ़े-मेढ़े,
सभी प्रकार से सारे लोक को अप्रमाण 
मुदिता-सहगत चित्त से पूर्ण कर विहार करता है।
🙏
उपेक्खा-सहगत चित्त से एक दिशा को पूर्ण कर विहार करता है। 
वैसे ही दूसरी दिशा को, 
तीसरी दिशा को, 
चौथी दिशा को, 
ऊपर, नीचे, टेढ़े-मेढ़े,
सभी प्रकार से सारे लोक को अप्रमाण 
उपेक्खा-सहगत चित्त से पूर्ण कर विहार करता है।"
🙏
भन्ते ! 
इसी को कहते हैं,
👉 'अप्रमाण चित्त से विमुक्ति' ।"
🙏                          
" भन्ते ! 
   आकिञ्चन्य चेतो-विमुक्ति क्या है ? 
   भन्ते ! 
   भिक्खु सभी तरह विज्ञानानन्त्यायतन का
   अतिक्रमण कर।        
👉 'कुछ नहीं है' 
       ऐसा आकिञ्चन्यायतन को प्राप्त हो
      विहार करता है। 
      भन्ते ! 
      इसी को कहते हैं 
👉 'अकिञ्चनप-चेतोविमुक्ति।"
🙏                        
" भन्ते ! 
   शून्यता-चेतोविमुक्ति क्या है ? 
भन्ते ! 
भिक्खु आरण्य में, 
वृक्ष के नीचे, या 
शून्य-गृह में चिन्तन करता है---
यह आत्मा या आत्मीय से शून्य है। 
भन्ते ! 
इसी को कहते हैं , 
👉 'शून्यता चेतोविमुक्ति'।"
🙏                         
" भन्ते! 
अनिमित्त चेतोविमुक्ति क्या है ? 
भन्ते ! 
भिक्खु सभी निमित्तों को मन में न ला 
अनिमित्त चित्त की समाधि को प्राप्त हो विहार करता है । 
भन्ते ! 
इसी को कहते हैं 
👉 'अनिमित्त-चेतोविमुक्ति' ।"
🙏                 
"भन्ते ! 
यही एक दृष्टि-कोण है, 
जिससे ये धम्म भिन्न-भिन्न अर्थ और 
भिन्न अक्षर वाले हैं।"

                               (2)
🙏
" भन्ते ! 
किस दृष्टिकोण से यह एक ही अर्थ को बताने वाले भिन्न-भिन्न शब्द हैं ?" 
🙏
" भन्ते! 
राग प्रमाण करनेवाला है, 
द्वेष प्रमाण करनेवाला है, 
मोह प्रमाण करनेवाला है, 
वे क्षीणाश्रव भिक्खु के उच्छिन्न ... होते हैं ।
🙏
भन्ते! 
जितनी अप्रमाण चेतोविमुक्तियाँ हैं,
सभी में अर्हत्व-फल-चेतोविमुक्ति श्रेष्ठ है। 
वह अर्हत्व-फल - चेत्तोविमुक्ति,
राग से शून्य है, 
द्वेष से शून्य, और 
मोह से शून्य है।
🙏भन्ते ! 
राग किंचन ( =कुछ ) है, 
द्वेष किंचन ( =कुछ ) है, 
मोह किंचन ( =कुछ ) है। 
वे क्षीणाश्रव भिक्खु के उच्छिन्न ... होते हैं। जितनी आकिञ्चन्य चेतोविमुक्तियाँ हैं,
सभी में अर्हत्व-फल-चेतोविमुक्ति श्रेष्ठ है।
🙏
भन्ते ! 
राग निमित्त-करण है, 
द्वेष निमित्त-करण है, 
मोह निमित्त-करण है, 
वे क्षीणाश्रव भिक्षु के उच्छिन्न ... होते हैं। 
🙏
भन्ते ! 
जितनी अनिमित्त चेतोविमुक्तियाँ हैं 
सभी में अर्हत्व-फल-चेतोविमुक्ति श्रेष्ठ है।...
🙏
भन्ते ! 
इस दृष्टि-कोण से,
यह एक ही अर्थ को बताने वाले,
भिन्न भिन्न शब्द हैं ।"

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