🌹संयुत्त निकाय🌹
🌴सातवाँ परिच्छेद🌴
🌳३९. चित्त-संयुत्त🌳
🔸७. गोदत्त सुत्त (३९. ७)🔸
एक अर्थ वाले विभिन्न शब्द :
🔸
एक समय, आयुष्मान् गोदत्त मच्छिकाखण्ड में अम्बाटकवन में विहार करते थे।
🔸
एक ओर बैठे गहपति चित्त से आवुस गोदत्त बोले-
🔸
" गहपति !
जो अप्रमाण चेतोविमुक्ति है,
जो आकिञ्चन्य चेतोविमुक्ति है,
जो शून्यता चेतोविमुक्ति है, और
जो अनिमित्त चेतोविमुक्ति है,
क्या इन धर्मों के भिन्न-भिन्न अर्थ और
भिन्न-भिन्न अक्षर हैं या
एक ही अर्थ बताने वाले इतने शब्द हैं ?"
🙏
" भन्ते !
एक दृष्टिकोण से ये धम्म भिन्न-भिन्न अर्थ और भिन्न-भिन्न अक्षर वाले हैं,
किन्तु दूसरे दृष्टिकोण से ये भिन्न-भिन्न शब्द एक ही अर्थ को बताते हैं।"
🔸
"गहपति !
किस दृष्टिकोण से ये धम्म भिन्न-भिन्न अर्थ और भिन्न-भिन्न अक्षर वाले हैं ?
(1)
🙏
" भन्ते !
भिक्खु मैत्री-सहगत चित्त से एक दिशा को पूर्ण कर विहार करता है।
वैसे ही दूसरी दिशा को,
तीसरी दिशा को,
चौथी दिशा को,
ऊपर, नीचे, टेढ़े-मेढ़े,
सभी प्रकार से सारे लोक को अप्रमाण
मैत्री-सहगत चित्त से पूर्ण कर विहार करता है।
🙏
करुणा-सहगत चित्त से एक दिशा को पूर्ण कर विहार करता है।
वैसे ही दूसरी दिशा को,
तीसरी दिशा को,
चौथी दिशा को,
ऊपर, नीचे, टेढ़े-मेढ़े,
सभी प्रकार से सारे लोक को अप्रमाण
करूणा-सहगत चित्त से पूर्ण कर विहार करता है।
🙏
मुदिता-सहगत चित्त से एक दिशा को पूर्ण कर विहार करता है।
वैसे ही दूसरी दिशा को,
तीसरी दिशा को,
चौथी दिशा को,
ऊपर, नीचे, टेढ़े-मेढ़े,
सभी प्रकार से सारे लोक को अप्रमाण
मुदिता-सहगत चित्त से पूर्ण कर विहार करता है।
🙏
उपेक्खा-सहगत चित्त से एक दिशा को पूर्ण कर विहार करता है।
वैसे ही दूसरी दिशा को,
तीसरी दिशा को,
चौथी दिशा को,
ऊपर, नीचे, टेढ़े-मेढ़े,
सभी प्रकार से सारे लोक को अप्रमाण
उपेक्खा-सहगत चित्त से पूर्ण कर विहार करता है।"
🙏
भन्ते !
इसी को कहते हैं,
👉 'अप्रमाण चित्त से विमुक्ति' ।"
🙏
" भन्ते !
आकिञ्चन्य चेतो-विमुक्ति क्या है ?
भन्ते !
भिक्खु सभी तरह विज्ञानानन्त्यायतन का
अतिक्रमण कर।
👉 'कुछ नहीं है'
ऐसा आकिञ्चन्यायतन को प्राप्त हो
विहार करता है।
भन्ते !
इसी को कहते हैं
👉 'अकिञ्चनप-चेतोविमुक्ति।"
🙏
" भन्ते !
शून्यता-चेतोविमुक्ति क्या है ?
भन्ते !
भिक्खु आरण्य में,
वृक्ष के नीचे, या
शून्य-गृह में चिन्तन करता है---
यह आत्मा या आत्मीय से शून्य है।
भन्ते !
इसी को कहते हैं ,
👉 'शून्यता चेतोविमुक्ति'।"
🙏
" भन्ते!
अनिमित्त चेतोविमुक्ति क्या है ?
भन्ते !
भिक्खु सभी निमित्तों को मन में न ला
अनिमित्त चित्त की समाधि को प्राप्त हो विहार करता है ।
भन्ते !
इसी को कहते हैं
👉 'अनिमित्त-चेतोविमुक्ति' ।"
🙏
"भन्ते !
यही एक दृष्टि-कोण है,
जिससे ये धम्म भिन्न-भिन्न अर्थ और
भिन्न अक्षर वाले हैं।"
(2)
🙏
" भन्ते !
किस दृष्टिकोण से यह एक ही अर्थ को बताने वाले भिन्न-भिन्न शब्द हैं ?"
🙏
" भन्ते!
राग प्रमाण करनेवाला है,
द्वेष प्रमाण करनेवाला है,
मोह प्रमाण करनेवाला है,
वे क्षीणाश्रव भिक्खु के उच्छिन्न ... होते हैं ।
🙏
भन्ते!
जितनी अप्रमाण चेतोविमुक्तियाँ हैं,
सभी में अर्हत्व-फल-चेतोविमुक्ति श्रेष्ठ है।
वह अर्हत्व-फल - चेत्तोविमुक्ति,
राग से शून्य है,
द्वेष से शून्य, और
मोह से शून्य है।
🙏भन्ते !
राग किंचन ( =कुछ ) है,
द्वेष किंचन ( =कुछ ) है,
मोह किंचन ( =कुछ ) है।
वे क्षीणाश्रव भिक्खु के उच्छिन्न ... होते हैं। जितनी आकिञ्चन्य चेतोविमुक्तियाँ हैं,
सभी में अर्हत्व-फल-चेतोविमुक्ति श्रेष्ठ है।
🙏
भन्ते !
राग निमित्त-करण है,
द्वेष निमित्त-करण है,
मोह निमित्त-करण है,
वे क्षीणाश्रव भिक्षु के उच्छिन्न ... होते हैं।
🙏
भन्ते !
जितनी अनिमित्त चेतोविमुक्तियाँ हैं
सभी में अर्हत्व-फल-चेतोविमुक्ति श्रेष्ठ है।...
🙏
भन्ते !
इस दृष्टि-कोण से,
यह एक ही अर्थ को बताने वाले,
भिन्न भिन्न शब्द हैं ।"
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