Thursday, September 20, 2012

संतुलन ध्यान

ध्यान

लाओत्से के साधना-सूत्रों में एक सूत्र है लाओत्से की ध्यान की पद्धति का। वह सूत्र यह है।
लाओत्से कहता है कि पालथी मार कर बैठ जाएं और भीतर ऐसा अनुभव करें कि एक तराजू है, बैलेंस, एक तराजू। उसके दोनों पलड़े आपकी दोनों छातियों के पास लटके हुए हैं और उसका कांटा ठीक आपकी दोनों आंखों के बीच, तीसरी आंख जहां समझी जाती है, वहां उसका कांटा है। तराजू की डंडी आपके मस्तिष्क में है। दोनों उसके पलड़े आपकी दोनों छातियों के पास लटके हुए हैं। और लाओत्से कहता है, चौबीस घंटे ध्यान रखें कि वे दोनों पलड़े बराबर रहें और कांटा सीधा रहे।

लाओत्से कहता है कि अगर भीतर उस तराजू को साध लिया, तो सब सध जाएगा। लेकिन आप बड़ी मुश्किल में पड़ेंगे! जरा इसका प्रयोग करेंगे, तब आपको पता चलेगा। जरा सी श्वास भी ली नहीं कि एक पलड़ा नीचा हो जाएगा, एक पलड़ा ऊपर हो जाएगा। अकेले बैठे हैं, और एक आदमी बाहर से निकल गया दरवाजे से। उसको देख कर ही, अभी उसने कुछ किया भी नहीं, एक पलड़ा नीचा, एक ऊपर हो जाएगा।
लाओत्से ने कहा है कि भीतर चेतना को एक संतुलन! दोनों विपरीत द्वंद्व एक से हो जाएं और कांटा बीच में बना रहे।
जीवन में सुख हो या दुख, सम्मान या अपमान, अंधेरा या उजाला, भीतर के तराजू को साधते चला जाए कोई, तो एक दिन उस परम संतुलन पर आ जाता है, जहां जीवन तो नहीं होता, अस्तित्व होता है; जहां लहर नहीं होती, सागर होता है; जहां मैं नहीं होता, सब होता है।

साभार : ओशो हिंदी

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