आदमी को चाहिये कि क्रोध को प्रेम से जीते , बुराई को भलाई से जीते . कंजूस को उदारता से हटाये और झूठे को सत्य से । घृणा कभी भी घृणा से नही जीती जा सकती । बैर हमेशा प्रेम से जीता जा सकता है । यही सनातन धर्म है । ~धम्मपद ~
आदरणीय श्रीमान जी, सादर प्रणाम | इतने सुंदर ब्लॉग पर ,इतनी सुंदर बातें ...अत्यन्त ज्ञानवर्धक |बहुत बहुत आभार |इस ब्लॉग पर आकर बहुत शांति महसूस होती हैं | **********************नई पोस्ट- “शीश दिये जों गुरू मिले ,तो भी कम ही जान !”
ॐ मने पदमने , ॐ नमो बुद्धाय ,
ReplyDeleteएस धम्मो सनन्तनो
ReplyDeleteआदरणीय श्रीमान जी,
ReplyDeleteसादर प्रणाम |
इतने सुंदर ब्लॉग पर ,इतनी सुंदर बातें ...अत्यन्त ज्ञानवर्धक |बहुत बहुत आभार |इस ब्लॉग पर आकर बहुत शांति महसूस होती हैं |
**********************नई पोस्ट-
“शीश दिये जों गुरू मिले ,तो भी कम ही जान !”