Tuesday, May 26, 2015

मध्यम मार्ग महोत्सव 24 मई 2015 - भगवान्‌ बुद्ध के देशनाओं की मासिक पत्रिका ‘ मध्यम मार्ग ’ के तत्वाधान में


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यह एक अनूठा संगम था । यहाँ बुद्ध धम्म से जुडॆ उपासकों और उन लोगों का भी संगम था जो बुद्ध धम्म मे रुचि रखते हैं । भगवान्‌ बुद्ध की विचारधारा से जुडने वाले लोग चार स्त्रोतों से आते हैं । एक – जो पंरपरागत बौद्ध हैं , हाँलाकि भारत मे इनकी संख्या काफ़ी कम है , इनमें असम से बरुआ , ताई और चकमा  आदि हैं ।
दूसरे – वह जो ओशो को पढते हैं और उनको समझते हैं । विशेषकर ‘ एस धम्मो संनातनॊ ’ पर ओशॊ की  कमेन्ट्री के बाद बुद्ध को समझने मे लोगों की रुचि बढी है ।
तीसरे – वह जो अम्बेकरवादी हैं और बाबा साहब डां अम्बेड्कर के पद्‌ चिन्हों पर चलते हैं ।
और चौथे – वह जो गुरु सत्य नारायण गोयन्का जी के भारत और विदेशॊ में फ़ैले विपसन्ना के केन्द्रॊं के माध्यम से आते है ।
इस कार्यक्रम के मुख्य आयोजक वक्ता श्री मुकेश आंनद जी ने  उचित ही कहा जैसे छॊटी –२ नदियाँ अलग-२  चल कर सूख जाती है वैसे ही विभाजित धम्म की परिणित भी लगभग यही होती है । इसके विपरीत अलग-२ नदियाँ चलकर एक स्त्रोत पर आकर गिरती हैं तब वह विशाल सागर का हिस्सा बन जाती हैं । धम्म भी इसी तरह है , भले ही स्त्रोत अलग-२ हैं लेकिन लक्ष्य एक ही है और वह है भगवान्‌ बुद्ध की देशना ।
इस कार्यक्रम के संयोजक श्री राजेश चन्द्रा जॊ और डां पंकज त्यागी जी को साधुवाद जिनकी अथक मेहनत से एक अनूठा संगम देखने को मिला । इस कार्यक्रम के माध्यम से कई विभूतियों से मिलने का अवसर भी मिला जिनमे बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के डां राहुल राज , महारष्ट से आय़ॆ इनकम टैकस कमिशनर श्री सुवचन राम जी , अम्बॆड्कर मिशन से जुडॆ डां कदम और बाकी देश और विदेश से आये अतिथिगण ।
पूँ. भदन्त श्री राहुल बोधि की धम्म देशना मंत्रमुग्ध करने वाली थी । अपनी देशना को समाप्त करते हुये उन्होने सभागार मे बैठे श्रोतागणॊं को विपसन्ना के प्रथम  चरण ‘आना पान ’ का बोध करवाया । कुछ देर के लिये सभागार अपूर्व शांति मे समा गया ।
अब बात  'मध्यम मार्ग ' पत्रिका की
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लखनऊ से प्रकाशित हो रही यह मासिक पत्रिका बुद्ध धम्म के व्यवाहारिक और अनछुये पहलुओं को अपने पाठकों के सम्मुख रखती है । श्री राजेश चन्द्रा जी और श्री पंकज त्यागी जी का यह ड्रीम प्रोजेकट का यह  १३ वाँ अँक है । मात्र ४० / मूल्य की इस पत्रिका का प्रकाशन उच्च कोटि का है और साल भर के अन्दर इसके देश और विदेश मॆं  बढ रहे हिन्दी भाषी पाठकों की संख्या इसकॆ उत्कृष्टा को साबित करती है ।
‘ मध्यम मार्ग ‘ को सबस्क्राईब करने के लिये इनमें से किसी से भी  संपर्क कर सकते हैं :
श्री राजेश चन्द्रा : मो. नं.    09415565633
श्री पंकज त्यागी : मो. न.    09873428709
श्री एम.एल.आर्या : मो. नं.  09415136561



गौतम बुद्ध से जुड़े ऐतिहासिक स्थल कोपिया को संवारेगी मोदी सरकार

गौतम बुद्ध से जुड़े ऐतिहासिक स्थल कोपिया को संवारेगी मोदी सरकार

कोपिया
गौतम बुद्ध से जुड़े ऐतिहासिक स्थल कोपिया को केंद्र सरकार संवारेगी। इसके लिए प्रस्तावित बौद्ध परिपथ योजना में कोपिया को भी शामिल किया जाएगा। यहां गौतमबुद्ध ने घर छोड़ने के बाद कौपीन (राजसी वस्त्र) त्यागे थे। समीप में स्थित बखिरा पक्षी विहार की भी दशा सुधार इसे राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का खाका बना है। केंद्र सरकार ने देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए थीम बेस्ड टूरिजम सर्किट को बढ़ावा देने के लिए स्वेदश योजना लॉन्च की है। इसमें नॉर्थ-ईस्ट इंडिया सर्किट, बुद्धिस्ट सर्किट, हिमालयन सर्किट, कोस्टल सर्किट और कृष्णा सर्किट शामिल हैं। बुद्धिस्ट सर्किट और कृष्णा सर्किट का ज्यादातर हिस्सा यूपी से जुड़ा हुआ है। बुद्ध सर्किट में बिहार के बोधगया, राजगीर, वैशाली से लेकर यूपी में सारनाथ, श्रावस्ती, कपिलवस्तु, कुशीनगर से लेकर नेपाल का लुंबिनी शामिल है। बुद्ध के जन्म से लेकर ज्ञान प्राप्ति, उपदेश, कर्मस्थली से लेकर महापरिनिर्वाण तक सर्किट में कवर होते हैं। इस सर्किट में आने वाले बुद्ध से जुड़े उन स्थलों को भी विकसित करने की योजना है, जो अहम होते हुए भी उपेक्षित हैं।
पर्यटन मंत्रालय ने योजना को प्रभावी बनाने और मॉनिटरिंग बेहतर करने के लिए सांसदों को भी इसका हिस्सा बनाया है। पूर्वांचल से जुड़े बुद्ध के स्थलों के सांसद कुशीनगर से राजेश पाण्डेय, श्रावस्ती से दद्दन मिश्र, संतकबीर नगर से शरद त्रिपाठी, गोरखपुर से महंत योगी आदित्यनाथ भी इस कमिटी में शामिल हैं। पिछले दिनों केंद्रीय पर्यटन राज्यमंत्री महेश शर्मा की अध्यक्षता में हुई मीटिंग में उन स्थलों के चयन और विकास पर सहमति बनी जो बौद्ध सर्किट में छूटे हुए हैं। इसमें कोपिया को भी शामिल किया गया है।
संतकबीर नगर के सांसद शरद त्रिपाठी का कहना है कि बौद्ध सर्किट की लगभग 125 करोड़ रुपये की योजना पर्यटन और रोजगार के लिहाज से अहम है। संतकबीर नगर मुख्यालय से मेहदावल रोड पर स्थित कोपिया आगे कपिलवस्तु से जुड़ता है। बौद्धकालीन टीले के साथ प्राचीन शिव मंदिर यहां मौजूद है। टीले के सरंक्षण के साथ यहां गेस्ट हाउस और दूसरी बुनियादी सुविधाएं विकसित करने का प्रस्ताव बना है। बौद्ध सर्किट से जुड़ने के बाद श्रीलंका, जापान, चीन के बौद्ध अनुयायियों का यहां आवागमन होगा। साथ ही यहां से पास में स्थित लगभग 30 किमी के बखिरा झील और पक्षी विहार को विकसित कराकर दोनों स्थलों को इंटरलिंक किया जाएगा।
साभार : नवभारत टाइम्स, लखनऊ , दिनांक २३-५-२०१५

Wednesday, May 20, 2015

बौद्ध विहार के लिए लेज़र तकनीक

अंग्रेज़ों ने 19वीं सदी में अफ़ग़ानिस्तान की सीमा के पास गंधार संस्कृति के एक पुराने बौद्ध विहार को ढूँढ निकाला था. तख़्त-ए-बाही नाम के इस विहार का बचा-खुचा भाग पेशावर के पास स्थित है.
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नई तकनीक से पुराने अवशेषों का उद्धार
गंधार पाकिस्तान के उत्तर पूर्वी इलाके में पड़ता है. गंधार सभ्यता का जन्म सिकंदर के आक्रमण के साथ, यानी 326 ईसापूर्व में हुआ था. ईसा पश्चात की पहली से छठीं सदी के बीच वह अपने उत्कर्ष पर थी. इसी वजह से गंधार में प्राचीन ग्रीक और बौद्ध संस्कृति का मेल दिखाई देता है. बर्लिन में हो रही गंधार कला प्रदर्शनी भी यही रेखांकित करती है. प्रदर्शनी के संचालक क्रिस्टियान लूत्सानिट्स के मुताबिक "इस प्रदर्शनी का उद्देश्य पूरब के गंधार में सिकंदर के प्रभाव से लेकर बामियान तक की मूर्तियों के बीच संबंध दिखाना था. प्रदर्शनी में ग्रीक शैली के सिक्के और मूर्तियां हैं. एक अद्भुत तीरंदाज़ भी है. साथ ही बहुत सारे पुराने स्तम्भ हैं, जिनका इस्तेमाल कब्रों को सजाने में किया जाता था. प्रदर्शनी में वैज्ञानिकों ने थ्री डी, यानी त्रिआयामी तकनीक के उपयोग से बामियान के बुद्ध की उस विरट मूर्तियों को बनाने की भी कोशिश की है, जिसे 2001 में तालिबान ने तोपें दाग कर नष्ट कर दिया था.
लेज़र प्रकाश वाली त्रिआयामी स्कैंनिंग तकनीक के ज़रिए आखन के वैज्ञानिक ने कई मूर्तियों की नकल बनायी है. एक ख़ास तरह के चश्मे से आप उन्हें उनके असली रूप में देख सकते हैं. लूत्सानिट्स बताते हैं कि "अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस कोशिश में है कि बामियान के बुद्ध का किसी तरह पुनर्निर्माण हो. हमने इसका इलेक्ट्रोनिक रूपांतर बनाया है. (लेकिन सोचने वाली बात यह है, कि सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के लिए शांति की ज़रूरत होती है. जहां लड़ाई होती है, वहां की संस्कृति को भी खतरा होता है.)"
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स्वात घाटी में लड़ाई से सांस्कृतिक धरोहर का भी विनाश हो रहा है
तख्त-ए- बाही वाले पुराने विहार का निरीक्षण वैज्ञानिक एक लेज़र स्कौनर से करेंगे. इससे विहार की बनावट के बारे में उन्हें और जानकारी मिलेगी. पुरतत्वशास्त्री प्रो. मिशाएल यान्सन का कहना है कि "हम इस विहार को नए तरीके से नापेंगे. पारंपरिक तौर पर हम हाथ से नापते हैं. लेकिन हम चाहते हैं कि हमारी सूक्ष्मता सेंटिमीटर से भी ज़्यादा हो."
प्रश्न उठता है कि विश्व संसकृतिक धरोहर के ख़िताब वाली इस निधि की इससे पहले इतनी बारीक़ी से जांच-परख क्यों नहीं हुइ. प्रो. यान्सन के शब्दों में "विश्व धरोहर के साथ यही समस्या है. पैरिस में हमारा प्रलेखन केन्द्र है और वहां जाकर ही पता लगता है कि तकनीकी प्रगति की तुलना में इन पुरानी चीज़ों को कितनी कठिनाई से नापा जा सकता है. अगले कुछ दिनों में आख़न के कुछ वैज्ञानिक तख़्त-ए-बाही पहुंचेंगे और बौद्ध विहार की इमारत को स्कैन करेंगे".
तीन पैरों पर खड़ा होने वाला स्कैनर बहुत कुछ कैमरे जैसा दिखता है. कार्स्टेन ले स्केनर के बारे में बताते हैं कि "स्कैनर अपने आप काम करता है. वह इन पैरों पर घूमता है और पूरी इमारत में लेज़र किरणें भेजता है. इन किरणों के प्रतिबिम्ब से फिर ईमारत के ढांचे का पता लगता है. एक सेकंड में क़रीब 8000 ऐसे मापन बिंदुओं का पता चलता है."
अभी तो यह तकनीक बहुत नई है, लेकिन अगर यह वैज्ञानिक सफल हुए तो इस तरह की तकनीक से और पुरानी धरोहरें हमें एक तरह से वापस मिल सकती हैं.
अप्रैल महीने महीने के अंत में जर्मनी के आख़न विश्वविद्यालय के कुछ वैज्ञानिक गंधार संस्कृति के अवशेषों का उद्धार करने के लिए उनका निरीक्षण करेंगे.
रिपोर्ट- इंगो वागनर / मानसी गोपालकृष्णन
साभार :  http://dw.de/p/HZKe












Friday, May 15, 2015

सागर कवि

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वसन्त ऋतु आते ही बुद्ध और उनका भिक्खु समूह पूर्वी छेत्र मे लौट आये । वह वैशाली और चम्पा मे रुके । नदी किनारे चलते-२ हुये  बुद्ध समुद्र  तट पर आ गये । मछुआरों से अनायास ही भिक्खु संघ का वार्तालाप शुरु हुआ । मान्य आनंद ने उत्सुकतावश मछुआरों से समुद्र के विषय मे अनेक विचार जानने चाहे ।

एक लम्बे और सुन्दर मछुआरे ने आनंद से कहा , “ मुझे समुद्र की कई बाते अच्छी लगती हैं । पहला , इसका बालू का किनारा पानी तक ढलान युक्त होता है जिससे नावें खींच लाने और जाल फ़ेंकने मे सुविधा होती है ।

दूसरे , समुद्र सदैव अपने स्थान पर रहता है जिससे हम जानते हैं कि वह कहाँ मिलेगा ।

तीसरे , समुद्र किसी शव को अपने मे डुवाता नही , उसे तट पर फ़ेंक देता है ।

चौथे , सभी नदियाँ – गंगा , यमुना , अचिरावती , सरयु और माही समुद्र मे आ मिलती है जिसके बाद उनका नाम नही रहता । समुद्र उनको अपने गर्भ मे समा लेता है ।

पांचवे , यधपि नदियाँ दिन रात जल ला कर समुद्र मे पहुंचाती हैं , किन्तु उसका जल स्तर अपनी मर्यादा मे रहता है ।

छ्ठे , समुद्र का जल सदैव हमेशा खारा होता है ।

सातवें , समुद्र मे सुन्दर घॊंघा , सीप , शंख , मोती और मूल्यवान पत्थर होते हैं ।

आठवें  , समुद्र हजारों प्रकार के प्राणियों को अपने मे समाये रखता है जिनमे लम्बे प्राणि से लेकर सूक्ष्मतम  प्राणि तक होते हैं ।

अत: आप समझ ही गये होगें कि हम समुद्र को कितना प्रेम करते हैं । ”

आनंद ने सराहानापूर्ण दृष्टि से मछुआरे को देखा जो मछुआरा होकर भी कवि की भाषा बोल रहा था । आंनद ने बुद्ध से कहा , “  यह व्यक्ति समुद्र को उसी प्रकार प्रेम करता है जैसे कि मै संबोधि के मार्ग को । क्या आप इस संबध मे कुछ शिक्षा देगे ? ”

बुद्ध मुस्कराये और चट्टान पर बैठकर सद्‌धर्म मार्ग की कुछ विशेतायें बताने लगे । वह मछुआरा भी उनके साथ बैठ गया ।

बुद्ध ने कहा , “ हमारे मछुआरे बधुं ने समुद्र की आठ विशेतायें बताई और अब मै अब आपको सच्चे धर्म की आठ विशॆताये बताउगां ।

पहला , धर्म समुद्र के समान नीचे की ओर ढलवां नही होता । सद्‌धर्म मार्ग पर व्यक्ति तभी प्रगति कर सकता है , जब वह सभी प्रकार की मानसिकताओं को समाहित कर सके । युवा या वृद्ध , शिक्षित या अशिक्षित सभी कोई धर्म मार्ग पर चल सकता है । हर व्यक्ति अपनी आवशकताओं के अनुसार साधाना – पद्‌तियों को अपना  सकता है ।

दूसरे , समुद्र की भांति धर्म भी अपने स्थान पर रहता है । धर्म शिक्षाओं के सिद्धांत कभी नही बदलते । शीलों को स्पष्ट रुप से समझा और सम्झाया जा सकता है । कोई भी व्यक्ति कही भी धर्म के सिद्धांतों का अध्यन्न और शीलों का पालन करके कही भी साधना कर सकता है । धर्म न कही जाता है और न कभी गुम हो सकता है ।

तीसरे , समुद्र जैसे शव को अपने गर्भ में नही रखता , उसी प्रकार धर्म अज्ञान , आलस्य या शीलाचार को भंग करना सहन नही करता । साधना न करने वाला व्यक्ति अन्तत: स्वयं को समुदाय से बाहर निकाल पाता है ।

चौथे , समुद्र सभी नदियों को समान रुप से आत्मसात्‌ कर लेता है , इसी प्रकार सद्‌धर्म सभी जातियों को समान रुप से अपनाता है । समुद्र में मिलने के बाद नदी का नाम समाप्त हो जाता है , इसी प्रकार सद्‌धर्म पर चलने वाला व्यक्ति अपनी जाति , वंश और पूर्व पद सभी त्याग कर मात्र भिक्खु रह जाता है ।

पांचवे , जैसे समुद्र का जल सदैव एक समान रहता है , समुद्र अपनी मर्यादा मे रहता है , सद्‌धर्म भी एक ही स्तर पर रहता है , चाहे उसके अनुयायी की संख्या कम हो अथवा अधिक । धर्म को शिष्यों की संख्या से नही नापा जा सकता ।

छ्ठे , समुद्र का जल हमेशा खारा होता है । अनगिनत मार्गों और अनगिनत साधन – पद्‌तियों के होने के बावजूद धर्म का एक ही स्वाद होता है और वह स्वाद है – मुक्ति का आनंद । यदि धर्म शिक्षाओं से मुक्ति न मिले तो वह सच्ची शिक्षा नही है ।

सांतवे , समुद्र में शंख , मोती और मूल्यवान रत्न होते हैं तो धर्म में भी ऊद्र्गामी और मूल्यवान  शिक्षायें यथा चार आर्य सत्य , चार विशुद्ध साधनायें , पांच गुण , पांच शक्तियाँ . आत्म जागृति के सात चरण और श्रेष्ठ मार्ग होते हैं ।

आठवें , समुद्र हजारों जीवित प्राणियों को शरण देता है तो धर्म भी सभी को अपनी शरण मे ले लेता है , फ़िर वे अशिक्षित बच्चे हों या बोधिसत्व हों । धर्म के असंख्य अनुयायी हैं जिन्होनें जन्म मृत्यु की धारा मे प्रवेश  , प्रथम प्रत्यागत , प्रत्यागथीन अवस्था और  अर्हत  पदों के पुण्य फ़ल पाये हैं ।

“ इस प्रकार समुद्र के समान सद्‌धर्म भी प्रेरणा का और अपरिमित संपदा प्राप्त करने का स्त्रोत है । ”

मान्य आनंद ने हाथ जोडकर बुद्ध की ओर देखा और कहा  , “ प्रभु , आप महान अध्यात्मिक गुरु तो हैं ही और साथ भी एक अच्छे कवि भी हैं । ”

संकलन : जहं जहं चरन परे गौतम के ‘ तिक न्यात हन्ह ’ प्रकाशन - हिन्द पाकेट बुक्स