Chapter One -- The Pairs-verses 7-8
१. यमकवग्गो- छंद ७-८
७.
सुभानुपस्सिं विहरन्तं, इन्द्रियेसु असंवुतं।
भोजनम्हि चामत्तञ्ञुं, कुसीतं हीनवीरियं।
तं वे पसहति मारो, वातो रुक्खंव दुब्बलं॥
अच्छी लगने वाली चीजों को शुभ ही शुभ देखते विहार करने वाले , इंद्रियों मे असंयत , भोजन की मात्रा के अजानकार , आलसी और उधोगहीन को मार ऐसे सताता है जैसे दुर्बल वृक्ष को मारुत ( पवन )
Just as a storm throws down a weak tree,so does Mara overpower the person who lives for the pursuit of pleasures, who is uncontrolled in one's senses, immoderate in eating, indolent and dissipated.
असुभानुपस्सिं विहरन्तं, इन्द्रियेसु सुसंवुतं।
भोजनम्हि च मत्तञ्ञुं, सद्धं आरद्धवीरियं।
तं वे नप्पसहति मारो, वातो सेलंव पब्बतं॥
अशुभ को अशुभ जानकर साधना करने वाले , इंद्रियों में सुयंत, भोजन की मात्रा के जानकार , श्रद्धावान और उधोगरत को मार उसी प्रकार डिगा नही सकता जैसे वायु शैल पर्वत को ।
Just as a storm cannot throw down a rocky
mountain, so Mara can never overpower the person
who lives meditating on the impurities, who is
controlled in one's senses, moderate in eating, and
filled with faith and earnest effort.
बिलकुल सही लिखा आप ने धन्यवाद
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