Friday, April 10, 2015

जो हो चुका सो हो चुका

unfinshed monastry
थाइलैंड मे मानसून का समयकाल जुलाई से अक्टूबर तक चलता है । मानसून के समय के दौरान अकसर भिक्खु यात्रायें करना बन्द कर देते हैं , अपने सारे कार्यों को एक तरफ़ रखकर  अपना अधिकतर समय अध्यन्न और ध्यान को समर्पित करते हैं । मानसून का  इस समयकाल को वर्षा वास  भी कहा जाता है ।
कुछ वर्ष पहले थाइलैंड के दक्षिण भाग मे एक प्रसिद्ध बौद्ध मठाधीश जंगल के एक मठ में एक सभागार ( हाल ) का निर्माण करवा रहे  थे । वर्षा वास के आते ही उन्होने सारे  कार्यों को रुकवा दिया और निर्माणकर्त्ता और श्रमिकों को अपने - २ घर जाने के लिये कहा ।  वर्षा वास का यह समय बौद्ध विहार के लिये अद्‍भुत शांति का समय था ।
कुछ दिन बाद एक आंगुतक का आगमन मठ मे हुआ । जब उस आंगुतक की नजर मठ के अधूरे निर्माण की तरफ़ पडी तो उसने  उतसुकतावश मठाधीश से पूछा कि सभागार का यह  निर्माण कार्य कब समाप्त होगा । एक क्षण रुके बगैर उस वृद्ध भिक्खु ने कहा  , “ सभागार का कार्य समाप्त हो चुका है । ”
“ आप कहना क्या चाहते हैं , सभागार का कार्य समाप्त हो चुका है ? ” आंगुतक ने उत्तर दिया । “ न तो इस सभागार मे छ्त है , न दरवाजे और न ही खिडकियाँ । और तो और इस सभागार मे चारों तरफ़ लकडी और सीमॆट के बोरे बिखरे पडे है । क्या आप इनको यही छोड देगें ? मुझे लगता है कि महाशय आप का मानसिक संतुलन ठीक नही है । इसके बावजूद भी आप कहते हैं कि ‘ सभागार का कार्य समाप्त हो चुका है ’ ? ”
उस विहार के वृद्ध मठाधीश ने मुस्कारा कर और मृदुता से कहा , “  जो हो चुका है , वह समाप्त हो चुका है ।” और यह कहते ही  वह ध्यान कक्ष मे चले गये ।
विराम करने का मेरी नजर मे सिर्फ़ यही एक तरीका है , नही तो इस व्यस्त जिंदगी में कोई भी कार्य कभी भी समाप्त नही होता ।
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अजह्न्ह ब्रह्म की पुस्तक , “ Who ordered this truckload of Dung ? “ मे से ली गई कहानी “ What’s done is finished ” का हिन्दी अनुवाद ।

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