Saturday, April 25, 2015

दो पल शांति के ….

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यह देखने की बात है कि कहानियों के मूल तत्व को कौन किस रुप मे लेता है। मेरी पिछ्ली कहानी , “ जो हो चुका , सो हो चुका “ को ही लें । पर्थ मे मैने यह कहानी एक सभागार में श्रोतागणॊ को सुनाई । उसके अगले ही दिन एक कम उभ्र के लडके के माता – पिता बहुत ही क्रोध मे भरे हुये मेरे पास आये और बोले कि यह आप कैसी कहानियाँ सुनाकर लोगो को दिग्भ्रमित कर रहे हैं । कल शाम को जब  मेरा लडका  अपने मित्रों के साथ घूमने  को जाने के लिये निकला तब मैने उससे पूछा कि क्या तुमने अपना होम वर्क पूरा कर लिया है । वह कहने लगा , “  डैड , कल आपने विहार में अजह्न्ह ब्रह्म को सुना होगा , उन्होने ही कहा था ‘ जो हो चुका है वह समाप्त हो गया । ’
मै एक और कहानी से पिछ्ली कहानी को समझाने की कोशिश करता हूँ ।
आस्ट्रेलिया मे अधिकतर लोग घरों में बगीचे का प्रावाधान अवशय  रखते हैं । लेकिन कुछ ही लोग हैं जो उस बगीचे में अपने लिये दो पल सूकून का निकाल पाते होगें । अधिकतर लोगों के लिये बगीचा सिर्फ़ कार्य करने की जगह मात्र हैं । मै अधिकतर लोगों को सलाह देता हूँ वह अपने बगीचे की सुन्दरता  के लिये उसका पालन  पोषण अवशय  करे लेकिन उसके साथ ही अपने दिल के पालन पोषण के लिये अपने बाग मे कुछ देर शांति से बैठ कर प्रकृति की सुन्दरता का आनन्द अबशय लें ।
अब देखे कि चार गृहस्थ  मालियों ने इस वक्तत्व को  कैसे  समझा ।
पहले माली ने सोचा कि पहले बचे हुये सारे कामों को  निपटा लें उसके पश्चात शांति से दो पल बगीचे में बैठेगे । आखिरकार बाग की कटाई करनी थी , पौधो मे पानी देना था और पत्तियों और झाडियों की छ्टाई भी करनी थी । उसके बाद जो समय बचेगा उसमें शांति के दो पल ढूंढ लेगें । लेकिन उसका काम अन्त तक समाप्त नही हुआ इसलिये उसके  शांति और सूकून के दो पल नही मिल पाये । वैसे आपने भी अपनी संस्कृति मे देखा  होगा कि जो लोग शांति की तलाश करते रहते है उनकी तलाश कब्र मे ही जाकर पूरी होती है ।
दूसरा माली पहले माली से अधिक चतुर निकला । उसने कताई और छ्टाई के औजारों को किनारे किया , पानी के  डिब्बों को एक तरफ़ रखा और आराम से एक कुर्सी में बौठकर  अपनी मन पसंन्द पत्रिका को पढने लगा । लेकिन यह तो पत्रिका को पढने का आनंद लेना था , सूकून उससे कोसों दूर था ।
तीसरे माली ने बागवानी के सारे औजार , पत्रिकायें , समाचार पत्र को किनारे रखा और  दो सेकन्ड के लिये बाग में शांन्ति से बैठ गया । कुछ ही देर बाद उसने सोचना शुरु किया , “ अब मुझे इस मैदान कि लवाई शुरु कर देनी चाहिए , झाँडियां की भी कँटाई – छ्टाई करनी है और अगर मै इन पौधॊ को पानी नही दूँगा तो यह फ़ूल तो मुर्झाने की कगार पर खडे हो जायेगें । ” उसके शांति और सूकून के पल विचारों और योजना बनाने मे ही निकल गये । लेकिन हाँ , शांन्ति नही मिली ।
चौथा माली ने विचार किया , “ चलो काफ़ी काम हो गया है , कुछ देर सूकून से बैठते हैं। हाँलाकि , झाडियों और पेडो की कटाई – छ्टाई करनी है , लेकिन यह सब तो बाद मे भी हो जायेगा लेकिन अभी यह सब काम बिल्कुल नही …। ”
मेरी नजर मे चौथा माली ही समझदार निकला , हाँलाकि वह यह जानता था कि उसका बाग अभी परिपूर्ण नही है लेकिन इसके बावजूद वह आगे की न सोचकर , जो हो चुका है उसमे संतोष कर पाया ।
जीवन के परिपेक्ष मे इसको देखें , जो काम आगे का रह गया है , इसकी व्यर्थ मे चिंता न कर के जो हो चुका है उसमे संतोष और आनन्द ले तब ही जीवन मे वास्तविक शांन्ति पा सकते हैं । अगर हम अपनी और दूसरों की कमियों को देखते रहेगे और अगर हम जीवन को हमेशा व्यवस्थित करने मे अपनी उर्जा लगायेगे तो हमे सूकून के उन पलो का हमेशा अभाव रहेगा ।
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अजह्न्ह ब्रह्म की पुस्तक , “ Who ordered this truckload of Dung ? “ मे से ली गई कहानी “ the idiot’s guide to peace of mind ” का हिन्दी अनुवाद ।

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