एक पहाडी गाँव के अशिक्षित वृद्ध को पहली बार शहर आने का मौका मिला । उसकी पूरी जिन्दगी दूरदराज के पहाडी गाँव मे बीती । बचपन उसका तकलीफ़ों मे बीता , अपने बच्चॊं को पाल पोस के बडा किया और जब उसके बच्चे शहर मे बस गये तो उनके अनुरोध पर वह पहली बार उनके नये घर को और उनकी रहन सहन को देखने शहर की ओर चल पडा ।
एक दिन उस नये शहर मे घूमते हुये उसने दूर से आती हुई बहुत ही कर्कश आवाज सुनी । उसने ऐसी कर्कश आवाज अपने शांत पहाडी गाँव मे पहले कभी नही सुनी थी । उसका मन उस आवाज के स्त्रोत को जानने का हुआ । आवाज का पीछा करते-२ वह एक कमरे कॆ पीछे के हिस्से मे पहुँचा जहाँ उसने एक बच्चे को वाइलन बजाते देखा । “ हाँ, फ़टी सी यह बेसुरी आवाज इसी यंत्र से आ रही है । ” उसने सोचा ।
उसके पुत्र ने उसको बताया कि यह यंत्र “ वाइलन “ है तब उस वृद्ध ने यह निर्णय किया कि वह इस भयंकर से यंत्र को कहीं भी सुनना नही चाहेगा ।
अगले ही दिन उसको शहर के दूसरे हिस्से मे जाना पडा । एक बार फ़िर से उसे एक दूर सॆ आती हुई आवाज सुनने को मिली । उसको लगा कि उसके वृद्ध कानॊ को कोई पुचकार और दुलार रहा है । ऐसी मीठी और सुरीली आवाज उसने अपने पहाडी घाटियों मे भी नही सुनी थी । आवाज के उद्गम को जानने के लिये वह एक घर के आगे के हिस्से मे पहुँचा जहाँ उसने एक वृद्ध महिला को वही यंत्र वाइलन को बजाते देखा ।
तत्काल ही उस वृद्ध को अपनी गलती का एहसास हो गया । एक दिन पहले जो उसने कर्कश आवाज सुनी थी , उसमे न तो वाइलन और न ही उस बच्चे का दोष था । दोष सिर्फ़ इतना ही था कि उस बच्चे को अभी वाइलन बजाना सीखना था ।
वह वृद्ध सोच मे पड गया । उसको लगा कि साधारण से दिखने वाला यही दोष तो सभी धर्मालम्बियों के साथ है । जब कुछ अति धार्मिक उत्साही अपनी –२ आस्था को कलह का कारण बनाते हैं तो क्या धर्म को दोष देना उचित है ? यह सिर्फ़ इतना ही है कि यह नौसीखिये अपने धर्म को ठीक से जान और समझ ही नही पाये । दूसरि तरफ़ जब हम ऐसे संत और महापुरुषों से मिलते हैं जो अपने धर्म के सही जानकार हैं तब भले ही हमारी आस्थायें अलग-२ हों लेकिन उन धर्मॊ की छाप हमारे मन: पटल पर हमेशा बनी रहती है ।
… लेकिन इस वृद्ध मनुष्य और वाइलन की कहानी का अंत अभी नही हुआ था ।
तीसरे दिन शहर के दूसरे हिस्से मे उस वृद्ध को ऐसी आवाज सुनने को मिली जो अपने मे अनोखी थी , उसकी मिठास वाइलन से भी बढकर थी । क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वझ आवाज किसकी थी ?
इस आवाज की मधुरता बसंत ऋतु मे पहाडॊ से बहने वाले झरने से भी बढकर थी , उसकी कोमलता का एहसास शरद ऋतु मे जंगलो मे पेडो के माध्यम से बहनॆ वाली हवा से भी अधिक था , पहाडॊ मे भारी बारिश के बाद चिडियों के चहचहाने की आवाज भी उस आवाज के आगे शून्य थी और यहाँ तक सर्द जाडॊं की रातों मे पहाडॊं की नीरवता और शांति भी उस आवाज के आगे कुछ भी नही थी । आखिर वह कौन सी आवाज थी जिसने उस इन्सान के दिल को छू लिया ?
वह एक विशाल आर्केस्ट्रा कॆ सुरों का संगम था जहाँ वाइलन भी था और अलग –२ सुर यंत्र भी । लेकिन अलग –२ सुर यंत्रॊं के होते हुये भी वह एक लय मे थे । उस आर्केस्ट्रा का हर सदस्य अपने मे निपुण और पारखी था । लेकिन इसके बावजूद उन्होने यह सीखा था कि मिल कर कैसे सुर दे सकते हैं ।
“ क्या सारे धर्मों के मतालम्बी साथ रहकर यह नही कर सकते ? ” उस वृद्ध ने एक बार सोचा । “ वह अपने –२ धर्मों को सही और परिपूर्ण रुप से जानें और उसके बाद मनन करें कि उनके धर्म का निचोड ‘ मैत्रीभावना और प्यार ’ से बढकर अधिक कुछ भी नही है । एक बार अपने धर्म को समझने के बाद आगे बढे और आर्केस्ट्रा के सदस्यों की तरह अलग-२ धर्मॊ के मतालम्बियों के साथ रहने की कला को सीखें । ”
शायद तभी सार्थक और सबसे सुंदर ध्वनि की संरचना की जा सकती है ।
अजह्न्ह ब्रह्म की पुस्तक , “ Who ordered this truckload of Dung ? “ मे से ली गई कहानी “ The most beautiful sound” का हिन्दी अनुवाद ।
No comments:
Post a Comment