Saturday, June 27, 2015

अरञ्‍ञसुत्तं

The-Great-Buddha-Statue-Bodh-Gaya-India-HD (1)

ऐसा  सुना जाता है कि एक समय भगवान बुद्ध श्रावस्ती मे अनाथपिणिक के जेतवन आराम मे विहार कर रहे थे । तब कोई देवता रात बीतने पर अपनी चमक से सारे जेतवन को चमकाते हुये आया और भगवान बुद्ध का अभिवादन कर के एक और खडा हो गया ।

एक ओर खडा हो कर वह देवता भगवान से बोला ,

“ जंगल मे विहार करने वाले ब्रह्म्मचारी तथा एक  बार ही भोजन करने वालों का चेहरा कैसे खिला रहता है ? ”

शास्ता ने कहा ,

बीते हुये का वे शोक नही करते ,

आने वाले पर बडे मनसूबे नही  बाँधते ,

जो मौजूद है उसी से गुजारा करते हैं ;

इसी से उनका चेहरा खिला रहता है ॥

आने वाले पर बडे मनसूबे बाँध,

बीते हुये का शोक करते रह ,

मूर्ख लोग फ़ीके पडे रहते हैं ,

हरा नरकट ( ईख )जैसे कट जाने पर ॥                         

    संयुत्तनिकायो -१०. अरञ्‍ञसुत्तं

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