ऐसा सुना जाता है कि एक समय भगवान बुद्ध श्रावस्ती मे अनाथपिणिक के जेतवन आराम मे विहार कर रहे थे । तब कोई देवता रात बीतने पर अपनी चमक से सारे जेतवन को चमकाते हुये आया और भगवान बुद्ध का अभिवादन कर के एक और खडा हो गया ।
एक ओर खडा हो कर वह देवता भगवान से बोला ,
“ जंगल मे विहार करने वाले ब्रह्म्मचारी तथा एक बार ही भोजन करने वालों का चेहरा कैसे खिला रहता है ? ”
शास्ता ने कहा ,
बीते हुये का वे शोक नही करते ,
आने वाले पर बडे मनसूबे नही बाँधते ,
जो मौजूद है उसी से गुजारा करते हैं ;
इसी से उनका चेहरा खिला रहता है ॥
आने वाले पर बडे मनसूबे बाँध,
बीते हुये का शोक करते रह ,
मूर्ख लोग फ़ीके पडे रहते हैं ,
हरा नरकट ( ईख )जैसे कट जाने पर ॥
संयुत्तनिकायो -१०. अरञ्ञसुत्तं
No comments:
Post a Comment