Friday, June 12, 2015

पात्र और सामाग्री ( The Container and the Content )

 

AFGHANISTAN-BUDDHAS/

ब्रिसबेन  में एक स्थानीय पत्रकार ने मुझसे बडा ही अटपटा सा प्रशन पूछा . “ अजह्न्ह , आप की क्या प्रतिक्रिया होगी अगर कोई इन्सान बुद्ध धर्म की सबसे पवित्र पुस्तक जैसे त्रिपटक को शौचालय मे बहा दे । “

एक क्षण रुके बगैर मैने उससे कहा , “ अगर कोई बुद्ध धर्म की सबसे पवित्र पुस्तक को शौचालय मे बहा देगा तो मै सबसे पहले मै रुकी हुई पाइपलाइन को खुलवाने के लिये एक योग्य प्लम्बर को बुलाऊगाँ । “

संभवत: उसको मेरे उत्तर  की अपेक्षा नही थी । वह हँसा और मुझसे बोला कि क्या आप इस बात से उद्देलित नही होगे ।

मैने उससे कहा , “  हो सकता है कि बुद्ध धम्म के विरोधी बुद्ध की कई प्रतिमाओं को उडा दें , कई मंदिरों को नष्ट कर दें या बौद्ध भिक्खुओं और भिक्खुनियों की हत्या तक कर दें लेकिन फ़िर भी मैं उनको बौद्ध धर्म को नष्ट करने की अनुमति नही दे सकता । आप एक शौचालय में एक पवित्र पुस्तक को बहा सकते हैं लेकिन क्या आप बौद्ध धम्म के मूल आधार क्षमा , करुणा , शांति और मैत्री को शौचालय मे बहा सकते हैं । “

कोई  भी पुस्तक , मूर्ति , मन्दिर , विहार या उसको संचालित करने वाले पुजारी और महंत धर्म नही हो सकते । वे केवल “ पात्र “ हैं । पात्र वह जिसमे सामाग्री रखी जाती है । वह ह्मेशा पात्र ही रहेगें ।

लेकिन दूसरी तरफ़ यह पुस्तकें हमें क्या सिखाती हैं ? बुद्ध की मूर्ति हमॆ क्या दर्शाती है ? भिक्खुओं के गुण हमें किस बात की शिक्षा देते हैं ?  यह वह  “ सामाग्री  “ हैं जिसको हमें बचाना है ।

जब हम पात्र और सामाग्री के बीच के अंतर को समझ लेगें तब हम पात्र के नष्ट हो जाने के बाद भी सामाग्री की रक्षा कर सकते हैं ।

यह भी संभव है कि हम अधिक संख्या मे धम्म की पुस्तकें छ्पवायें , यह भी हो सकता है कि हम बहुत से भिक्खुओं और भिक्खुनियों को प्रशिक्षित कर लें लेकिन जिस दिन हम दूसरों के लिये हमारे प्यार और सम्मान को खो बैठते हैं और अपने आप को हिंसा मे लिप्त कर लेते हैं तो मेरे अनुसार पूरे के पूरे धर्म को ही शौचालय मे बहा बैठते हैं ।

AjahnBrahm2013_GoodBadWhoKnows

अजह्न्ह ब्रह्म्ह की पुस्तक “ GOOD ? BAD ? WHO KNOWS ” मे से ली गई कहानी “ The Container and the Content ” का हिन्दी अनुवाद ।

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The Container and the Content – Ajahn Brahm

A local journalist called and asked me “ What would you do, Ajahn Brahm, if someone took a Buddhist Holy Book and flushed it down the toilet?”

Without hesitation I answered “Sir, if someone took a Buddhist Holy Book and flushed it down the toilet, the first thing I would do is call a plumber!”

When the journalist finished laughing, he confided in me that that was the most sensible answer he had heard.

Then I went further. I explained that someone may blow up many statues of the Buddha, burn down Buddhist temples or kill Buddhist monks and nuns; they may destroy all of this but I will never allow them to destroy Buddhism. You may flush a Holy Book down a toilet, but you will never flush forgiveness, peace and compassion down a toilet.

The book is not the religion, nor the statue, the building or the priest. These are only “containers.”

What does the book teach us? What does the statue represent? What qualities are the priests supposed to embody? This is the “content”.

When we recognize the difference between the container and the contents, then we will preserve the contents even when the container is being destroyed.

We can print more books, build more temples and statues and even train more monks and nuns, but when we lose our love and respect for others and ourselves and replace it with violence, then the whole religion has gone down the toilet.

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